दलित की शवयात्रा को सवर्णों ने कर्नाटक में नहीं गुजरने दिया अपने घरों के आगे से

Update: 2019-11-02 11:57 GMT

सवर्ण नहीं ले जाने देते दलितों को डेड बॉडी घर के सामने तो मजबूरन शवयात्रा ले जानी पड़ती है कचरे के ढेर से होकर, ग्रामीण शासन-प्रशासन से लगा चुके हैं इस संदर्भ में कई बार गुहार, जोड़ चुके हैं हाथ-पैर सबके आगे मगर नहीं होती कोई सुनवाई...

जनज्वार। भारत एक लोकतांत्रिक देश होने के साथ साथ विभिन्न जातियों में बंटा हुआ देश है, जिसके कारण जाति हमारे समाज से लेकर राजनीति तक गहरा असर छोड़ती है। चुनावों के दौरान भी जनता अपने प्रतिनिधि को जाति के आधार पर वोट देने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। मानव अधिकार वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 165 मिलियन लोग जातिवाद के शिकार हैं। बावजूद इसके जातिवादी उत्पीड़न भी हमारे देख में हाइट पर पहुंचा हुआ है।

भारत में जातिवादी उत्पीड़न की घटनाएं मीडिया में छाई रहती हैं। हाल ही में एक मामला तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले के वीधि गांव में सामने आया है, जहां सवर्णों ने दलितों को अपने घर के आगे से शव तक ले जाने की इजाजत नहीं दी। दलितों को मृत व्यक्ति का शव कूड़े के ढेर से होकर गुजरना पड़ा।

जानकारी के मुताबिक कोयंबटूर के गांव में एक दलित व्यक्ति की मौत हो गई थी, जिसके बाद गांव के कुछ लोग जब पूरी तैयारी के साथ शव यात्रा को लेकर निकले तो उसी गांव के सवर्ण जाति के लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया। दलितों ने आरोप लगाया कि वीधि गांव के ऊंची जाति के लोग अपने घर के सामने से शवों को नहीं ले जाने देते हैं, जिस कारण उन्हें कूड़े के ढेर के पास से होकर शव ले जाना पड़ा।

इंडिया टुडे में प्रकाशित ख़बर के अनुसार, दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले 73 वर्षीय पप्पामल की कई दिनों से तबीयत खराब होने के कारण मौत हो गयी। आसपास के लोग अंतिम संस्कार के लिए जब शव यात्रा लेकर निकले तो सवर्णों ने उन्हें अपने घरों के सामने से नहीं गुजरने दिया, जबकि ये लोग वहीं पर रहते हैं। अंतिम संस्कार के लिए इन लोगों को शव अम्बेडकर नगर ले जाना था, मगर सवर्णों के विरोध के कारण शव को आधा किलोमीटर की जगह 2.5 किलोमीटर लंबे रास्ते से गुजरना पड़ा।

नज्वार ने जब घटना को जानने के लिए कोयंबटूर के कमिश्नर ऑफिस में बात करनी चाही तो किसी प्रकार का साफ जबाव नहीं मिला। कांस्टेबल आंनद का कहना था कि इस घटना की जानकारी हमें मिली है, लेकिन पूरी घटना क्या है इसका पता अभी तक नहीं चल पाया है।

स्थानीय दलितों के मुताबिक, इस तरह का व्यवहार हमारे साथ पहली बार नहीं किया जा रहा है। सवर्ण समुदाय के पास अच्छी सड़कें हैं, जिसके कारण वो लोग आसानी से श्मशान तक पहुंच जाते हैं। इन सड़कों पर सिर्फ सवर्णों का अधिकार है। हमारे लिए श्मशान घाट तक पहुंचना बड़ी चुनौती है। मानसून के मौसम के दौरान, यह स्थिति और भी खरब हो जाती है और हमें बहुत लंबा रास्ता अपनाना पड़ता है. हमारे समुदाय के लिए जो जमीन दी गई है, वहां आजादी के 70 साल बाद भी बिजली और पानी जैसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। आधा किलोमीटर रास्ते के लिए हमे 2.5 किलोमीटर किलोमीटर से ज्यादा चलकर श्मशान घाट जाना पड़ता है। सिर्फ इसलिए क्योंकि हम निचली जाति के लोग हैं। निचली जाति होने के कारण अधिकारी भी हमारी नहीं सुनते हैं।

मिलनाडु में जातिवाद और अंधविश्वास की खबरें अक्सर सुर्खियों में रहती हैं। इसी साल अगस्त के महीने में 22 तारीख को तमिलनाडु के वेल्लोर से एक ख़बर सामने आई थी, जिसमें इसी तरह जातिगत भेदभाव का मामला सामने आया था। इसमें सवर्णों ने एक दलित व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए अपने घर के सामने से नहीं गुजरने दिया, जिसके कारण मृतक के शरीर को 20 फीट ऊंचे पुल से नीचे पहुंचाया गया था। ये मामला तब सामने आया है जब गांव के एक लड़के ने विरोध का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया था।

हालांकि शिक्षा के मामले में तमिलनाडु शिक्षित राज्यों में शुमार है। 2011 की सेन्सस (census) रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु में शिक्षा का स्तर 80.33 था, लेकिन उसके बाद भी जातिवाद और अंधविश्वास को लेकर सबसे ज्यादा खबरें यहीं से आती हैं।

लितों के ऊपर बढ़ रहे अत्याचार के कारण हमारे देश में दलित वर्ग धर्म परिवर्तन तक को मजबूर हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी के गृहराज्य गुजरात में बड़े स्तर पर दलित धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। हिंदू धर्म में छुआछूत और भेदभाव के शिकार दलित लगातार बौद्ध धर्म को अपना रहे हैं, जिसके चलते राज्यों में अलग अलग जगह से लगभग 1500 लोग बौद्ध धर्म को अपना चुके हैं।

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