नंगई पर उतरी शिवराज पुलिस, बाल पकड़कर घसीटा मेडिकल छात्राओं को

Update: 2018-01-20 17:54 GMT

मध्य प्रदेश पुलिस ने मेडिकल छात्राओं के साथ बदतमीजी करते हुए न सिर्फ धक्कामुक्की की, बल्कि पुरुष पुलिसकर्मियों ने लड़कियों के बाल खींचकर उन्हें घसीटा....

भोपाल। मध्य प्रदेश की शिव 'राज' सरकार ने अब महिलाओं पर भी अपना राज दिखाना शुरू कर दिया है। शिवराज सरकार यह तानाशाहीपूर्ण रुख उस समय सामने आया जब केडीएफ मेडिकल कॉलेज की मान्यता समाप्त होने के बाद छात्र उन्हें दूसरे कॉलेज में शिफ्ट करने की अपनी मांग को लेकर विरोध मार्च कर रहे थे।

आंदोलनरत छात्राओं के साथ शिवराज पुलिस ने न सिर्फ अभद्रता की, बल्कि पुरुष पुलिसकर्मियों ने लड़कियों के बाल पकड़कर उन्हें घसीटा। गौरतलब है कि केडीएफ मेडिकल कॉलेज की मान्यता खत्म करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से मेडिकल छात्र आंदोलनरत हैं। खुद को दूसरे कॉलेज में शिफ्ट किए जाने को लेकर छात्रों ने कल 19 जनवरी को सीएम हाउस का घेराव किया था।

जब ये छात्र और उनके परिजन वहां पहुंचे तो शिवराज पुलिस ने न केवल उनसे अभद्रता की बल्कि बीच रास्ते में उन्हें रोक लिया गया। हैरत की बात यह थी कि जब छात्राओं ने एंबुलेंस को रास्ता देने के लिए सड़क खाली की तो पुरुष पुलिसवालों ने छात्राओं के साथ बदतमीजी करते हुए उन्हें बाल पकड़कर घसीटा और उनके साथ धक्कामुक्की की।

पुलिस के इस रवैये के बाद छात्राएं और उनके परिजन भी खासा गुस्से में आ गए और उनकी पुलिस से तीखी नोकझोक हुई। हालांकि बाद में पुलिस के बड़े अधिकारियों द्वारा मुख्यमंत्री या अपर मुख्य सचिव चिकित्सा शिक्षा राधेश्याम जुलानिया से मुलाकात कराने का आश्वासन देकर शांत कराया गया। मगर यहां भी पुलिस अपने वादे से मुकर गई, न तो प्रदर्शनकारी छात्रों की मुलाकात मुख्यमंत्री से कराई गई, न ही मुख्य सचिव चिकित्सा शिक्षा राधेश्याम जुलानिया से।

गौरतलब है कि पिछले साल अंत में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश शासन को आदेश दिया था कि आरडीएफ मेडिकल कॉलेज में सत्र 2017-18 में प्रवेश लेने वाले 150 छात्रों को दूसरे मेडिकल कॉलेज में शिफ्ट कराया जाए, मगर शिवराज सरकार ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया। एक महीना बीत जाने के बावजूद चिकित्सा शिक्षा विभाग ने इस दिशा में कोई पहलकदमी नहीं ली है, जबकि इन 150 छात्रों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। आरडीएम मेडिकल कॉलेज के आंदोलनरत छात्रों का कहना है कि इस दिशा में विभागीय अधिकारी उनसे बात तक करने को तैयार नहीं हैं।

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