भारत में बढ़ते बलात्कार की घटनाओं पर लापरवाह पुलिस और राजनेताओं की चुप्पी

Update: 2019-12-05 13:14 GMT

उस देश में न्याय की उम्मीद बेमानी है, जहां जिन नेताओं पर बलात्कार के मामले दर्ज हैं वो बढ़ा रहे हों संसद और विधानसभाओं की शोभा, रोज नए चमत्कारी बाबाओं पर बलात्कार के आरोप लग रहे हैं, मगर बजाय कार्रवाई के पुलिस तंत्र इनमें से ज्यादातर के बचाव में लग जाता है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

हैदराबाद के सामूहिक बलात्कार और फिर हत्या को लेकर देश के अनेक शहरों में धरना और प्रदर्शन जारी हैं। छोटी-छोटी बातों पर ट्वीट करने वाले प्रधानमंत्री खामोश हैं, भाजपा की महिला सांसद आँख और कान बंद कर बैठ गयी हैं, सपा सांसद जया बच्चन कहती हैं कि बलात्कारी और यौन-हिंसा करने वालों को वध (।ynching) के लिए जनता के हवाले कर देना चाहिए।

राजनाथ सिंह इसे देश को शर्मसार करने वाली घृणित वारदात बताते हैं। मोदी सरकार की बड़बोली मंत्री स्मृति इरानी ने जब एक मॉल के चेंजिंग रूम में कैमरा देखा था, तब कई दिनों तक महिलाओं की सुरक्षा को लेकर वक्तव्य देती रहीं थीं, पर हैदराबाद की घटना पर खामोश हैं।

कुछ महीने पहले जारी की गयी एक रिपोर्ट में भारत को महिलाओं पर यौन हिंसा के सन्दर्भ में सबसे असुरक्षित देशों की सूची में दूसरा स्थान दिया गया था। वर्ष 2018 में इस सूची में भारत का स्थान चौथा था। इस रिपोर्ट को आर्म्ड कनफ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डाटा प्रोजेक्ट नामक संस्था ने तैयार किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में युद्ध और सामाजिक अराजकता बढ़ने के कारण महिलाओं पर यौन हिंसा बढ़ती जा रही है।

स रिपोर्ट को बनाने के लिए दुनिया में जनवरी 2018 से जून 2019 के बीच सरकारी तौर पर प्रकाशित 400 यौन हिंसा के मामलों का विस्तृत अध्ययन किया गया। वर्ष 2018 में यौन हिंसा के सन्दर्भ में सबसे असुरक्षित देश क्रम से डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगो, साउथ सूडान, बुरुंडी, भारत और सूडान थे। पर वर्ष 2019 में यह क्रम बदल कर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगो, भारत, साउथ सूडान, बुरुंडी और मोजांबिक हो गया।

स रिपोर्ट के अनुसार ऐसे अनेक मामलों में अपराधियों को सरकार, पुलिस या सेना का संरक्षण रहता है। ऐसे लोगों को संरक्षण देने के सन्दर्भ में कांगो, भारत, म्यांमार, साउथ सूडान, बुरुंडी और सूडान का नाम प्रमुख है।

पिछले वर्ष थोमसन रायटर्स फाउंडेशन की एक रिपोर्ट में हमारे देश को महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश करार दिया गया था। इस रिपोर्ट को सरकार ने बिना पढ़े ही नकार दिया था। जिस देश में लगभग 10 लाख लड़कियां प्रतिवर्ष भ्रूण हत्या और उपेक्षा के कारण मर रही हों, वहाँ महिलायें सबसे अधिक असुरक्षित हैं, इसे बताने के लिए किसी रिपोर्ट की आवश्यकता भी नहीं है।

रकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2007 से 2016 के बीच महिलाओं पर होने वाले अपराध में 83 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है और देश में हरेक घंटे औसतन 4 मामले बलात्कार के सामने आते हैं।

सोशल मीडिया पर जिस तरीके से महिलाओं का शोषण किया जा रहा है, वैसा इसके पहले कभी देखा नहीं गया। अनेक महिला पत्रकार पहले भी इसका शिकार हो चुकी हैं। बलात्कार की धमकी तो जैसे सामान्य हो चली है, हत्या तक की धमकियाँ खुलेआम दी जा रहीं हैं। इन सबके बावजूद सरकार चुप है तो उसकी मंशा पर सवाल उठाना लाजिमी है। कुछ महीनों पहले पत्रकार राना अय्यूब पर सोशल मीडिया में धमकियों का ऐसा सिलसिला शुरू किया गया था, जिसकी भर्त्सना संयुक्त राष्ट्र के ह्यूमन राइट्स कमीशन ने भी की थी।

