खेत में पड़ी यह लाश बुंदेलखंड के एक किसान की है, किसी नेता की नहीं

Update: 2018-06-09 09:09 GMT

जिस देश के अन्नदाता ऐसे मरेंगे उस देश की सत्ता को डरना ही चाहिए, क्योंकि रोटी-पानी को मोहताज लोग हमेशा मरते ही नहीं हैं, कभी—कभी मारते भी हैं। किसानों का मरना नेताओं के लिए उतना भी गौर करने लायक नहीं है, जितना उनके अपनी कुत्ते-बिल्लियों का मरना...

बांदा के सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर की रिपोर्ट

बांदा, उत्तर प्रदेश। बकरी चराते हुए भूख और लू की चपेट में आकर अगर बुंदेलखंड का तस्वीर में दिख रहा ये किसान मर गया तो इसमें सरकार क्या करे? क्या सरकार सबका पेट भरे, सबके लिए भरपेट खाने का इंतज़ाम करे? फिर तो हो चुका देश का विकास।

सरकार देश का विकास करे या घर-घर जाकर किसानों का पेट भरे, देखे कौन भूख से मर रहा है और कौन नहीं? अरे भाई किसान अपने पेट के लिए बकरी चरा रहा था, कोई देशहित में व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी और आईटी सेल में तो काम नहीं कर रहा था और न ही लव जिहाद का स्वयंसेवक था?

हो सकता है इस किसान की मौत पर कुछ ऐसी ही बातें सरकार और उसके पक्षधरों से कहने-सुनने को मिले। किसान आंदोलनों पर कुछ ऐसे ही अजब-गजब बयां आने लगे हैं।

खैर, इन बयानों से अलग किसानों की हकीकत यह है कि कभी हीरा तो कभी बंशी हलाल हो गए, किसान मरते रहे और देश के नेता दलाल हो गए, आज राजनीति में मजहब और आरोप ही प्राथमिकता है, अन्नदाता की आत्महत्या के बौने सवाल हो गए... संसद के हरम में बैठी मीडिया किसान आन्दोलन को अछूत समझती है।

आखिर क्यों- किनके लिए लोकतंत्र के ऐसे ख्याल हो गए? दिनरात खेतों पर सूखी रोटी, प्याज के सहारे गुजारते है जो सूखे की मार, उनके लिए आज मौन सारे मलाल हो गए...! बड़े मुर्दानशीन आजादी के लाल हो गए!

तस्वीर एक बार पुनः सात जून को झाँसी की मऊरानीपुर तहसील के नयागांव निवासी मृतक किसान हीरा सहरिया की... इसने बकरी चराते हुए 60 हजार के कर्जे में लू के थपेड़ों से दम तोड़ दिया है... परिवार में एक बेवा पत्नी और दो लड़के है... किसान की लाश के पास सूखी प्याज और रोटी मिली है!

सुना है देश के प्रधान सेवक मोदी को जान का नक्सली और लाल सलाम वालों से खतरा है...! गुजारिश है संसद को और अधिक पुख्ता, जेड प्लस को इंतजामिया कर दे... देश की हुकूमत खतरे में है! दलित और आदिवासी नक्सली बन रहे है! वीआईपी प्रोटोकाल पर लड़ाकू विमान की निगेहबानी शुरू कर दे!

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