अजीम प्रेमजी ने कहा, मजदूर अधिकार कानून खत्म करने से देश की अर्थव्यवस्था में नहीं होगा कोई सुधार

Update: 2020-05-19 10:33 GMT

कोरोना संकट काल में देश के सबसे बड़े दानदाता पूंजीपति के रूप में उभरे अजीम प्रेमजी ने साफ कहा है कि अगर सरकार ये सोचती है कि श्रम कानून खत्म करके अर्थव्यवस्था का मजबूत कर लेगी तो यह हास्यास्पद है...

जनज्वार ब्यूरो। देश में कोरोना संकट के बाद अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा है जिसको देखते कई राज्यों की सरकारें श्रम कानूनों को निलंबित करने पर विचार कर रही हैं। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे देश में निवेश आएगा लेकिन भारत के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक अजीम प्रेमजी ने इन श्रम कानूनों को निलंबित करने के विचार की आलोचना की है।

जीम प्रेमजी ने अंग्रेजी समाचार पत्र 'द इकोनोमिक टाइम्स' लिखे लेख में कहा कि लॉकडाउन के दौरान की प्रवासी मजदूरों की मौतें कभी माफ करने लायक नहीं है। लेख में उन्होंने लिखा, 'सोलह युवकों को ट्रेन से कुचल लिया गया। इसकी अभी डिटेल से जांच की जा रही है लेकिन हम मूल सच को जानते है कि वे उन लाखों लोगों की तरह भूखे मर रहे थे जिन्होंने अपनी आजीविका खो दी है। इसलिए उन्होंने सैकड़ों किलोमीटर दूर से अपने घरों तक जाने का फैसला किया और पटरियों पर सो गए कि कोई ट्रेन नहीं चलेगी, क्योंकि लॉकडाउन था। महामारी से निपटने के लिए किसी प्रकार का लॉकडाउन जरूरी था लेकिन ये मौतें एक 'अक्षम्य' त्रासदी हैं।'

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न्होंने आगे लिखा, 'मैं 'अक्षम्य' शब्द का हल्के में इस्तेमाल नहीं करता हूं। दोष हमारा है जो हमने ऐसा समाज बनाया है। यह त्रासदी उन अत्यंत कष्टदायी घटनाओं में से एक है जिससे हमारे वो लाखों करोड़ों नागरिक प्रभावित हो रहे हैं जो सबसे कमजोर और सबसे गरीब हैं। यह वास्तविकता है जिसके जरिए हम जी रहे हैं और इसलिए यह सुनकर हैरानी हुई कि विभिन्न राज्य सरकारें उन व्यवसायों को प्रोत्साहित करने के लिए उन श्रम कानूनों को निलंबित करने पर विचार कर रही हैं जो श्रमिकों की रक्षा करते हैं। इसमें औद्योगिक विवादों को निपटाने, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों की स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति और न्यूनतम मजदूरी, ट्रेड यूनियनों, अनुबंध श्रमिकों और प्रवासी मजदूरों से संबंधित कानून शामिल हैं।'

न्होंने आगे लिखा, 'उन सोलह युवकों की मौत हो गई क्योंकि हमारे पास लगभग कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है या बहुत कम श्रम सुरक्षा है। न केवल संरचनात्मक गरीबी और असमानता के कारण बल्कि श्रम सुरक्षा न होने के चलते हजारों लाखों श्रमिकों पर महामारी की सुनामी टूट पड़ी। मेरा सारा कामकाजी जीवन श्रमिक संघों और श्रम कानूनों से निपटा है। ऐसा नहीं है कि पिछले 50 वर्षों में मैंने काले कानूनों और अनुचित व्यापार संघो से निपटा नहीं है लेकिन पिछले कुछ दशकों में श्रम कानून ऐसे बदल गए हैं कि वे शायद उद्योग की शीर्ष बाधाओं में से एक हैं। इस दौरान सामाजिक सुरक्षा उपायों में भी वृद्धि नहीं हुई है, इस प्रकार नियोजितता की अनिश्चितता बिगड़ रही है।'

Full View data-style="text-align: left">'पहले से ही ढीले कानूनों को लागू करने से आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा नहीं मिलेगा, यह केवल कम वेतन पाने वालों और गरीबों की स्थितियों को और खराब करेगा। इस तरह के उपाय श्रमिकों और व्यवसायों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करते हैं। यह एक गलत पसंद है। हमें केवल पिछले कुछ हफ्तों के अनुभवों पर ध्यान देने की जरूरत है जिसमें प्रवासी श्रमिकों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार और श्रम के बीच सामाजिक अनुबंध को समाप्त कर दिया। इसने व्यवसायों को कम करके श्रम के बड़े पैमाने पर रिवर्स माइग्रेशन को गति दी। इस प्रकार इस तरह के उपाय न केवल अन्यायपूर्ण हैं, बल्कि दुविधापूर्ण भी हैं। श्रमिकों और व्यवसायों के हितों को विशेष रूप से अभूतपूर्व आर्थिक संकट के समय में गहराई से पंक्तिबद्ध किया गया है।'

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'इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें बहुत बड़े मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। यह आर्थिक संकट समान रुप से ग्रामीण कृषि क्षेत्र, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वरोजगार और छोटे व्यवसाय को भी नष्ट कर रहा है। ये क्षेत्र औपचारिक संगठित क्षेत्र की तुलना में कई गुना अधिक लोगों की आजीविका का सपोर्ट करते हैं। ज्यादातर लोग जो महसूस करते हैं उससे कहीं अधिक गंभीर स्थिति यह है। इसे मैं अपने अनुभव से कह रहा हूं। जैसा कि पिछले 50-55 दिनों से देश महामारी और मानवीय दुःख से निपटने की कोशिश कर रहा है, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन (विप्रो एनएसई -0.87% के साथ) ने मानवीय और स्वास्थ्य सेवा दोनों मोर्चे पर बड़े पैमाने पर काम किया है।

Full View कोशिशें 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 375 जिलों में अब भी जारी हैं। यह केवल हमारी गहरी जमीनी उपस्थिति के कारण ही संभव हो पाया है। हमारी टीम के 1600 सदस्यों के साथ 10,000 से ज्यादा सरकारी स्कूलों के शिक्षकों और 50,000 से अधिक हमारे सहयोगी सदस्यों को हमने वित्तीय अनुदान के माध्यम से सपोर्ट किया है। हमारे विश्वविद्यालयों के 2000 पूर्व छात्र महत्वपूर्म भूमिका निभा रहे हैं जो हमारी जमीनी मौजूदगी को की स्थिति को सक्षम कर रहे हैं। यह हमें आर्थिक संकट का वास्तविक अर्थ देती है। आर्थिक क्षति और आने वाले मानवीय संकट अपार हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम अभी भी महामारी से निपटने के शुरुआती चरण में हैं।'

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