Netflix और amazon पर फिल्में देखने वाले सावधान, अस्पताल में भर्ती हुआ पहला Netflix एडिक्ट

Update: 2018-10-10 06:08 GMT

तमाम साइको फिल्मों के साथ अलग-अलग जोनर की ऑनलाइन फिल्में दिखाने वाली दुनिया की दो बड़ी ऑनलाइन कंपनियों का घर बैठे ओरिजिनल फिल्में दिखाने का मार्केटिंग फंडा भले सफल रहा हो, पर सही बात यह है कि पहले से ही इंटरनेट की लती युवा पीढ़ी के लिए जहर का यह नया डोज साबित हुआ है

जनज्वार। जितने में मल्टीप्लेक्स का एक टिकट न मिलता हो, उससे भी कम कीमत में महीनों दिन फ़िल्म देखने का आईडिया मध्यवर्ग के युवाओं को बहुत रास आया है, पर इसके दुष्परिणामों को देख लग रहा है कि सिनेमा देखने का सस्ता आइडिया भारतीय समाज पर बहुत भारी पड़ने वाला है।

अंग्रेजी अखबार द हिन्दू में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ एंड न्यूरॉसाइंसेज में आज 9 अक्टूबर को एक ऐसे युवा को भर्ती किया गया है जो नेटफ्लिक्स पर फिल्में देखने का एडिक्ट यानी नशेड़ी हो गया है। भारत में ऑनलाइन फ़िल्में देखने के मामले में किसी के नशेड़ी होने की पहली घटना है।

बड़ी बात ये है कि भर्ती हुआ व्यक्ति कोई किशोर नहीं, बल्कि समाज के लिए कुछ करने लायक 26 वर्षीय युवा है। बेंगलुरु में रहने वाला यह युवा उच्च शिक्षित बेरोजगार है। उसके माता-पिता जब नौकरी के लिए उससे कहते हैं तो वह दरवाजा बंद कर फिल्में देखने लगता है। माता पिता ने नशा खत्म करने के लिए निमहान्स में भर्ती कराते हुए बताया कि उनका बेटा रोज करीब 7 घंटे नेटफ्लिक्स पर फिल्में देखता है। वहीं इसके साथी अच्छा रोजगार कर रहे हैं।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ एंडन्यूरॉइन्सेज (निम्हांस) में फिल्मों का लती हो चुके इस युवा को डॉक्टर टैक्नोलॉजी के स्वस्थ प्रयोग पर काउंसलिंग और इलाज कर रहे हैं। युवा का इलाज कर रहे डॉक्टरों के मुताबिक वे अब मरीज का मनोवैज्ञानिक स्तर तलाश रहे हैं, ताकि उसकी यह लत छुड़वा उसे रोजगार दिलाने के लिए मदद की जा सके।

नेटफ्लिक्स पर दिन में 7—7 घंटे फिल्म देखने के आदी हो चुके युवा ने भी स्वीकारा कि फिल्में देखते हुए वह वास्तविकता के धरातल से एकदम डिस्कनेक्ट हो गया था। उसे फिल्मों के साथ ही जीना रास आने लगा। पिछले छह महीने से लगातार वह लगभग एक नौकरी के बराबर वक्त आॅनलाइन फिल्में देखने में बिताता है।

फिल्मों के लती युवा के माता—पिता के मुताबिक जब उनका बेटा सुबह उठता था तो उसका सबसे पहला काम टीवी ऑन करना होता था, लेकिन अब उसकी टीवी देखने में रुचि खत्म होने लगी। उसका खुद पर से सेल्फ कंट्रोल हट रहा है और ये चाहकर भी कोई और काम नहीं कर पा रहा। उसकी आंखें भी कमजोर हो गईं हैं। उसको थकान होने लगी और इसकी नींद भी बाधित हो रही थी।

