भूख से मौत पर मंत्री ने कहा, मत फैलाया करो ऐसी खबरें कि सरकार की होती है बदनामी
चिंतामन मल्हार की मौत भूख से हुई थी कि बीमारी से इसकी हक़ीक़त तो पोस्टमार्टम होने के बाद ही सामने आती, मगर झारखंड सरकार के अधिकारियों ने मृतक के घरवालों पर दबाव बना बिना पोस्टमार्टम किये ही चिंतामन मल्हार का अंतिम संस्कार करवा दिया गया...
सुशील मानव
पिछले दो दिनों में इस देश की दो तस्वीरें देखीं। एक तस्वीर में 56 इंच के सीने को धत्ता बताते हुए नियंत्रण रेखा पार कर बहुत आगे निकल आई तोंद को भीतर करने के फेर में प्रधानसेवक जी क्रिकेटर विराट कोहली का फिटनेस चैलेंज स्वीकार करते हुए एक साथ कई आसन करते नजर आए, जिसे अलग—अलग एंगल से रिकॉर्ड करने के लिए कई प्रोफेशनल कैमरामैन हायर किये गए।
दूसरी तस्वीर झारखंड के 40 वर्षीय चिंतामन मल्हार की है, जिसकी भूख से मौत हो गई है। वैसे इंडिया के डिजिटल होने के बाद से पिछले एक साल में अकेले झारखंड राज्य में दस लोगों के भूख से मरने की आधाकारिक पुष्टि हुई है।
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गौरतलब है कि झारखण्ड के रामगढ़ जिले के मांडू प्रखण्ड के कुंदरिया बस्ती में 40 वर्षीय चिंतामन मल्हार की भुखमरी से जान चली। पत्रकारों के पूछने पर मृतक चिंतामन मल्हार के बेटे ने बताया कि उसके पिता को कुछ दिनों से भोजन नहीं मिला था। इसी दौरान चिंतामन की मौत की सूचना ग्रामीणों ने अधिकारियों को दे दी।
इसके बाद आनन-फानन में मांडू प्रखंड मुख्यालय से बीडीओ, सीओ ललन कुमार व सीआई संजीव भारती मौके पर पहुंचे और पीड़ित परिवार को पांच हजार रुपये देते हुए अनाज मुहैया करवाया। अधिकारियों के चिंतामन के घर पहुंचने के घंटे भर के भीतर ही सारा गेम सेट कर लिया गया और फिर थोड़ी देर बाद ही मृतक चिंतामन मल्हार के उसी बेटे से बयान बदलकर कहलवाया गया कि कल रात पिता ने खाना खाया था।
सवाल ये है कि अगर मृतक चिंतामन मल्हार भूख से नहीं मरा था तो अधिकारी उसके घर 15 किलो चावल, आलू और गेहूँ लेकर क्यों गए थे? जबकि मल्हार बस्ती की जमीनी हकीकत यह है कि यहां करीब तीस झोपड़ियां हैं, जिसमें लगभग 40-50 लोग रहते हैं। ये लोग यहां लगभग तीस-चालीस वर्षों से रहते आ रहे हैं। इनके पास आधार कार्ड, वोटर कार्ड सब है लेकिन इन्हें आजतक कोई सरकारी लाभ नहीं मिला? किसी किसी परिवार के पास तो राशन कार्ड तक नहीं है, और न ही रहने के लिये इनके पास रहने के लिए कोई छत है।
वहीं दूसरी ओर जिला समन्वय समिति की बैठक में भाग लेने रामगढ़ पहुंचे खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने कहा कि “भूख से मौत की खबर से राज्य बदनाम होता है, क्योंकि इस तरह की खबरें विदेश तक में छपती हैं। ऐसे में सोच समझकर आरोप लगाना चाहिए।'
वहीं जिला की उपायुक्त राजेश्वरी बी ने कहा कि यह अफवाह है। भूख से मौत नहीं हुई है, बल्कि बीमारी से मौत हुई है। खैर, अपना पाप छुपाने के लिए झारखंड सरकार के लोगों और अधिकारियों ने मिलकर मृतक के घरवालों पर दबाव बनाकर उनके राजीनामा से बिना पोस्टमार्टम किये ही चिंतामन मल्हार का अंतिम संस्कार करवा दिया गया।
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चिंतामन मल्हार की मौत भूख से हुई थी कि बीमारी से इसकी हक़ीक़त तो पोस्टमार्टम होने के बाद ही सामने आती। राज्य में भुखमरी का स्पष्ट मतलब है सरकार के एक महकमा और व्यवस्था तंत्र ही आरोपित है। फिर सरकार ने भुखमरी के आरोप के बावजूद मृतक का पोस्टमार्टम क्यों नहीं करवाया?
जनता की इच्छा के खिलाफ बलात् उन पर अपने जनविरोधी फैंसले थोपने वाली सरकार पोस्टमार्टम न कराने के पीछे म़ृतक के परिवार के राजी न होने का बहाना देकर जवाबदेही से नहीं भाग सकती।
वैसे भी राज्य में हुई भुखमरी के हर मामले को सरकार बीमारी से हुई मौत बताकर जवाबदेही से अपना पल्ला झाड़ती आई है। क्या बीमार नागरिक को मुफ्त इलाज देना सरकार की जिम्मेदारी नहीं हैं? क्या देश के एक चालीस वर्षीय व्यक्ति की बीमारी के चलते हुई मौत और उसे इलाज न दे पाने के जिम्मेवार जवाहर लाल नेहरू और किम जोंग हैं?
अगर राज्य और केंद्र सरकार कि नहीं तो आखिर देश के नागरिकों को स्वास्थ्य व चिकित्सा की गारंटी देने की जिम्मेदारी किसकी है? आखिर भुखमरी से हुई मौत को बीमारी से हुई मौत बताकर सारी जवाबदेही से मुक्त हो जाना इस देश के सरकारों के लिए इतना आसान बहाना क्यों है?