हर अस्पताल में दिखाया आयुष्मान योजना का गोल्डन कार्ड, इलाज नहीं मिलने से महिला की मौत

Update: 2019-03-24 11:09 GMT

आयुष्मान योजना का गोल्डन कार्ड था, इलाज नहीं होने पर परिजनों ने दिया धरना, बावजूद इसके नहीं मिला इलाज तो हो गई बीमार महिला की मौत

जनज्वार, देहरादून। उत्तराखंड की भाजपा सरकार द्वारा केंद्र की मोदी सरकार की तर्ज पर ही आयुष्मान भारत योजना में गरीबों को हर साल 5 लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा देने का वादा किया है, मगर इसकी हकीकत गाहे-बगाहे सामने आती रहती है।

हालांकि सरकार दावा करती है कि इसके तहत सरकारी अस्पतालों में इलाज की सुविधा उपलब्ध न होने पर मरीजों को चिह्नित कर निजी अस्पताल में मुफ्त इलाज की सुविधा दी जा रही है, प्रदेश के बाहर चिह्नित अस्पतालों में भी स्वास्थ्य सुविधाएं देने की तैयारी है और ताज्जुब कि ऐसा करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य है।

मगर सच्चाई कुछ और ही कहती है। आयुष्मान योजना का गोल्डन कार्ड होने के बावजूद लोग तड़प—तड़प कर मरने को अभिशप्त हैं। सरकार सिर्फ दावों और राजनीति भुनाने के लिए ऐसी योजनाओं को लागू करती है।

ऐसे ही एक मामला सामने आया है देहरादून से। यहां आयुष्मान योजना का गोल्डन कार्ड होने के बावजूद बीमार 30 वर्षीय महिला पिंकी प्रसाद को इलाज नहीं मिल पाया और हार्ट की बीमारी में बाईपास सर्जरी न होने के चलते बीमार पिंकी ने इलाज के अभाव में 22 मार्च को तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। इस मौत ने सरकारी दावों की पोल खोलकर रख दी।

परिजन आरोप लगाते हैं, उनके पास आयुष्मान कार्ड था, कई अस्पतालों में उन्होंने ये कार्ड दिखाया भी, लेकिन अस्पतालों ने फिर भी पिंकी का इलाज नहीं किया। गौरतलब है कि इससे पहले भी पिंकी के परिजनों ने मरीज को गोल्डन कार्ड का लाभ न मिलने को लेकर धऱना भी दिया था, पर शासन—प्रशासन किसी के कान में जूं नहीं रेंगी।

उत्तराखंड के कोटद्वार की रहने वाली महिला पिंकी प्रसाद के पास आयुष्मान योजना का गोल्डन कार्ड मौजूद था, मगर निजी अस्पताल ने उसका इलाज करने से साफ साफ मना कर दिया। परिजनों से कहा कि पहले पैसे लाओ फिर इलाज होगा। परिजनों के पास उसके इलाज के लिए पैसे नहीं थे, नतीजतन इलाज ना मिलने की वजह से पिंकी प्रसाद ने परिजनों के सामने ही दम तोड़ दिया।

पिंकी प्रसाद की मौत को हत्या करार देते हुए उत्तराखण्ड विकास पार्टी के मुजीब नैथानी कहते हैं, 'विश्वास नहीं होता कि पिंकी देवी नहीं रहीं। आयुष्मान योजना में लाभ न मिलने के कारण पिंकी प्रसाद अपने परिवार के साथ धरने पर बैठ गई थीं, मगर अफसोस शासन—प्रशासन को गरीबों की आवाज नहीं सुनाई दी। आयुष्मान योजना में इलाज नहीं होना था, सो इलाज के अलावा सब कुछ हुआ। आम आदमी के लिए छलावा हैं योजनायें और इन्हीं योजनाओं के नाम पर डाकू फिर से आ रहे हैं।'

