मोमबत्ती से कोरोना भागे न भागे, कोरोना मरीजों की मुश्किलें जरूर बढ़ जायेंगी
सोशल मीडिया पर एक बड़ा वर्ग लगातार साबित कर रहा है कि 5 अप्रैल को रात 9 बजे ग्रह-नक्षत्र ऐसी जगह हैं जहां से देश की सारी समस्याएं हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेंगी और इसमें जब अँधेरे से रोशनी निकलती है तब तो विशेष चमत्कार होता है....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। हमारे देश में कुछ ऐसी घटनाएँ होतीं हैं, जो दुनिया के सबसे पिछड़े देशों में भी नहीं होतीं। 22 मार्च की शाम पूरे देश में थालियाँ और चम्मच पीटकर उन तमाम लोगों को धन्यवाद कहा था, जो कोरोना के कहर से हमें बचाने में व्यस्त हैं। इस हरकत से कितना धन्यवाद उन तमाम डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों और आवश्यक सामान की आपूर्ति करने वाले लोगों तक पहुंचा, यह तो नहीं मालूम पर सुरक्षा उपकरण के अभाव में देश के 50 से अधिक डॉक्टरों को कोरोना वायरस के असर की खबरें आ गयीं, रेनकोट और हेलमेट लगाए नर्सों की तस्वीर सोशल मीडिया पर आ गयी और सुरक्षा उपकरण की मान करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को नौकरी से निकाले जाने की खबरें भी आ गयीं।
19 मार्च को मोदी जी ने थालियाँ बजाने का हुक्म दिया था, और 22 तारीख तक सोशल मीडिया पर अतिउत्साही भक्त यह साबित करते रहे कि थाली पीटने से सभी वायरस और बैक्टीरिया मर जाते हैं। किसी ने यह नहीं बताया कि अचानक चारों तरफ से शोर होने पर पालतू जानवर, सड़क के जानवर और यहाँ तक कि पक्षी भी परेशान हो जाते हैं, और असामान्य व्यवहार करते हैं। उस शाम को किसी ने भी पक्षियों के झुंड को शांति से बैठे नहीं देखा होगा, दूसरी तरफ सड़क पर या पालतू कुत्ते लगातार भौंक रहे थे, या बदहवास से दौड़ रहे थे।
इसके बाद 24 मार्च को केवल चार घंटे के नोटिस पर पूरे देश में बिना किसी तैयारी के 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा कर दी गयी। फिर, 2 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने देशवासियों को रविवार, 5 अप्रैल को रात में 9 बजे कुल 9 मिनट के लिए पूरे घर की लाइटें बंद कर बालकनी, छत या दरवाजे पर जाकर मोमबत्तियां, दिया, टोर्च या मोबाइल का टॉर्च जलाने को कहा। सोशल मीडिया पर इसकी व्यापक तैयारी स्पष्ट है, मीडिया भी लगातार उसे प्रचारित का रहा है।
खैर, मीडिया की मजबूरी भी है, सरकारी तौर पर मीडिया को कोरोना से सम्बंधित केवल सरकारी समाचार दिखाने को कहा गया है। सोशल मीडिया पर एक बड़ा वर्ग लगातार साबित कर रहा है कि 5 अप्रैल को रात 9 बजे ग्रह-नक्षत्र ऐसी जगह हैं जहां से देश की सारी समस्याएं हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेंगी और इसमें जब अँधेरे से रोशनी निकलती है तब तो विशेष चमत्कार होता है। देश की एक बड़ी आबादी मान चुकी है कि 5 अप्रैल की रात के बाद कोरोना का देश से नामो-निशाँ ख़त्म हो जाएगा।
देश की आबादी 130 करोड़ से अधिक है, इतना तो तय है कि इसमें से 90 करोड़ से अधिक आबादी उस दिन मोमबत्तियां जलाने वाली है। दिए अधिकतर घरों में दीपावली के आसपास ही खरीदे जाते हैं और इस समय जब लॉकडाउन है तब इसे खरीदने लोग अपने घरों से नहीं निकल पायेंगे। मोमबत्तियां जरूर लगभग हरेक घर में मिल जातीं हैं। इसलिए जाहिर है उस रात अधिकतर लोग मोमबत्तियां लेकर हाथों में खड़े होंगे।
अमेरिका के एनवायर्नमेंटल, हेल्थ एंड सेफ्टी आर्गेनाईजेशन के अनुसार अधिकतर मोमबत्तियां पैराफ्फिन वैक्स से बनती हैं जो पेट्रोलियम पदार्थों से बनाया जाता है। आजकल सुगन्धित मोमबत्तियां बाज़ार में खूब मिलती हैं, जिनको जलाने पर बहुत प्रदूषण होता है। सामान्य मोमबती भी घरों के अन्दर के प्रदूषण का एक बड़ा स्त्रोत है।
इसके जलाने पर कैंसर पैदा करने वाली गैसें जैसे बेंजीन, टोल्वीन, फोर्मलडीहाइड, एसीटैल्डिहाइड, एक्रोलिन और एसीटोन उत्पन्न होती हैं। इसके अतिरिक्त पार्टिकुलेट मैटर और कार्बन मोनोऑक्साइड भी उत्पन्न होता है। दीपावली में आप इन्हें घर के बाहर जलाते हैं, जबकि इस बार प्रधानमंत्री ने इन्हें जलाकर हाथ में लेकर खड़े होने को कहा है। जलने के डर को एब बार आप नजरअंदाज कर भी दीजिये, तो उन गैसों का क्या करेंगे जो सीधा आपके और आपके परिवार के लोगों के नाक में प्रवेश करेंगीं? इससे जो गैसें निकलतीं हैं उनकी तुलना आप डीजल इंजन वाले वाहन के स्टार्ट करने के समय के उत्सर्जन से कर सकते हैं।
सुगन्धित मोमबत्तियां से जो गैसे निकलतीं हैं उनसे विभिन्न एलर्जी हो सकती है, आँखों में पानी आ सकता है, चमड़े पर परेशानी आ सकती है, नाक अवरुद्ध हो सकता है, दमा यदि है तो इसका दौरा पड़ सकता है। जिन लोगों को पहले से दमा है या फिर सांस सम्बंधित दूसरी परेशानियां हैं उनके लिए मोमबत्ती का धुंआ घातक हो सकता है। हम सभी जानते हैं कि कोविड 19 जो कोरोनावायरस के कारण फ़ैल रहा है, वह भी श्वसन तंत्र को ही प्रभावित करता है, और जिन्हें पहले से यह समस्या है उनके लिए घातक है।
जब पूरा देश इस महामारी के चपेट में है, स्वास्थ्य सेवायें चरमरा रहीं हैं, अर्थव्यवस्था रसातल में हैं, करोड़ों लोग भूखे और बेरोजगार हैं – ऐसे में प्रधानमंत्री का मोमबत्तियां जलाने को कहना कुछ अजीब सा लगता है क्योंकि इससे संभव है कि कुछ और लोग बीमार पड़ जाएँ।
दूसरी तरफ देश के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर समुदाय का एक बड़ा वर्ग बता रहा है कि इस समय सबकुछ बंद होने के कारण बिजली की मांग 40 प्रतिशत भी नहीं है, यदि एक समय पर सारे घरों की बिजली बंद कर दी जायेगी तो संभव है नेशनल ग्रिड ही फेल कर जाए। पर, हुक्मरानों के फरमान से विज्ञान का कोई रिश्ता नहीं होता। हरेक ऐसा फरमान केवल अपने अहम् की तुष्टि के लिए होता है, और यह सब देश नोटबंदी के समय से झेल रहा है।