सलमान खान और छल्लू राम दोनों ने मारा काला हिरण, फिर छल्लू को सजा ज्यादा क्यों?

Update: 2018-04-16 15:28 GMT

आंख पर पट्टी बंधे होने के बावजूद न्याय की देवी बड़े-छोटे, गरीब-अमीर, आम और खास में फर्क करती है। न्याय की देवी के दरवाजे से अमीर को तुरत-फुरत और गरीब का एड़िया घसीट-घसीट कर इंसाफ मिलता है....

आशीष वशिष्ठ की रिपोर्ट

सल्लू और छल्लू के बीच वैसे तो कोई रिशता और बराबरी नहीं है, लेकिन एक मामले में दोनों एक प्लेटफार्म पर खड़े दिखाई देते हैं। दोनों काला हिरण मारने के दोषी हैं। दोनों को अदालत ने गुनाहगार मानते हुए सजा सुनाई है। और यह भी कि सल्लू और छल्लू दोनों जमानत की जिंदगी बसर कर रहे हैं।

यहां बात हो रही है बाॅलीवुड के सल्लू यानी सलमान खान और हरियाणा के कुरूक्षेत्र जिले के किसान छल्लू राम की। मुंबई और कुरूक्षेत्र में भले ही तकरीबन डेढ हजार किलोमीटर का फासला हो, लेकिन गुनाह के मामले में सल्लू और छल्लू में गहरा रिश्ता है।

अदालत से सल्लू की पेशी से लेकर जमानत मिलने तक ‘नेशनल मीडिया’ ने ऐसा माहौल बनाया मानो देश में कोई आफत या जलजला आया हुआ है। सल्लू की पल-पल की गतिविधि पर मीडिया नजर रखे था। सल्लू को जमानत मिलते ही मीडिया सल्लू पुराण का सजीव प्रसारण बंद किया।

सलमान खान को जोधपुर की अदालत ने बीस साल पुराने काला हिरण शिकार मामले में दोषी मानते हुए पांच साल की सजा सुनाई थी। सजा सुनाने के दो दिन बाद अदालत ने सल्लू को सशर्त जमानत दे दी। वहीं दूसरी ओर काला हिरण के मामले में हरियाणा के कुरूक्षेत्र निवासी किसान छल्लू राम की किस्मत सल्लू जैसी नहीं थी। 21 जनवरी 2012 को छल्लू राम के काला हिरण शिकार का मामला सामने आया था।

22 जनवरी 2012 को उसके खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। अदालत में चली सुनवाई के बाद 18 जुलाई 2014 को ढाई साल के भीतर ही छल्लू राम समेत तीन लोगों को पांच साल की सजा कुरूक्षेत्र की पर्यावरण अदालत ने सुनाई थी। छल्लू को जमानत मिलने में 22 दिन का वक्त लगा था। फिलवक्त छल्लू राम जमानत पर हैं। सल्लू के मामले में अदालत में सुनवाई 20 साल चली। और दो दिन के अंदर जमानत भी मिल गयी।

सवाल यही खड़ा होता है। क्या आंख पर पट्टी बंधे होने के बावजूद न्याय की देवी बड़े-छोटे, गरीब-अमीर, आम और खास में फर्क करती है। क्या न्याय की देवी के दरवाजे से अमीर को तुरत-फुरत और गरीब का एड़िया घसीट-घसीट कर इंसाफ मिलता है?

क्या न्याय की देवी किसी के इशारे पर काम करती है? क्या न्याय की देवी का तराजू चांदी के सिक्कों से एक ओर झुक जाता है? जिस देश में करोड़ों केस अदालतों में लंबित पड़े हों; जहां न्याय की भीख की तरह मिलता हो; जहां न्याय से पहले रसूख और जेब देखी जाती हो, वहां सवाल बहुत होंगे।

वर्ष 2011 में दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल में 2-जी स्पैक्ट्रम के आरोपी भारत के निवर्तमान केन्द्रीय मंत्री ए. राजा बन्द थे। राजा को एक ऐसा कैदी मिला जो पिछले कई सालों से मात्र 20 हजार रुपये बॉण्ड के लिए न हो पाने के कारण जेल से आजाद नहीं हो पा रहा था। राजा ने जब यह जानकारी मिली कि मात्र 20 हजार रुपये के अभाव के कारण जेल में बन्द है तो उनका दिल पसीज गया और उन्होंने बीस हजार रुपये उस कैदी को दिये। वह कैदी उन रुपये से बॉण्ड भरकर जेल से मुक्ति पा गया।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एएन राय को ही हाईकोर्ट से न्याय मिलने में 39 साल लग गए थे। इसी तरह बहुचर्चित सूर्यानेल्ली बलात्कार मामले में केरल हाईकोर्ट ने फैसला देने में 18 साल लगा दिए। इसी तरह डीटीसी के कंडक्टर रामबीर सिंह पिछले चार दशकों से इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसी तरह डीटीसी के कंडक्टर रामबीर सिंह 41 सालों से इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं।

देश की अदालतों में लम्बित पड़े मुकदमों का आंकड़ा व ट्रायल अदालतों में लम्बित 2.54 करोड़ केसों सहित 3.2 करोड़ की संख्या को पार कर चुका है तथा दूसरी ओर देश की छोटी-बड़ी सभी अदालतों में न्यायाधीशों की भारी कमी चल रही है और न्याय प्रक्रिया की धीमी गति के कारण ही न्यायपालिका लगातार बढ़ रहे मुकद्दमों के पहाड़ तले दबी जा रही है।

यहां तक कि इस समय सुप्रीम कोर्ट में 6 तथा देश के हाई कोर्टों में 407 जजों की कमी है। हाई कोर्टों में जजों की कुल स्वीकृत संख्या 1079 के मुकाबले 1 अगस्त 2017 को 672 जज ही काम कर रहे थे तथा 407 जज कम थे। गौरतलब है कि 1987 में लॉ कमीशन ने प्रति 10 लाख की आबादी पर जजों की संख्या 50 करनें की अनुशंसा की थी, लेकिन आज 29 साल बाद भी हमारे हुक्मरानों ने लॉ कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की जहमत नहीं उठाई।

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