जानकारी के मुताबिक उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल में आने वाले कोटद्वार जनपद के रमेशनगर की रहने वाली 30 साल की पिंकी प्रसाद को दिल की बीमारी थी। महिला की बाईपास सर्जरी होनी थी, कई दिन तक कोटद्वार के एक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद उसे हायर सेंटर रेफर कर दिया गया था। पिंकी प्रसाद के पास मोदी जी की बहुप्रचारित और गरीबों के स्वास्थ्य की रक्षा का दावा करने वाली आयुष्मान योजना का गोल्डन कार्ड होने के बावजूद प्राइवेट अस्पतालों में उसके परिजन चक्कर काटते रहे कि उसे इलाज मिल जाए, मगर किसी ने भी उसे एडमिट नहीं किया। जबकि सरकार दावा करती है कि निजी अस्पतालों में भी गरीबों का इलाज इस कार्ड से संभव है।

महिला की मौत पर उत्तराखंड विकास पार्टी के उपाध्यक्ष राजपाल सिंह रावत कहते हैं, 'पिंकी प्रसाद की मौत नहीं हुई, हत्या हुई है और मौजूदा भाजपा सरकार पिंकी की मौत की जिम्मेदार है। एक तरफ सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा लगवाती है तो दूसरी ओर बेटियों की हत्या करा रही है। पिंकी प्रसाद की आयुष्मान योजना का कार्ड बना होने के बावजूद कार्ड के आधार पर इलाज नहीं हुआ और भ्रष्टाचारी सरकार के नुमाइंदों ने पिंकी का इलाज न करने के अलावा वो सबकुछ किया जो लोकतंत्र के चीरहरण के समान है।'

पत्नी पिंकी प्रसाद की बीमारी का पता चलने के बाद विकास प्रसाद 7 जनवरी को सबसे पहले ऋषिकेश एम्स में दिखाने के लिए गए, जहां डॉक्टरों ने आयुष्मान योजना के तहत उनका इलाज करने से मना कर दिया। इसके बाद वह देहरादून स्थित महंत अस्पताल आयुष्मान भारत कार्ड लेकर पहुंचे, मगर यहां से भी उन्हें बेरंग लौटा दिया गया। वहां तो डॉक्टरों ने इलाज के लिए उन्हें लाखों की पर्ची थमा दी, जो उनके बस की बात नहीं थी। अस्पताल दर अस्पताल इलाज के लिए पत्नी को लेकर गए विकास प्रसाद जब थक गए तो उन्होंने शासन—प्रशासन के लिए सपरिवार धरना कर दिया। मगर वहां भी सिवाय आश्वासनों के कुछ हाथ नहीं आया और उनकी पत्नी ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया।

इलाज के अभाव में दम तोड़ने वाली पिंकी प्रसाद के परिजन कहते हैं कि इलाज के लिए वे उसे देहरादून के कई अस्पतालों में लेकर गए, लेकिन वो जहां भी जाते अस्पताल प्रशासन उन्हें लाखों रुपये का कोटेशन थमा देता, गरीबी की वजह से परिजन लाखों का बिल चुकाने में असमर्थ थे। आयुष्मान योजना का कार्ड उनके लिए मात्र छलावा साबित हुआ, क्योंकि जब जरूरत थी तब किसी ने उनकी सहायता नहीं की।

पिंकी के परिजन कहते हैं कि बड़ी मुश्किल से इलाज के अभाव में मरी पिंकी को एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया, मगर उस अस्पताल ने भी करीब ढाई लाख रुपये का कोटेशन दिया था। फीस भी बहुत ज्यादा थी। इतनी रकम पिंकी के परिजन जुटा नहीं पाये और न ही उनकी सामर्थ्य थी कि वे लाखों रुपए जुटा पाते और पिंकी ने अस्पताल की दहलीज पर दम तोड़ दिया।

सरकार की बड़ी—बड़ी योजनाओं का आईना दिखाता यह सिर्फ एक उदाहरण है, न जाने कितनी पिंकियां रोज इलाज के अभाव में दम तोड़ती है। मगर सवाल यह है कि आखिर गरीबों के लिए लागू की जाने वाली ऐसी योजनाओं की मॉनिटरिंग क्यों नहीं की जा रही है। निजी अस्पतालों द्वारा गोल्डन कार्ड होने के बावजूद मरीजों को क्यों भगाया जा रहा है।

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