मुकुल राय की विदाई को भुगतेंगी ममता

Update: 2017-10-12 12:03 GMT

मुकुल राय जैसे फाउंडर नेता पार्टी छोड़ने लगे तो तृणमूल कांग्रेस के लिए यह शुभ संकेत नहीं है। ऐसे लोग एक-एक करके भाजपा में शामिल होते गये तो आने वाले चुनाव में भाजपा तृणमूल कांग्रेस को चुनौती देने में सक्षम हो जायेगी...

कोलकाता से मुन्ना लाल प्रसाद

तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक, पार्टी के कद्दार नेता एवं पूर्व रेल मंत्री मुकुल राय ने आखिरकार पार्टी से पूरी तरह नाता तोड़ लिया है। बुधवार 11 अक्तूबर को पार्टी के सभी पदों और पार्टी के सांसद पद से भी इस्तीफा देते हुए दिल्ली में राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को अपना इस्तीफा सौंप दिया। निलंबन के बाद भाजपा के पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय से उनकी मुलाकात के बाद अटकलें तेज हो गईं कि वे भाजपा के साथ जा सकते हैं।

ममता बनर्जी के लिए यह एक बड़ा झटका कहा जा सकता है। बीते 25 सितंबर को मुकुल ने ऐलान किया था कि दुर्गा पूजा के बाद वह पार्टी छोड़ देंगे जिसके बाद उनको ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ का हवाला देकर छह साल के लिए टीएमसी से निलंबित कर दिया गया था।

उनके लिए निलंबन का क्या मतलब है, यह समझ से परे है। हां, पार्टी की अपनी औपचारिकता हो सकती है। हालांकि मुकुल राय ने कहा कि वे भारी मन से पार्टी छोड़ने का निर्णय ले पाए।

मुकुल राय तृणमूल कांग्रेस के गठन से लेकर अब तक पार्टी में ममता बनर्जी के बाद दूसरे नंबर पर रहे हैं। यहां तक कि पार्टी के पंजीयन के लिए चुनाव आयोग में इन्होंने ही हस्ताक्षर किये थे।

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जनवरी 1998 को तृणमूल कांग्रेस अस्तित्व में आयी थी, जबकि मुकुल राय का कहना है कि वे 17 दिसंबर 1997 से ही पार्टी से जुड़े हैं। ऐसा व्यक्ति जिसकी भूमिका पार्टी गठन से लेकर पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में अहम रही हो, का पार्टी छोड़ देना कम महत्व नहीं रखता। तृणमूल कांग्रेस में ये एक ऐसे कद्दावर नेता थे जिनकी चुनाव प्रबंधन में अहम भूमिका रहती थी।

मुकुल एक कुशल कार्यकर्ता, पार्टी और चुनावी मैनेजमेंट के महारथी थे। ममता बनर्जी अगर तृणमूल कांग्रेस का चुनावी चेहरा हैं तो मुकुल राय चुनावी प्रबंधन के माहिर खिलाड़ी रहे। उन्हें पता है कि चुनाव जीतने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाने होंगे और कहां क्या करना है। पार्टी को दो बार सत्ता तक पहुंचाने में इनके चुनाव प्रबंधन की अहम भूमिका रही है।

मुकुल और ममता के बीच मतभेद अचानक नहीं हुआ है। दोनों के बीच मतभेद की प्रक्रिया तो 2014-15 में शारदा चिटफंड घोटाले में सीबीआई के द्वारा पूछताछ करने के समय से ही शुरू हो गई थी। उस समय ऐसा लगने लगा था कि अब दोनों एक दूसरे से अलग हो जायेंगे। यहां तक कि कभी लगा कि ये तृणमूल छोड़ भाजपा में शामिल होंगे, तो कभी लगा कि अपनी अलग ही पार्टी बनायेंगे।

बहुत दिनों तक इस तरह के कयास लगाये जाते रहे और दोनों के बीच मतभेद बरकरार रहा। राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह भी रही कि मुकुल ने अपने समर्थकों द्वारा अलग पार्टी के लिए रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है। लेकिन जैसे ही विधानसभा चुनाव आया कि अचानक कौन ऐसी हवा चली कि ये सारी अटकलें निरर्थक प्रमाणित हुई। ममता और मुकुल के बीच कौन सी ऐसी बात हुई कि दोनों अपने-अपने मतभेद भुलाकर चुनाव में एक साथ खड़े नजर आये।

ममता—मुकुल के आपसी तालमेल ने पुनः पार्टी को बहुमत के साथ सत्ता में पहुंचा दिया। लगा कि सबकुछ ठीक हो गया, लेकिन उपर से सब ठीक-ठाक लगते हुए भी संभवतः अंदर ही अंदर द्वंद्व चलता रहा। यह द्वंद तृणमूल कांग्रेस द्वारा आयोजित शहीद दिवस के अवसर पर तब दिखाई दिया जब मंच पर ममता बनर्जी द्वारा मुकुल राय को नजरअंदाज किया गया। उस समय से फिर दूरियां बढ़ने लगी। कुछ दिन पूर्व ममता बनर्जी ने उनको पार्टी के लगभग सभी पदों से हटाकर उन्हें हाशिए पर धकेल दिया। अंततः मुकुल राय ने 25 सितंबर को पार्टी छोड़ दी।

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सवाल उठ रहे हैं कि मुकुल राय जैसे दिग्गज नेता तृणमूल कांग्रेस छोड़ने के बाद कहां जायेंगे? क्या वे भाजपा में जाने की तैयारी में लगे हैं या कोई नयी पार्टी बनाने की तैयारी में हैं? वैसे अभी कुछ दिन पहले ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने हाजरा की एक सभा में वक्तव्य देते हुए कहा था कि तृणमूल कांग्रेस के कई कद्दावर दिग्गज नेता दुर्गा पूजा तक भाजपा में आयेंगे।

