घर में बुजुर्ग मां और विकलांग बेटा कई दिन से थे भूखे, खाने के लिए नहीं था अनाज का एक दाना
कृषकाय मां और विकलांग बेटे के घर में खाने को अन्न का एक दाना तक नहीं, लॉकडाउन से अब तक कहीं से कुछ ला मांगकर खा लेते थे, पर इस लॉकडाउन ने उन्हें और अपंग बना दिया है, जनज्वार की पहलकदमी से अब मिल पायी है इस परिवार को मदद
मनीष दुबे की रिपोर्ट
जनज्वार। आज मजदूर दिवस है। देश के तमाम नेताओं राजनेताओं ने हो सकता है जरूरत या ग़ैरजरूरतमंदों को बहुत कुछ दे दिया हो। ढेरों शेयर लाइक कमेंट और ट्वीट हुए होंगे इस मजदूर दिवस पर। कागजी तौर पर मजदूरों की हालत बहुत अच्छी है या सुधर रही है, इस पर तमाम कांफ्रेंसें होती रहती हैं, मगर हकीकत लॉकडाउन में और खुलकर सामने आई है।
कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन ने मजदूरों और गरीब मजबूरों की हकीकत सामने ला दी है। ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में सामने आया है, जहां एक कृषकाय बुजुर्ग महिला जो कि उठ बैठ पाने में भी असमर्थ है और विकलांग बेटा पिछले कई दिनों से भूखों पेट सो रहे थे। उनके घर में अन्न का एक भी दाना नहीं था। कृषकाय मां की हालत देखकर तो कलेजा ही मुंह को आता है।
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उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में इस परिवार में मां इतनी बूढ़ी हो चुकी है कि उठना-बैठना तक कठिन है और उसका एक लड़का है, जो दिव्यांग है। दिव्यांग होने की वजह से वह कुछ काम भी नहीं कर सकता। लॉकडाउन की तमाम दुश्वारियों के बीच इस चिलचिलाती गर्मी के मौसम में इनके पास छाया के लिए घर में एक छत तक नहीं। घर में खाने को अन्न का एक दाना तक नहीं। अब तक कहीं से कुछ ला मांगकर खा लेते थे, पर इस लॉकडाउन ने उन्हें और अपंग बना दिया है।
जनपद फतेहपुर विकासखण्ड के असोथर ग्रामसभा के सैबसी गांव में भूखे रहे वृद्धा एवं उसका दिव्यांग पुत्र गरीबी, मजबूरी, असहाय न जाने ऐसी कितनी स्थितियों को एक साथ जी रहे हैं। यह परिवार जो की टूटे कच्चे मकान में जीवन यापन करने को मजबूर है। मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुकी वृद्ध मां, दिव्यांग पुत्र, खाने को अन्न का दाना तक नहीं है। इनकी तस्वीरें कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर डाली थीं।
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जनज्वार ने जब फतेहपुर की मरणासन्न मां और विकलांग बेटे के बारे में पड़ताल की तो भयावह सच्चाई सामने आयी। भूखों मर रहे इस परिवार की सहायता करने के लिए कोई भी सामने नहीं आया था। ग्राम प्रधान और आस-पड़ोस भी नहीं। इस सच्चाई के बाद जनज्वार ने वहीं के कुछ समाजसेवियों से संपर्क कर उनके लिए खाने की कुछ व्यवस्था कराई।
जनज्वार ने आज 1 मई को पेशे से पत्रकार लईक अहमद को लॉकडाउन में भूखों मर रहे इस परिवार के पास भेजा, जिन्होंने पीड़ित के घर जाकर दिल को दहला देने वाला वो मंजर अपनी आंखों से देखा और तस्वीरों में कैद कर लिया।
लईक कहते हैं, मां और बेटे दोनों की हालत नाजुक है और इन्होंने कई दिन से अन्न का एक दाना तक नहीं खाया है। लॉकडाउन और महामारी के बीच कोई पड़ोसी भी मदद को आगे नहीं आया। जनज्वार ने उसके बाद नजदीकी रोटीघर नामक संस्था से संपर्क किया, तो आज 1 मई की सुबह ही जनपद के प्रतिष्ठित अध्यापक सतीश द्विवेदी जी के साथ रोटीघर ने समाजसेवी स्मिता सिंह के माध्यम से इस गरीब परिवार को जाकर भोजन की व्यवस्था कराई।
साथ ही उक्त परिवार को लगभग 2 महीने का राशन, सब्जी समेत जरूरी सामान मुहैया कराया गया। जनज्वार की पहल के बाद बुजुर्ग महिला को इलाज के लिए अस्पताल में भी भर्ती कराने की पूर्ण प्रक्रिया एवं जिम्मेदारी गांव के ही अजय, विक्रम, वैभव के अलावा प्रशांत शुक्ल, कंचन मिश्र ने ली।
जबकि इस मामले में पड़ताल करने के लिए जब जनज्वार ने ग्राम प्रधान से मिलने का प्रयास किया तो उन्होंने लॉकडाउन में अपने परिजनों से घर में ही ना होने की बात कहलवा दी। इस मामले में गरीब मजदूरों और गांव वालों का वोट लेकर जीतने वाले प्रधान की असंवेदनशीलता पूरे तौर पर देखी जा सकती है।
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कल 30 अप्रैल की रात भी प्रधान से इस मामले में जानकारी लेने की कोशिश की गयी तो उसने सिर्फ़ पचास रुपए देकर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की। अब जनज्वार की पहलकदमी के बाद प्रशासन और समाजसेवी संस्थाओं की मदद से गरीब परिवार को प्रधानमंत्री आवास दिलाने की पहल की जा रही है।
वहीं दूसरी तरफ सरकार वाहवाही लूटने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को लाने के लिए रातोंरात विशेष आदेशों से वीवीआईपी ट्रीटमेंट सरीखी बसें भेजी चलाई गईं। जो तबका अमीरों की फैक्टरियां, रोजगार इत्यादि चलाकर उनकी तरक्की में भागीदार बनता है उनके लिए कुछ नहीं सिवाय तिरस्कार और पैदल चलते-चलते पड़े पैरों में अनगिनत फफोलों के।