नीतीश के फैसले से जदयू में असंतोष, टूट की आशंका

Update: 2017-06-28 15:25 GMT

कोविंद को समर्थन देने का ऐलान करते वक्त नीतीश को भरोसा था कि पूरी पार्टी आंख मूंदकर उनके फैसले के साथ रहेगी, लेकिन खुफिया सूत्रों की रिपोर्ट ने उनके अंदाजे को गलत साबित किया...

जनज्वार, दिल्ली। राष्ट्रपति पद के चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के समर्थन को लेकर बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन में ही नहीं, बल्कि महागठबंधन के अगुवा जनता दल (यू) में भी गहरे मतभेद पैदा हो गए हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री तथा जद (यू) अध्यक्ष नीतीश कुमार ने जहां अपनी पार्टी की ओर से कोविंद के समर्थन का ऐलान किया है, वहीं पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और संसदीय दल के नेता शरद यादव की अगुवाई में पार्टी का एक धड़ा कोविंद की उम्मीदवारी का समर्थन करने के पक्ष में नहीं है।

इस धड़े में पार्टी के करीब दो दर्जन विधायक भी शामिल बताए जाते हैं। पार्टी में पैदा हुआ यह विरोधाभास अगर खत्म नहीं हुआ तो पार्टी का विभाजन भी हो सकता है।

गौरतलब है कि जद (यू) ने जहां भाजपा के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का ऐलान किया है, वहीं लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस ने विपक्षी दलों की उम्मीदवार मीरा कुमार को अपना समर्थन दिया है।

महागठबंधन में बनी इस स्थिति को लेकर बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रही महागठबंधन की सरकार के गिरने का भी खतरा पैदा हो गया है। बताया जा रहा है कि नीतीश को खुफिया एजेंसी ने खबर दी है कि राष्ट्रपति चुनाव के मसले पर उनके फैसले से उनकी पार्टी के विधायकों में भी गहरा असंतोष है।

ये विधायक राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार के बिहार का ही होने की वजह से उनका विरोध करने में अपने को असहज महसूस कर रहे हैं। ये विधायक इस दलील के साथ मीरा कुमार के पक्ष में मतदान कर सकते हैं कि राष्ट्रपति के चुनाव के लिए सबसे पहले नीतीश कुमार ने ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर विपक्ष का सर्वसम्मत उम्मीदवार उतारने का प्रस्ताव दिया था, लिहाजा वे अपने पार्टी अध्यक्ष के इस प्रस्ताव पर अब भी कायम रहते हुए विपक्ष के उम्मीदवार को वोट देंगे।

दरअसल कोविंद को समर्थन देने का ऐलान करते वक्त नीतीश को भरोसा था कि पूरी पार्टी आंख मूंदकर उनके फैसले के साथ रहेगी लेकिन खुफिया सूत्रों की रिपोर्ट ने उनके अंदाजे को गलत साबित किया। बताया जाता है कि नीतीश के फैसले से असहमत विधायकों से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भी संपर्क बनाए हुए हैं।

उधर जद (यू) के वरिष्ठ नेता और सांसद शरद यादव भी पिछले एक सप्ताह से बिहार के दौर पर ही हैं। नीतीश कुमार भी अपने विधायकों से अलग-अलग मिलकर अपने फैसले को उनके गले उतारने की कोशिश में जुटे हुए हैं। अगर वे अपनी कोशिशों में कामयाब नहीं हुए तो तय है कि पार्टी विधायकों का एक धड़ा मीरा कुमार के पक्ष में मतदान करेगा।

ऐसी स्थिति में पार्टी टूट भी सकती है। इस टूट को टालने के नीतीश कुमार अपने फैसले से पीछे हटेंगे, इसकी तो संभावना बहुत कम है लेकिन वे अंतिम क्षणों में अपनी पार्टी के सांसदों और विधायकों को अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की छूट जरूर दे सकते हैं।

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