पानीपत में प्रवासी मजदूरों का बुरा हाल, नहीं मिल रहा खाना, आर्थिक मदद का भी कुछ पता नहीं

Update: 2020-04-09 03:54 GMT

इफ्टू का कहना है कि भूख से जूझ रहे मजदूरों को भोजन के नाम पर खिचड़ी या दो रोटी अचार थमा दिया जाता। घंटों इंतज़ार व धक्के खाने के बाद आधे से ज़्यादा मज़दूर बिना भोजन मिले ही लौटा दिए जाते हैं

जनज्वार। हरियाणा सरकार दावा कर ही है कि मजदूरों को भरपेट भोजन दिया जा रहा है। वहीं इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियंस (इफ्टू) ने हरियाणा सरकार के इस दावे पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. इफ्टू ने आरोप लगाया है कि पानीपत में बड़ी संख्या में मजदूरों को खाना नहीं मिल पा रहा है.

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फ्टू के संयोजक पीपी कपूर ने आरोप लगाया है कि पानीपत में भुखमरी के शिकार मज़दूरों को न राशन मिल रहा है न ही आर्थिक मदद।

पीपी कपूर ने बताया कि जहां कहीं भोजन भिजवाया भी जाता है तो वो इतना थोड़ा होता है कि मज़दूरों के बच्चों का भी पेट न भरे। भोजन की मात्रा भी तय नहीं और न ही यह तय होता है कि भोजन में देना क्या है ।

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न्होंने कहा, 'भूख से जूझ रहे मजदूरों को भोजन के नाम पर खिचड़ी या दो रोटी अचार थमा कर क्रूर मज़ाक किया जा रहा है। घंटों इंतज़ार व धक्के खाने के बाद आधे से ज़्यादा मज़दूर बिना भोजन मिले ही लौटा दिए जाते हैं । मज़दूरों को रोजाना अपमानित व प्रताड़ित किया जा रहा है । उन्होंने जिला प्रशासन से सभी ज़रूरतमंद मज़दूरों को तत्काल राशन व आर्थिक मदद देने की मांग की है ।'

पीपी कपूर ने बताया कि बार-बार आग्रह करने के बाद भी पानीपत डीसी उनकी बात नहीं सुन रहे हैं। इस वजह से उन्होंने चीफ सेक्रेटरी केशनी आनंद अरोड़ा समेत कई आला अधिकारियों को एक पत्र भी लिखा है। इसके साथ ही मजदूरों की एक लिस्ट भी भेजी है। जिसमें 256 मजदूरों के नाम पते व मोबाइल नंबर भी दिए गए हैं.

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पूर ने कहा कि मजदूरों के खाने पीने की व्यवस्था को लेकर अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल भी दायर की है.

न्होंने बताया कि पश्चिमी बंगाल, यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के दो लाख से ज्यादा मजदूर प्राइवेट लेबर क्वार्टरों, बस्तियों में किराये पर रह कर फैक्ट्रियों में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। इनके पास ना तो स्थानीय राशन कार्ड है, ना वोटर कार्ड व आधार कार्ड हैं। इसलिए स्थानीय राजनीतिक दल, प्रशासन व सरकार प्रवासी श्रमिकों की ओर आंखें मूंदे हुए है।

मुख्यमंत्री द्वारा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के बैंक खाते में हर सप्ताह एक हजार रूपये डालने तथा शहरी निकाय विभाग द्वारा सूखा राशन देने की घोषणाएं भी प्रवासी मजदूरों के लिए व्यर्थ हैं। क्योंकि इनके पास कोई भी स्थानीय पहचापन पत्र, आईडी प्रूफ नहीं है। इनके मूल राज्य के आधार कार्ड को अधिकारी मानते नहीं।

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