नेक नेता जिन पर बलात्कार के आरोप लगे हैं, वे देश की संसद और विधानसभाओं में बैठे हैं। रोज नए चमत्कारी बाबाओं पर बलात्कार के आरोप लग रहे हैं और इनमें से अधिकतर मामलों में जब तक संभव हो सकता है, तब तक इन्हें बचाया जाता है। सबसे बुरी स्थिति पुलिस की है, हरेक मामले में रिपोर्ट लिखने में देर की जाती है, जिससे साक्ष्य मिटाकर बलात्कार करने वालों को बचाया जा सके।

किसी भी राज्य की पुलिस हो, ऐसा ही करती है। जब तक ऐसे मामलों में रिपोर्ट लिखने में देरी से लेकर तहकीकात में लापरवाही के लिए सम्बंधित पुलिस अधिकारियों को कड़ा दंड नहीं दिया जाता, तब तक इस देश में महिलायें सुरक्षित नहीं हो सकती हैं।

रकारों के लिए यह कोई समस्या नहीं है, इसलिए इसके समाधान की कभी पहल भी नहीं की जाती। जया बच्चन ने संसद में सरकार से पूछा था कि सरकार के पास महिलाओं की सुरक्षा की क्या योजना है, पर इस प्रश्न का उत्तर देश के किसी मंत्री या फिर प्रधानमंत्री के पास भी नहीं है। वर्ष 2017 में देश में कुल 33658 बलात्कार की घटनाओं की रपट लिखी गयी, जाहिर है इससे अधिक बलात्कार की रपट ही नहीं लिखी गयी होगी।

जितनी रपट लिखी गयी, यदि उस आंकड़े को भी देखें तब भी प्रतिदिन 92 घटनाएँ बलात्कार की होती हैं, फिर भी सरकार की नजर में यह समस्या नहीं है। हालत यहाँ तक पहुँच गयी है कि एक बलात्कार की घटना की चर्चा समाचारों तक पहुंचते-पहुंचते इस तरह की अनेक घटनाएं हो चुकी होतीं हैं।

ब तो सोशल मीडिया पर लोग फूलन देवी को याद करने लगे हैं जिन्होंने बलात्कारियों को गोली से मार दिया था। नागपुर के 2004 की घटना को भी याद कर रहे हैं, जिसमें लगभग 200 महिलाओं ने जिला न्यायालय में अक्कू यादव को पत्थर, रसोई के चाक़ू और लाल मिर्च पाउडर से मार डाला था। नागपुर के कस्तूरबा नगर इलाके में अक्कू यादव अवैध वसूली का धंधा करता था। उसकी स्थानीय पुलिस से मिलीभगत थी, इसलिए अनेक शिकायतों के बाद भी उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी। इससे अक्कू यादव के हौसले बढ़ते गए और वह बलात्कारी बन गया।

स्तूरबा नगर इलाके की लगभग 50 महिलाओं के साथ उसने दुष्कर्म किया। स्थानीय पुलिस उसे हमेशा बचाती रही। हरेक बार सजा होने पर उसे अदालत से बेल मिल जाती और फिर बाहर आकर वह अपना कृत्य दुहराता। पुलिस का संरक्षण उसे इस हद तक प्राप्त था कि वह उनके सामने ही महिलाओं को बलात्कार की धमकी देता और पुलिस वाले उल्टा महिला को ही दुष्चरित्र करार देते।

13 अगस्त 2004 को जब नागपुर जिला न्यायालय में ऐसे ही किसी मामले में उसकी पेशी थी और पहले से यह तय था कि उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा। उसदिन कस्तूरबा नगर की लगभग 200 महिलायें न्यायालय परिसर में ही थीं और उन्हें पता था कि पुलिस और न्यायालय से उन्हें कभी न्याय नहीं मिलेगा। अक्कू यादव पुलिस के संरक्षण में जब न्यायालय परिसर पहुंचा तब भी उसमे एक महिला को बलात्कार की धमकी दी, उसके बाद सभी महिलायों ने मिलकर उसे वहीं पुलिसवालों के सामने ही मार डाला। अनेक लोगों पर इस सन्दर्भ में पुलिस ने मुक़दमा दर्ज किया, लगभग 10 वर्षों बाद सभी आरोपी बरी हो गए।

देश की जो स्थिति है, जो लचर व्यवस्था है और मुजरिमों के पास जो सरकारी संरक्षण है, उसमें न्याय की आस भी बेकार है। किसी मामले में यदि अधिक जोर लगाया जाता है तो आनन-फानन में पुलिस किसी को भी पकड़कर मुजरिम बनाकर न्यायालय में पेश कर देती है और असली मुजरिम अपने अगले अपराधों को अंजाम देते रहते हैं – कम से कम इस सन्दर्भ में न्यू इंडिया और पुराना इंडिया एक जैसा ही है।

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