फिल्म एडिक्ट हो चुके युवा का इलाज कर रहे डॉ मनोज कुमार शर्मा कहते हैं 'टैक्नोलॉजी के दुरुपयोग को रोकने के लिए सबसे अच्छी सलाह यह है कि उससे बचने के लिए उसी के मुकाबले का एक तंत्र विकसित किया जाए।'

डॉ. वर्मा कहते हैं, फिल्मों के नशेड़ी बन चुके युवा पर जब भी उसके परिवार ने नौकरी के लिए दबाव डाला तो वह सबकुछ अनसुना करके फिल्मों में खो जाता, यह शायद उसने अपनी परेशानियों से बचने के लिए एक तरीका अख्तियार किया होगा, जिसका वह नशेड़ी हो गया। जीवन की रोजमर्रा की समस्याओं को भूलने और नौकरी के दबाव के बदले आनंद लेने के लिए उसने यह तरीका अख्तियार किया और वह उसका लती बन गया।

क्यों हो रहे हैं नेटफ्लिक्स की फिल्मों के नशेड़ी

आज की तारीख में जब सिनेमाहॉल में जाकर लोग 500 से ज्यादा के स्नैक्स खा लेते हैं, महीनों अनगिनत फिल्में नेटफ्लिक्स चौबीसों घंटे मात्र 500 रुपये में उपलब्ध कराता है। यही कारण है कि लोग ज्यादा से ज्यादा इसके लती हो रहे हैं, खासकर युवाओं के बीच तो इसका गजब का क्रेज छा रहा है। इसकी तरफ आकर्षण का एक कारण यह भी है कि शुरू के 1 महीने के लिए यह नेटयूजर को फ्री में सब्क्रिप्शन देता है, जिस दौरान लोगों को इसकी लत लग जाती है और फिर लोग 500 रुपए महीने देकर अनगिनत फिल्में देख रहे हैं।

क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक

VIHMANS दिल्ली में वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. चंद्रशेखर कहते हैं, 'हमारी युवा पीढ़ी पहले ही इस तरह के कई नशों की गिरफ्त में पहले ही आ चुकी थीं, जैसे वीडियोगेम, इंटरनेट, यूट्यूब के लती। मगर सस्ती होती टैक्नोलॉजी में इस सहजता से नेटफ्लिक्स द्वारा तमाम राष्ट्रीय—अंतरराष्ट्रीय फिल्में बहुत कम दामों में मुहैया कराकर एक और विजुअल एडिक्शन या कहें जहर सहज उपलब्ध करा दिया है। युवा अपनी मूल समस्याओं से भागकर फिल्मों में अपनी खुशी—गम ढूंढ़ रहे हैं, यह अपनी जिम्मेदारियों से भागने का एक आसान तरीका भी उन्हें नजर आता है। परेशानी तब खड़ी होती है जब नशे के आदी हो रहे व्यक्ति का सेल्फ कंट्रोल खोना शुरू हो जाता है। सहज तरीके से उपलब्ध नेटफ्लिक्स फिल्मों के बारे में ही कहें तो यह कहीं न कहीं हमारे दिमाग से नियंत्रित होता है और फिल्मों या फिर अन्य तरीकों से मिलने वाली सडन एक्साइमेंट के बाद इंसान ऐसे नशों का आदी होना शुरू हो जाता है। मगर इनके पीछे कारण तनाव, अकेलापन या फिर किसी तरह का प्रेशर होता है, जिससे वर्तमान मुश्किलों से मुक्त होने या कहें कि उन्हें भूलने के लिए एक विकल्प के तौर पर इंसान इसका चुनाव करता है, मगर धीरे—धीरे उसका इतना आदी हो जाता है कि उसी में जीने—मरने लगता है।'

डॉ. चंद्रशेखर आगे कहते हैं, 'किसी चीज के नशे के साथ—साथ उसके कारणों को भी तलाशना बहुत जरूरी है, कि क्यों ​कोई विकल्प के तौर पर ली गई चीज नशे की हद तक पहुंच गई।'

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