मोदीभक्ति के मोह में डुग्गू सिंह और पांडे जी बवासीर रोगियों की तरह दबाए बैठे हैं चालान का दर्द

Update: 2019-09-07 05:06 GMT

Traffic Challan : ट्रैफिक चालान कटने पर भी नहीं होगा नुकसान, बस ये काम करें और जुर्माना भरने से बचें

पांड़े जी ठहरे घाघ संघी, पर दरोगा जी पाड़े जी से भी घाघ था, लिहाजा तमाम धरहम-बरहम, चिरौरी-मिनती, दाँव-पेंच, वाद-प्रतिवाद के बाद भी पाड़े जी से सुबह सुबह रुपये दो हजार की वसूली हो ही गई....

कश्यप किशोर मिश्र

सुबह सुबह पांड़े जी दूध लेने निकले, स्कूटर बजाज का चेतक था इस बात की तस्दीक पांड़े जी के अलावा खुद बजाज वाले भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि स्कूटर हड़प्पा कालीन भारत के मृदु भांड से भी पुराना दिखता था और इतना झझ्झर हो चुका था कि पांड़े जी के बचे खुचे दाँतों की तरह कैसे टिका है यह खुद में आश्चर्य था।

स मुल्क में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण कहीं चले जाइये सुबह सुबह पहरे पर सिपाही आपको सोता ही मिलेगा। सिपाही की मुस्तैदी नो एंट्री शुरू होते शुरू होती है और नो एंट्री के खात्मे के साथ साथ खतम हो जाती है। पर सुबह मामला अलग था। नया नया मोटर व्हीकल एक्ट लागू हुआ था और इसमें कमाई का दसगुना स्कोप था लिहाजा दरोगा जी सुबह पाँच बजे ही मुस्तैद थे और हमारे पाड़े जी धर दबोचे गये।

पांड़े जी ठहरे घाघ संघी। पर दरोगा जी पाड़े जी से भी घाघ था, लिहाजा तमाम धरहम-बरहम, चिरौरी-मिनती, दाँव-पेंच, वाद-प्रतिवाद के बाद भी पाड़े जी से सुबह सुबह रुपये दो हजार की वसूली हो ही गई।

र गजब की बात ये रही की लौटते पांड़े जी के चेहरे पर विषाद या दु:ख की एक भी रेखा न थी। पांड़े जी ने लौटकर पार्क में झंडा गाड़ा। नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे गाया सलामी दी शाखा लगाया और हरे भरे बने रहे। ना चीं किया ना चूँ! शाखा लगाकर लौट रहे थे तो देखा बाबू डुग्गू सिंह बड़बड़ाते आ रहे थे।

बाबू डुग्गू सिंह का डीएल न होने पर चलान कट गया था। पांड़े जी नें डुग्गू सिंह को नमस्कार किया और बड़बड़ाने की वजह पूछी। बाबू डुग्गू सिंह प्रबल नमो नमो वाले थे। भक्त इतने प्रबल की नमो नमो किये बिना गांजा भी नहीं खींचते थे। बाबू डुग्गू सिंह ने बात वैसे ही छिपा ली जैसे बवासीर का रोगी अपना दर्द छिपा लेता है।

वैसे भी बीते पाँच-छह वर्षों में बाबू डुग्गू सिंह दर्द में भी मुस्कुराते रहने की कला में अभ्यस्त हो चले थे, तो डुग्गू सिंह नें स्मार्ट फिरंगी की तरह पहलू बदलते जवाब दिया। "क्या बतायें पांड़े जी, इलाका शांतिदूतों से भरा पड़ा है, गाड़ी खड़ी किये थे, कोई पंचर मार दिया, उसी में गाड़ी चला दिये टायर फट गया सुबह सुबह तीन हजार की चपत लग गई।

मामला "बात बड़ों की बड़ों ने जानीं" वाला था। पांड़े जी समझ तो गये पर जाहिर कर नहीं सकते थे पर रहा न गया सो बोल पड़े "बाबू साहब! वक्त देश के लिए कुर्बानी का है, अनुशाशन देश को महान बनाता है, हमें अनुशासित होना होगा।" बात देश की आ गई, देश प्रेम की आ गई तो बाबू डुग्गू सिंह देशप्रेम में मैरीनेट होने लगे।

