शहरों में कचरा स्वच्छ भारत के पहले जैसे निपटाया जाता था, स्वच्छ भारत के तमाम प्रचार के बाद भी वैसे ही निपटाया जाता है। नदी का किनारा हो, शहर का एक छोर हो या फिर क़स्बा हो – कचरा आपका स्वागत करता रहेगा...
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
प्रधानमंत्री मोदी लगातार स्वच्छ भारत और नमामि गंगे पर अपनी पीठ ठोकते हैं, पर जब आप अपने आसपास देखते हैं तब इसकी हकीकत समझ में आती है। नमामि गंगे की हकीकत पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, और स्वच्छ भारत तो केवल शौचालय निर्माण (उपयोग नहीं) पर सिमट गया है। नमामि गंगे के नाम पर बनारस पर घाट सजाये गए, पर गंगा नदी घाट से दूर चली गयीं। नदी की हालत में सुधार नहीं हुआ, मगर क्रूज चलने लगे।
शहरों में कचरा स्वच्छ भारत के पहले जैसे निपटाया जाता था, स्वच्छ भारत के तमाम प्रचार के बाद भी वैसे ही निपटाया जाता है। नदी का किनारा हो, शहर का एक छोर हो या फिर क़स्बा हो – कचरा आपका स्वागत करता रहेगा। रोज इसमें आग भी लगाई जाती है। यदि आप नेशनल हाईवे से कानपुर पार कर रहे हैं तब औद्योगिक क्षेत्र में एक यार्ड दिखता है, जहाँ शायद सरकारी फाइलों में इसकी कम्पोस्टिंग की जाती होगी, पर तथ्य यह है कि यहाँ कचरा जमा कर उसमें खुले में आग लगा दी जाती है और धुआं दूर तक फैलता है।
यदि आप हाईवे पर लम्बी दूरी की यात्रा करें तब अनेक टोल बूथों से गुजरना पड़ता है। हरेक टोल बूथ पर स्वच्छ भारत के अंतर्गत टॉयलेट काम्प्लेक्स का निर्माण किया गया है। पर, इनमें से अधिकतर के अन्दर यदि आप पहुंच जाएं, तब यहां की गन्दगी समझ में आती है। शायद ही कोई कॉम्प्लेक्स उपयोग लायक हो।
प्रायः यही कहा जाता है कि जहां आप असफल होते हैं, वहीं की चर्चा बार बार करते रहते हैं। स्वच्छ भारत और नमामि गंगे के अंतर्गत जो कुछ किया जा रहा है, वह इस तथ्य की पुष्टि करता है। गंगा के घाट और गंगा में क्रूज़ से फुर्सत मिले तभी तो आप गंगा के पानी को देख पायेंगे।