जब देश में सांप्रदायिक तनाव चरम पर है ऐसे कठिन समय की विसंगतियों को विमर्श के केन्द्र में रखकर बनाई गयी अपनी फिल्म 'उन्माद' लेकर आ रहे हैं शाहिद कबीर...
अतुल शुक्ला की रिपोर्ट
यह वह समय है जब धर्म का राजनीति में और राजनीति का धर्म में हस्तक्षेप बीते कई दशकों के मुकाबले काफी बढ़ा है। यह हस्तक्षेप समाज नयी विभाजक रेखाएं खींच रहा है। जिस अनुपात में राजनीतिक ध्रुवीकरण बढा है, सामाजिक समरसता में उसी अनुपात में कमी आयी है। मॉब लिंचिंग की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। भीड़ सड़कों पर घेर रही है और घरों में घुस रही है। लव जिहाद और रिवर्स लव जिहाद जैसे शब्द इसी समय की उत्पत्ति हैं।
ऐसे कठिन समय की विसंगतियों को विमर्श के केन्द्र में रखकर बनाई गयी अपनी फिल्म 'उन्माद' लेकर आ रहे हैं शाहिद कबीर। शाहिद कबीर मूलतः उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में जन्मे हैं। शुरुआती तालीम सहारनपुर में ही हासिल करने के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई दिल्ली के जामिया से की। शुरुआत से ही नुक्कड़ नाटकों में हिस्सा लेने वाले शाहिद ने आगे पढ़ाई के दौरान भी रंगमंच से अपना जुड़ाव कभी कम न होने दिया।
पिछले दस वर्षों से शाहिद मुम्बई में हैं। वहां रहते हुए भी थियेटर से उनका जुड़ाव बना रहा। इस बीच उन्होंने अपने हमख्याल लोगों के साथ कबीरा नामक ग्रुप बनाया जो बांद्रा सांताक्रूज जैसी जगहों पर बच्चों के बीच सामाजिक मूल्यों के प्रति आस्था जगाता है और मायानगरी की चकाचौंध से चुंधियाकर मुम्बई पहुंचे और काम की तलाश में दर-दर भटक रहे नौजवानों में उम्मीद जगाता है।
शाहिद कबीर ने साड्डा अड्डा, जिंदगी ऑन द रॉक्स, लिटिल गांधी जैसी कई फिल्मों में बतौर मुख्य असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया है। अब बतौर निर्देशक उनकी पहली फ़िल्म 'उन्माद' आ रही है।
फ़िल्म में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जहां साम्प्रदायिक तनाव चरम पर है, वहां के हालात में एक प्रेम कहानी बुनी गयी है। एक हिन्दू लड़का जो कि आजाद ख्यालों का है, उसे एक मुस्लिम लड़की से प्यार हो जाता है।
आर्थिक मजबूरियों के साथ ही सामाजिक परिस्थितियों का असर उनके प्रेम के आड़े आता है और इन्ही सब कठिनाइयों के बीच फ़िल्म में उनका प्यार परवान चढ़ता है और सहारनपुर से निकलकर फ़िल्म की कहानी मुम्बई तक पहुंचती है। फ़िल्म में मॉब लिंचिंग, गोकशी और गोरक्षा जैसे मुद्दों पर भी बात की गई है। राजनीतिक ध्रुवीकरण और उसके समाज पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को भी दिखाया गया है।
फ़िल्म के बारे में बात करते हुए शाहिद कबीर ने बताया कि उन्होंने प्रयास किया है कि फ़िल्म में मुद्दों पर बात तो की जाए, लेकिन हिंसा और तनाव उभारने की बजाए खूबसूरत प्रेम कहानी को ही दिखाया जाए।
यह प्रयास इसलिए भी आवश्यक था क्योंकि दर्शक जब सिनेमाघरों से बाहर निकलें तो उनके जेहन में फ़िल्म देखने से पैदा हुई कड़वाहट की बजाए प्यार के खूबसूरत अहसास की मिठास तारी रहे। फ़िल्म में गाने भी हैं और बाजार की जरूरत के हिसाब से आइटम सॉन्ग भी।
कबीरा मीडिया एंटरटेनमेंट और आदित्य रोशन फिल्म्स के संयुक्त बैनर के तले बनी 'उन्माद' का लेखन व निर्देशन शाहिद कबीर ने किया है। पखवारे भर पहले सेंसर बोर्ड की स्वीकृति के बाद आगामी 10 अगस्त को सिनेपोलिस के सहयोग से फ़िल्म पूरे देश के सिनेमाघरों में एक साथ प्रदर्शित होगी।
देखना होगा कि फ़िल्म अपने परिवेश में राजनीतिक व सामाजिक सरोकारों के कितने करीबतर गुजरते हुए दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरी उतरती है। बहरहाल, ऐसे संवेदनशील विषय पर एक खूबसूरत फ़िल्म बनाने की कोशिश के लिए शाहिद कबीर बधाई के पात्र हैं।
उन्माद का प्रोमो/ Promo of Film Unmad