कोटा के अस्पताल में संसाधनों की कमी से हुई 100 से ज्यादा बच्चों की मौत : राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
कोटा के जेके लोन अस्पताल में आसपास को गंभीर मरीजों को रेफर किया जाता है। इस अस्पताल में बूंदी जो कोटा से 40 किमी. और चित्तौड़ 180 किमी दूर है, शिवपुरी, मंदसौर और मध्य प्रदेश के कई जिलों के मरीज यहां रेफर किया जाते हैं, जिनकी हालात पहले से ही अधिक खराब होती है...
जनज्वार, राजस्थान। राजस्थान के कोटा शहर में पिछले साल दिसंबर 2019 में तकरीबन 150 नवजात बच्चों की मौत के बाद से पूरे भारत में राज्य की स्वास्थ्य और अस्पतालों की व्यवस्था पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। पिछले साल भारत के कई राज्यों में नवजात बच्चों की मौतों की ख़बरें आई, लेकिन कोटा में बच्चों की मौतों की ख़बर पूरे भारत में सुर्खियों पर रही।
कोटा के जेके लोन अस्पताल में नवजात शिशुओं की मौत का मुख्य कारण अस्पताल में मौजूद संसाधन, स्टाफ की कमी और बुनियादी ढांचे को माना गया। संसाधनों की कमी के चलते मरीजों का सही समय में इलाज करवा पाना एक काफी बड़ी चुनौती बन गई है।
इस मामले पर जेके अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी का कहना है कि, 'यहां पहुंचने वाले अधिकतर रोगी गंभीर हालत में होते है। अस्पताल में कुपोषित माताओं की संख्या भी काफी अधिक रहती है, जिसके कारण यहां पैदा होने वाले बच्चों का वजन जन्म के समय से काफी कम होता है, जो बच्चों की मौत का एक बड़ा कारण है।'
डॉक्टरों का कहना है, सर्दियों में अधिकतर बच्चों में हाइपोथर्मिया का खतरा बढ़ जाता है। जन्म के समय देखभाल, माता का स्वास्थ्य और प्रसव के बाद सही से देखभाल नहीं होने के कारण बच्चों की जिंदगी खतरे में पड़ जाती है।
कोटा के जेके लोन अस्पताल में आसपास के गंभीर मरीजों को रेफर किया जाता है। अस्पताल में बंदू जो कोटा से 40 किमी दूर है, वहीं चित्तौड़गढ़ जो 80 किलोमीटर दूर है, इसके अलावा शिवपुरी, मंदसौर और मध्य प्रदेश के कई जिलों से यहां रेफर किया जाता है।
शिशुओं की मौत के बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम ने अस्पताल का दौरा किया था। जांच के बाद टीम ने अस्पताल की स्वच्छता और बुनियादी ढांचा की हालत का काफी बेकार बताया था। इसके अलावा दिसंबर के ठंड के महीने में अस्पताल की खिड़कियों के शीशे टूटे होने के कारण भर्ती हुए बच्चों को मौसम की मार भी झेलनी पड़ती है। अस्पताल में कुल 15 वेंटिलेटर में से केवल 9 काम कर रहे थे। इन वेंटिलेटर के भी साल भर के रख रखाव करने का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं था।
घटना पर कोटा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी भूपेंद्र सिंह तंवर का कहना था कि जेके लोन अस्पताल राज्य के चिकित्सा शिक्षा विभाग के अंतर्गत आता है। अस्पताल का हम से या हमारे स्वास्थ्य विभाग के क्षेत्र से कोई लेना देना नहीं है।
उन्होंने कहा कि अस्पताल की मांग पर हम उन्हें धन और नर्स दे सकते हैं, लेकिन मेरे रिकॉर्ड के अनुसार अस्पताल के पास पैसे की कमी नहीं थी, क्योंकि अस्पताल ने जानकारी दी थी कि उसके पास 1.8 करोड़ रुपए है।
इंडियास्पेंड फैक्ट की रिपोर्ट के मुताबिक अस्पताल में प्रसूति वार्ड का बाथरूम भी गंदा था, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है। अस्पताल में अपनी क्षमता से ज्यादा मरीजों को भर्ती करता है। यहां आमतौर पर दो बच्चों को एक साथ मशीन में रखते हैं।
कभी-कभी तीन बच्चों को भी रखा जाता है। वार्ड के बेड पर भी एक से तीन बच्चों को एक साथ रखा जाता है। कोटा के आसपास दो स्वास्थ्य उप-केंद्र हैं जिसमे अक्सर केंद्र बंद रहते हैं और प्राथमिक देखभाल नहीं मिल पात है।
आसपास में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएससी) और दो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएससी) है, जिसमें अक्सर डॉक्टर अनुपस्थित रहते हैं। इन समुदाय केंद्रों पर सिर्फ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में एमबीबीएस डॉक्टर रहते हैं, जबकि स्वास्थ्य उप-केंद्र प्राथमीक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में आयुष चिकित्सक रहते हैं।
जेके लोन अस्पताल में नवजात बच्चों की मृत्यु दर की बात की जाए तो 2014 से लेकर 2019 तक अस्पताल में भर्ती हुए कुल बच्चों का 5 से 8 प्रतिशत तक हैं।