आधार के अभाव में नहीं बना था भूखों मर रहे परिवार का राशन कार्ड, प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा भूख नहीं बीमारी है मौत का कारण तो पत्नी बोली कुपोषण और भूख की भेंट चढ़ा है मेरा पति...
रांची, जनज्वार। मोदी जी का मिशन डिजिटल इंडिया और कितनी गरीबों की जान लेगा, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। हर चीज को आधार कार्ड से लिंक करना तो जैसे गरीबों—अनपढ़ों के लिए काल बनता जा रहा है। मोदी जी के डिजिटल इंडिया के सपने के चलते झारखंड में अब तक लगभग दर्जन भर लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं।
दिल्ली में 3 सगी बहनों की भूख से चलते हुई मौत के बाद भूख से मौत का यह दर्दनाक मामला झारखंड से सामने आया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक 24 जुलाई को रामगढ़ जिले के मांडू प्रखंड के चैनपुर गांव के 39 वर्षीय राजेंद्र बिरहोर की कुपोषण और भूख के कारण मौत हो गई।
जन संगठनों के राष्ट्रीय समन्वय (NAPM), भोजन का अधिकार अभियान और ह्यूमन राईट्स लॉ नेटवर्क (HRLN) के सदस्यों के तथ्यान्वेषण दल की रिपोर्ट के मुताबिक राजेंद्र बिरहोर के परिवार को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून अंतर्गत राशन कार्ड नहीं मिल रहा था। मांडू के प्रखंड विकास पदाधिकारी ने भी स्वीकारा कि आधार के अभाव में परिवार का राशन कार्ड नहीं बना था।
झारखंड में आधार कार्ड के कारण तीसरी मौत
जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि “आदिम जनजाति” समुदाय जिसमें बिरहोर समुदाय भी आता है, को अन्त्योदय अन्न योजना के तहत हर महीने 35 किलो राशन दिया जाए। यही नहीं झारखंड सरकार की योजना के मुताबिक भी आदिम जनजाति समुदाय के परिवारों को उनके घर पर निशुल्क राशन मिलता है। मगर राजेंद्र बिरहोर की मौत इन दोनों योजनाओं को ठेंगा दिखाती है, क्योंकि आधार के अभाव में इनमें से किसी का भी लाभ उसे नहीं मिल रहा था।
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक एक साल पहले कमज़ोरी के कारण राजेंद्र बिरहोर मजदूरी नहीं कर पा रहा था। उसकी पत्नी को सप्ताह में बमुश्किल 2-3 दिन काम मिलता था, जिससे छह बच्चों और पति—पत्नी को पेटभर भोजन मिलना बहुत कठिन था। इस परिवार को नरेगा में आखिरी बार 2010-11 में काम मिला था। यही नहीं इस परिवार को आदिम जनजातियों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन की 600 रुपये प्रतिमाह की राशि भी नहीं मिल रही थी।
राजेंद्र बिरहोर लगभग डेढ़ महीने पहले गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। परिजन इलाज के लिए मांडू के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, क्योंकि स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर नहीं रहते हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर ने राजेंद्र बिरहोर को रिम्स, रांची भेज दिया।
राजेंद्र बिरहोर की पत्नी शांति के मुताबिक परिवार के पास राशन कार्ड नहीं है, जिससे कि उन्हें राज्य सरकार की सार्वजनिक वितरण योजना के तहत सब्सिडी वाले अनाज मिल पाए। राजेंद्र को पीलिया था और परिवार के पास इतना पैसा नहीं था कि वे उसके लिए डॉक्टर द्वारा बताये गए खाद्य पदार्थ और दवाइयां खरीद पाएं। कुपोषण और भूख से राजेंद्र की मौत हो गई।
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गौरतलब है कि पिछले माह 14 जून को ही मांडू प्रखंड के चितामन मल्हार की भुखमरी से मौत हुई थाी। चितामन मल्हार की मृत्यु की जांच के दौरान यह बात भी सामने आई थी कि उनके कुन्दरिया बस्ती के मल्हार टोले के किसी भी परिवार के पास राशन कार्ड नहीं था।
झारखंड में पिछले नौ महीनों में भुखमरी से लगभग 13 व्यक्तियों की मौत होने की बात सामने आई है। यह भी कि इनमें से 7 की मौत के लिए तो सीधे—सीधे मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना आधार जिम्मेदार रहा। कहीं गरीबी और भूख से जूझ रहे लोगों को आधार न होने के चलते राशन नहीं मिल पा रहा तो कहीं अंगूठे का निशान मैच न होने पर राशन बंद कर दिया गया।