मुकुल राय का पार्टी छोड़ना कहीं उसी की कोई कड़ी तो नहीं। ऐसा तो नहीं कि मुकुल राय और दिलीप घोष के बीच पहले से ही यह तय कर लिया गया हो या मुकुल राय ने पहले ही इसका आभास दे दिया हो कि दुर्गा पूजा तक वे पार्टी छोड़ देंगे? अगर दिलीप घोष के वक्तव्य में सच्चाई है तो ऐसा लगता है कि अंदर ही अंदर कुछ अभी भी तैयारी चल रही है और मुकुल राय का भाजपा में जाना तय है।

संभव हो वे इसलिए अपना पत्ता नहीं खोल रहे हों कि जब पूरी तैयारी हो जाए तो कुछ भी घोषणा की जाए। कहीं ऐसा तो नहीं कि मुकुल राय भीतर ही भीतर अपने समर्थकों को तैयार करने में लगे हैं और एक साथ कहीं भी शामिल होने की घोषणा करना चाहते हैं?

इधर भाजपा की नजर असम के बाद अब पूरी तरह से पश्चिम बंगाल पर केन्द्रित है। वह हरसंभव प्रयास में है कि पश्चिम बंगाल में भी उसकी पकड़ मजबूत हो। लेकिन उसके पास यहां पार्टी में ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसको सामने रखकर चुनाव मैदान में उतर सके। 2015 में असम में भी भाजपा की यही स्थिति थी, लेकिन कांग्रेस के हेमंत बिश्वा आकर भाजपा में शामिल हो गये और उनको सामने रखकर भाजपा ने असम विधानसभा चुनाव में भारी सेंध लगाई थी।

पश्चिम बंगाल में भी भाजपा ऐसे चेहरे की तलाश में है। कहीं ऐसा न हो कि मुकुल राय के रूप में भाजपा को वह चेहरा मिल जाय और असम की तरह यहां भी आगामी चुनावों में सेंधमारी करने में सफल हो जाय।

हालांकि पश्चिम बंगाल में शारदा घोटाला एक ऐसा घोटाला है जिसको लेकर 2014 के लोकसभा एवं 2016 में विधानसभा चुनाव में भाजपा एवं अन्य विपक्षी पार्टियों ने एक चुनावी मुद्दा बनाया था। मुकुल राय पर भी शारदा घोटाले को लेकर पार्टी ने निशाना साधा था और सीबीआई ने मुकुल राय से इस संबंध में पूछताछ भी कर चुकी है। उनका भी नाम इस घोटाले में शामिल है।

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कई बार बीजेपी के केन्द्रीय नेता इस मुद्दे को लेकर मुकुल राय पर भी निशाना साधा है। ऐसे में मुकुल राय को भाजपा में शामिल होने पर विरोधियों को भाजपा के विरूद्ध प्रश्नचिन्ह खड़ा करने के लिए एक मुद्दा मिल जायेगा, क्योंकि भाजपा हमेशा भ्रष्टाचार पर जीरो आॅलरेंस की बात करती है।

दूसरी बात यह कि मुकुल राय का चेहरा जननेता का नहीं रहा है। वे अब तक न तो विधानसभा और न ही लोकसभा में ही कभी विजयी हुए हैं। ऐसे में इनका चेहरा कितना करिश्माई होगा, यह कहना मुश्किल है।

इन सबके बावजूद यह भी नहीं कहा जा सकता है कि मुकुल राय का कोई कद नहीं। मुकुल राय अब टीएमसी के असंतुष्टों के साथ-साथ अपने समर्थकों, साथ अन्य पार्टी से निष्कासित या असंतुष्टों को तो संगठित करने में कारगर भूमिका अदा कर ही सकते हैं। ऐसे में जिस पार्टी में जायेंगे उनके कद का बढ़ना स्वाभाविक है।

हाल ही तृणमूल सुप्रीमो एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कालीघाट स्थित अपने आवास में पार्टी की कोर कमिटी की बैठक में कहा था कि जो पार्टी छोड़कर जाना चाहे, जा सकते हैं। इसका मतलब है कि उन्हें पता है कि अनेक तृणमूल नेता भाजपा के संपर्क में हैं और पार्टी छोड़ने वाले हैं। अगर यह सही है तो लगता है कि आने वाले समय में और भी बहुत ऐसे हैं जो तृणमूल कांग्रेस छोड़ने वाले हैं। अब तक तो यही देखा गया कि लगातार दूसरी पार्टियों को छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने का क्रम चल रहा था।

यहां तक कि चुनाव चाहे जिस पार्टी से जीते, जीतने के बाद न जाने कौन सा ऐसा जादू चलता था कि उसका दिल बदल जाता था और दल बदल कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो जाते थे। अब थोड़ा स्थिति में परिवर्तन हुआ है। तृणमूल छोड़ने का क्रम शुरू हुआ है। ऐसे में यह टूट कहां जाकर रुकेगी नहीं कहा जा सकता। तृणमूल कांग्रेस से इस तरह से निकलने वाले नेता कहीं ऐसा न हो कि पार्टी के लिए संकट पैदा कर दें।

मुकुल राय जैसे फाउंडर नेता पार्टी छोड़ने लगे तो तृणमूल कांग्रेस के लिए यह शुभ संकेत नहीं है। ऐसे लोग एक-एक करके भाजपा में शामिल होते गये तो आने वाले चुनाव में भाजपा तृणमूल कांग्रेस को चुनौती देने में सक्षम हो जायेगी। कहीं मुकुल राय के पार्टी छोड़ने से तृणमूल कांग्रेस की उलटी गिनती न शुरू हो जाए।

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