देश के लिए आहुति देने वाले पांड़े जी या बाबू डुग्गू सिंह इक्के दुक्के नहीं थे। पूरा मुहल्ला राष्ट्रवाद की बजबजाहट से भरा देशभक्तों से भरा पड़ा था और अधिकांश ने देशप्रेम के हवनकुंड में यथायोग्य आहुति दी थी, पर जिस तरह तांत्रिक क्रियाओं में इन्हें करने वाला साधक अपनी पहचान गुप्त रखता है, सबके सब हवनकुंड में अपनी अपनी आहुति को लेकर खामोश बने हुए थे।

पने अपने दर्द को खुद में समेटे भक्त अपने खुदा के लिए हजार, दो हजार, पाँच हजार की कुर्बानी देने के बाद भी उफ्फ नहीं कर रहे थे।

सा नहीं है कि यह आज की बात है या यह आजकल का ट्रैंड है या मोदित भक्तों की यह कोई नयी मनोदशा है। मेरी दादी बचपन में इस मनोदशा को यूँ सुनाती थीं :

क बार पाँच पूरबिये घूमने के लिए बम्बई गये। बम्बई में जगह जगह घूमने के बाद वो एक जगह गये जहाँ गणेश जी की एक विशाल प्रतिमा थी। लोग आते प्रतिमा को प्रणाम करते "जै देव जै देव, जै मंगलमूर्ती" गाते चले जाते। पर पूरबिया तो पूरबिया होता है । ये पांचों गणेश प्रतिमा के आपादमस्तक अन्वेषण में लग गये।

कोई नाखूनों से गणेश प्रतिमा को खुरच यह जांचने लगा कि उसका गहरा काला रंग वास्तविक है या पेंट है, तो कोई वस्त्राभूषण के परीक्षण में लग गया। एक सज्जन इस अचरज का हल ढ़ूंढ़ने में लग गये कि इतनी भारी मूर्ति यहाँ कैसे लाई गई। पर उनमें से एक ठीक आज के दौर के भक्तों सा जिज्ञासु था। उसने गणेशजी की बड़ी सी नाभि देखी (जिसे उसकी तरफ ढ़ेड़ुकी कहा जाता था) वह गणेश जी की नाभि में उंगली करने लगा।

जैसे ही उसने उंगली भीतर की उसके शरीर में आपादमस्तक एक कंपन हुआ और उसने उंगली को बाहर निकाल लिया। साथ के दोस्तों ने पूछा "क्या हुआ?" उसकी आँखें सजल हो उठीं उसने कहा "वैसा ही लगा मित्र जैसा विवेकानंद को ध्यानस्थ रामकृष्ण परमहंस को छूने पर लगा होगा! यह अनुभव शब्दातीत है, बन्धु!"

ह सुन दूसरे मित्र ने भी अपनी उंगली गणेशजी की नाभि के भीतर डाली। वहाँ मौजूद सबने उसके शरीर में पैदा कंपन और सजल हो उठी आंखों को देखा। एक एक कर पाँचों मित्रों ने उस अनुभव को अनुभूत किया और अपनी परम अनुभूति को लेकर सजल आँखों से पांचों वहाँ से निकल गए।

हाँ मौजूद एक और व्यक्ति ने भी उस अनुभूति के लिए गणेशजी की नाभि में अंगुली डाली। उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। पूरा शरीर एकबारगी कांप उठा। आंखें सजल हो उठीं।

णेशजी की नाभि में छुपे बिच्छू नें इस बार और जोर से डंक मारा था!

मेरे प्यारे देशवासियो! मोदित भक्तो की मुस्कुराहट के झांसे में न पड़ना। उनके आनंद कंपन और मुदित सजल नयन के फेर में मत पड़ना। अपनी उंगली सम्हाल कर रखना। इस उंगली को सही जगह रखना है, यह बड़े काम की उंगली है।

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