राजनीतिक दल क्रिमिनल नेताओं का रिकॉर्ड नहीं करेंगे सार्वजनिक तो होगी सख्त कार्रवाई

Update: 2020-02-14 07:11 GMT

वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने पीठ को बताया था कि अदालती आदेश देने के बाद भी कोई असर नहीं हुआ है क्योंकि 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने वाले 43 फीसदी नेता आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में बेहतर तरीका ये है कि राजनीतिक दलों को ही कहा जाए कि वो ऐसे उम्मीदवारों को ना चुनें...

जे.पी.सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को एक अहम फैसले में राजनीतिक पार्टियों को अपने नेताओं के आपराधिक रिकॉर्ड जनता के साथ साझा करने का आदेश दिया है। उच्चतम न्यायालय का यह आदेश राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ काफी बड़ा कदम माना जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि जीतने की संभावना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार का चयन करने का एकमात्र कारण नहीं हो सकता है।

च्चतम न्यायालय ने राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि अगर राजनीतिक दल अपने प्रत्याशियों का क्रिमिनल रिकॉर्ड अपने-अपने आधिकारिक फेसबुक अकाउंट और ट्विटर हैंडल पर नहीं डालते हैं तो उन पर अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों पर निर्दलीय चुनाव लड़ने पर कुछ भी नहीं कहा है। जबतक आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों के निर्दलीय चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगती तबतक राजनीति के अपराधीकरण पर प्रभावी रोक संभव नहीं है। .

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स्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ निर्देश दिया है कि सभी राजनीतिक दल लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार के चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन के दो सप्ताह के भीतर जो भी पहले हो, अपने उम्मीदवारों के आपराधिक केसों का विवरण प्रकाशित करे। इस जानकारी को स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाना चाहिए, और आधिकारिक वेबसाइटों और पार्टियों के सोशल मीडिया हैंडल में अपलोड किया जाना चाहिए। सूचना में अपराध की प्रकृति और ट्रायल / जांच का चरण भी बताया जाना चाहिए।

पीठ ने चुनाव आयोग से कहा है कि वह आदेश का पालन ना करने वाले राजनीतिक दल के बारे में उच्चतम न्यायालय में अवमानना याचिका दाखिल करें। कोर्ट पार्टी के ऊपर जरूरी कार्रवाई करेगा। कोर्ट ने निर्देश दिया कि राजनीतिक दल को यह भी बताना पड़ेगा कि जिस उम्मीदवार पर अपराधिक मुकदमे लंबित हैं, उसने उसी को टिकट क्यों दिया? क्या वहां पर कोई बेदाग उम्मीदवार नहीं था? टिकट पाने वाले उम्मीदवार में ऐसी क्या योग्यता है जिसके चलते उसके आपराधिक रिकॉर्ड की उपेक्षा करके उसे टिकट दिया गया?

पीठ ने माना कि उम्मीदवारों का चयन योग्यता और उपलब्धि के आधार पर किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि निर्देशों के संबंध में अनुपालन रिपोर्ट चुनाव आयोग के समक्ष सभी पक्षों द्वारा दायर की जानी चाहिए। ऐसा करने में विफलता के कारण अवमानना कार्रवाई हो सकती है । चुनाव आयोग को इसका पालन करने के लिए कहा गया है।

पीठ ने 25 जनवरी को इस मुद्दे का परीक्षण करने पर सहमति जताई थी कि क्या राजनीतिक पार्टियों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव में टिकट देने से रोका जा सकता है। जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने इसे राष्ट्रहित का मामला बताते हुए कहा था कि इस समस्या को रोकने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे। पीठ ने चुनाव आयोग और याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय को एक सप्ताह के भीतर के सामूहिक प्रस्ताव देने के निर्देश दिए थे।

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रअसल पीठ वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कहा गया था कि इस मामले में 2018 में उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया था कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार और उनकी राजनीतिक पार्टियां आपराधिक केसों की जानकारी वेबसाइट पर जारी करेंगी और नामांकन दाखिल करने के बाद कम से कम तीन बार इसके संबंध में अखबार और टीवी चैनलों पर देना होगा, लेकिन इस संबंध में कदम नहीं उठाया गया।

चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने पीठ को बताया था कि अदालती आदेश का कोई असर नहीं हुआ है क्योंकि 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने वाले 43 फीसदी नेता आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में बेहतर तरीका ये है कि राजनीतिक दलों को ही कहा जाए कि वो ऐसे उम्मीदवारों को ना चुनें। पीठ ने इससे सहमति जताते हुए कहा था कि ये अच्छा सुझाव है। पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों को बैठकर एक सुझाव देने को कहा था।

भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय समेत कई याचिकाकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय से मांग की है कि चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को टिकट नहीं देने का दबाव डाला जाए। दागी नेताओं को टिकट देने पर चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई करे। भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा था कि उम्मीदवार अपने चुनावी हलफनामे में आपराधिक मामलों की जानकारी देने के सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2018 के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं। सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने याचिकाकर्ता के द्वारा राजनीतिक दलों को दिशा-निर्देश जारी करने की मांग पर सहमति दर्ज कराई थी।

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याचिकाकर्ता की मांग थी कि उच्चतम न्यायालय चुनाव आयोग को यह निर्देश दें कि वह सिंबल ऑर्डर 1968 और संविधान के अनुच्छेद 324 के मुताबिक अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड सार्वजनिक ना करने वाली राजनीतिक पार्टियों पर कार्रवाई करे, लेकिन कोर्ट ने इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए मामला सीधे अपने हाथ में ले लिया है और कहा है कि चुनाव आयोग आदेश का पालन ना करने वाली पार्टी के बारे में कोर्ट को जानकारी दें। कोर्ट उसके पदाधिकारियों पर अवमानना की कार्रवाई करेगा। उच्चतम न्यायालय का यह आदेश फिलहाल किसी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए ही लागू है। निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले दागी उम्मीदवारों को लेकर आज कोर्ट ने कुछ नहीं कहा है।

सके पूर्व उच्चतम न्यायालय ने 25 नवंबर को चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए आदेश पारित करे, ताकि तीन महीने के अंदर राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को टिकट देने से रोका जा सके। तब सीजेआई एसए बोबडे और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने उपाध्याय की जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए यह आदेश दिया था। उपाध्याय की मांग थी कि पार्टियों को अपराधिक छवि वाले लोगों को चुनाव के टिकट देने से रोका जाए। साथ ही उम्मीदवार का आपराधिक रिकॉर्ड अखबारों में प्रकाशित कराने का आदेश दिया जाए।

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