इलाहाबाद का नाम बदल प्रयागराज करने में हुई है भारत सरकार के नियमों की अवहेलना!
भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचनाएं मिलकर स्पष्ट करती हैं कि ऐतिहासिक स्थानों के नामों को यथासंभव परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए और जब तक चार शर्तें पूरे नहीं हो जातीं, तब तक नाम बदलने की अनुमति बिल्कुल नहीं दी जानी चाहिए...
जेपी सिंह
जनज्वार, प्रयागराज। उच्चतम न्यायालय में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने के फैसले को चुनौती दी गयी है और कहा गया है कि भारत सरकार द्वारा 11.09.1953 और 27.05.1981 को जारी अधिसूचनाएं मिलकर स्पष्ट करती हैं कि ऐतिहासिक स्थानों के नामों को यथासंभव परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए। जब तक नाम बदलने के लिए और एक नया नाम प्रदान करने के लिए विस्तृत कारण नहीं दिए जाते, जब तक विशेष और सम्मोहक कारण नहीं बताये जाते, तब तक स्थानीय मांग विशेष के आधार पर नाम नहीं बदलना चाहिए।
इसके साथ यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि राज्य और पड़ोस में एक ही नाम का कोई गांव या कस्बा आदि न हो, जिससे भ्रम पैदा हो। इसके बावजूद राज्य सरकार द्वारा इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने का प्रस्ताव किसी भी प्रकार से उचित नहीं है।
यह भी पढ़ें : प्रयागराज विकास प्राधिकरण गरीबों को उजाड़ नियम विरूद्ध कर रहा सड़क चौड़ीकरण, विरोध में जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना
उच्चतम न्यायालय के जस्टिस अशोक भूषण ने मंगलवार 8 जनवरी को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। यह तब हुआ जब इलाहाबाद हेरिटेज सोसाइटी द्वारा दायर याचिका जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की पीठ के सामने आई।
इस याचिका में 26 फरवरी, 2019 को दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें इलाहाबाद का नाम बदलने के फैसले के खिलाफ दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि शहर का नाम बदलने से जनहित प्रभावित नहीं होगा।
यह भी पढ़ें : प्रयागराज में लोक निर्माण विभाग ने जिस रोड को बनाया 50 लाख में, 8 महीने के अंदर उसी रोड को दोबारा पीडीए बनाएगा 7.70 करोड़ में
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि वह सरकार के नीतिगत निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। प्रक्रियात्मक उल्लंघन के आधार पर इस संबंध में जारी अधिसूचना को चुनौती देने के अलावा याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि शहर का नाम बदलने का कदम संविधान के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार के विपरीत और समग्र संस्कृति की भावना के विपरीत है।
उच्चतम न्यायालय में वकील शादान फरासात द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि इलाहाबाद नाम इस शहर के साथ 400 से अधिक वर्षों से जुड़ा हुआ है। नाम अब केवल एक स्थान का नाम नहीं है, बल्कि शहर की पहचान है और सभी लोगों के धर्म से अलग होने के बावजूद जुड़ा हुआ है। यह शहर के निवासियों और इलाहाबाद के जिलों के सांस्कृतिक अनुभव के दिनोंदिन के कार्यों में शामिल है।
इस तरह नाम परिवर्तन इस जीवित सांस्कृतिक अनुभव पर हमला है जो एक शहर, स्थान आदि के साथ जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लिए, हालांकि कनॉट प्लेस' का नाम बदलकर राजीव चौक कर दिया गया है, कई साल पहले के लोग दिल्ली शहर को हमेशा कनॉट प्लेस के रूप में जगह के लिए उनके दिन-प्रतिदिन की बातचीत को संदर्भित करते हैं।
यह भी पढ़ें : विधानसभा में उठा प्रयागराज में तोड़फोड़ मामले में गरीबों को मुआवजा न देने का मामला
याचिकाकर्ता का तर्क है कि कार्यपालिका ने संबंधित निर्धारित नियमित प्रक्रिया का पालन किए बिना नाम परिवर्तन किया है। भारत सरकार द्वारा 11.09.1953 और 27.05.1981 को जारी अधिसूचनाएं मिलकर स्पष्ट करती हैं कि ऐतिहासिक स्थानों के नामों को यथासंभव परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए और जब तक चार शर्तें पूरे नहीं हो जाती हैं तब तक नाम बदलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
ये शर्ते हैं—
1. नाम बदलने के लिए और एक नया नाम प्रदान करने के लिए विस्तृत कारण दिए जाने चाहिए
2. विशेष और सम्मोहक कारण भी प्रदान किए जाने चाहिए।
3. स्थानीय देशभक्ति के आधार पर नाम नहीं बदलना चाहिए।
4. यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि राज्य और पड़ोस में एक ही नाम का कोई गांव या कस्बा आदि न हो जिससे भ्रम पैदा हो, लेकिन राज्य सरकार का लागू किया गया प्रस्ताव वर्णित चार शर्तों में से किसी को भी संतुष्ट नहीं करता है।