एंड्रायड फोन के अभाव और नेटवर्क की मुश्किलों के बीच सरकारी स्कूल के गरीब बच्चों की आनलाइन कक्षायें साबित हो रहीं दिखावा
यूपी सरकार के शिक्षकों ने कहा 10 फीसदी छात्र भी नहीं ले पा रहे आनलाइन क्लास का फायदा, सिर्फ सरकारी कवायद और खानापूर्ति भर है सरकारी स्कूल के बच्चों की आनलाइन क्लास
बड़ा सवाल ये कि गरीब परिवारों से आने वाले बच्चों के अभिभावक लॉकडाउन के बीच रोटी खाएं या रिचार्ज कराएं, समस्या यह भी देहात के लोग आमतौर पर कराते हैं दुकानों से रिचार्ज
मनीष दुबे की रिपोर्ट
जनज्वार। कोरोना वायरस की महामारी को रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन लागू है, जिस कारण सभी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय बंद हैं। जाहिर तौर पर इससे छात्रों की पढ़ाई बाधित हो रही है। ऐसे में सरकार ने शैक्षिक संस्थाओं को निर्देश दिये हैं कि आनलाइन कक्षायें शुरू की जायें, जिससे बच्चों की पढ़ाई में कोई समस्या न आये। सरकारी स्कूलों के लिए भी ये निर्देश दिये गये हैं।
उत्तर प्रदेश में भी प्राइवेट समेत सभी सरकारी स्कूलों में आनलाइन कक्षायें शुरू की गयी हैं। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रशासन को निर्देश दिये कि सभी शैक्षिक संस्थानों में ऑनलाइन कक्षायें शुरू करवाएं और इसको लेकर स्थाई मॉडल पर काम करें, मगर असल सवाल यह है कि जिन घरों में लॉकडाउन के चलते 2 वक्त की रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल हो गया है, उनके बच्चे आनलाइन कक्षाओं में हिस्सा ले पायेंगे, क्या उन घरों में एंड्रायड फोन हैं, और हैं भी तो पहले से ही मुश्किलों में जी रहे ये घर इनके इंटरनेट भरवाने की हालत में हैं।
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यहां गौर करने वाली बात यह है कि सरकारी स्कूलों का बहुतायत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे परिवारों या उससे थोड़ी बेहतर स्थिति में जीने वाले लोगों का है। यानी जिन परिवारों की प्रतिमाह की कमाई 10 हजार से भी नीचे होती है, और लॉकडाउन ने जिनकी कमर तोड़कर रख दी है, खाने के लाले पड़े हैं, उनके बच्चे एंड्रायड फोन से आनलाइन पढ़ाई भला कैसे कर पायेंगे।
अरविंद कुमार पुत्र सियाराम का एक बेटा करन कक्षा 10वीं का छात्र है। करन के परिवार के पास कोई मोबाइल न होने की वजह से वह पढ़ाई नहीं कर पा रहा है। इसी तरह भइयालाल का पुत्र अमित कुमार भी 10वीं का छात्र है, वह भी ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित है, क्योंकि उसके परिवार की औकात नहीं है कि एंड्रायड फोन रख पायें। यहीं की रहने वाली रामकेश की बेटी नेहा जो कक्षा 8 की छात्रा है, वह भी पढ़ाई नहीं कर पा रही। उसकी समस्या भी कुछ ऐसी ही है, हालांकि उसकी बड़ी समस्या लड़की होना भी है।
नेहा के पिता कहते हैं, घर दोनों तरफ से खुला होने से मवेशियों का बहुत ज्यादा भय रहता है रातों को परिवार का एक-एक आदमी जागकर पहरा देता है, तब जाकर अपने जान माल की हिफाजत कर पा रहे हैं, ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई और मोबाइल के सिरदर्द में वो नहीं पड़ना चाहते हैं।
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घाटमपुर के एक गांव में रहने वाली रामा देवी पत्नी अरविन्द कुमार सरकार को कोसती हैं। कहती हैं सरकार ने जेबें भरने के लिए ठेके तो खोल दिये, पर देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों के स्कूलों का कुछ भी नहीं सोचा, ऐसे में कैसे भला होगा। मोबाइल है तो रिचार्ज कराने का पैसा नहीं है, तो किसी पर रिचार्ज का पैसा है, मगर मोबाइल ही नहीं है। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई कागज या आदेशों तक ही सिमटकर रह रही है।
फतेहपुर का सोलजी पुत्र सुबोध ग्राम कशमीरीपुर ब्लॉक देवमई गांव के ही एक विद्यालय में कक्षा 5 का छात्र है। उसके साथ ही पढ़ने वाली छात्रा सना पुत्री अफसर ऑनलाईन पढाई नहीं कर पा रही है। कारण पूछने पर परिवार कहता है गरीबी में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ तो हो नहीं पा रहा, एंड्रॉयड मोबाइल कहां से लायें, जिससे आनलाइन पढ़ाई होती है। सना के पिता मोहम्मद अफसर का कहना है, हम किसी तरह अगर किस्तों में मोबाइल खरीद भी लें तो हर माह का रिचार्ज हमारे लिए हाथी खरीदने के बाद उसके चारे जैसा हो जाएगा। कहां से भरवायेंगे हर महीने मोबाइल का इंटरनेट।
उत्तर प्रदेश में ऑनलाइन पढ़ाई का जो स्तर और खाका शासन-प्रशासन मीडिया के माध्यम से पेश कर रहा है, वह धरातल पर कितना कारगर साबित हो पा रहा है इसकी पीड़ा अध्यापक और छात्रों के परिजन ही बता पा रहे हैं। लोग कहते हैं ऑनलाइन पढ़ाई तो छोड़िए घर की छत और दीवार तक बना पाने के पैसे नहीं जुट पा रहे हैं, तो एंड्रायड फोन कहां से लायें। किसी ने अगर तमाम मुश्किलों में एंड्रॉयड मोबाइल खरीदा भी हो तो लॉकडाउन में पेट पर पड़ी लात के बाद उसका रिचार्ज नहीं करवा पा रहा है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में हजारों की संख्या में मौजूद ग्रामीण क्षेत्रों में जो ऑनलाइन पढ़ाई करने-कराने का दावा किया जा रहा है, वह कतई कारगर नहीं हो पायेगा।
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कानपुर के कल्याणपुर स्थित स्वराज पब्लिक स्कूल में कक्षा 6 में अपने बच्चे को पढा रहे एक अभिवावक कहते हैं कि कल बच्चे के स्कूल में एक मीटिंग रखी गई थी। मीटिंग में सख्त आदेश यह दिया गया कि बच्चों की फीस जमा करवाई जाए। अभिवावक गौरव का कहना है कि स्कूल वालों ने साथ ही साथ उन सभी पर धमकी भरे लहजे में दबाव बनाने की कोशिश की और कहा कि उन्हें फीस चाहिए। फीस न जमा करने पर बच्चे का नाम काट दिया जा सकता है और फीस की बकाया वसूली अभिवावकों से अन्य माध्यम से की जाएगी।
गाजीपुर जिले के एक सरकारी स्कूल में आनलाइन पढ़ाई करवाने वाली शिक्षिका कहती हैं, पहले तो लगभग 70 फीसदी से भी ज्यादा बच्चों के घरों में एंड्रायड फोन या कम्प्यूटर उपलब्ध नहीं है और जिनके पास उपलब्ध है भी तो उनकी अनेक तरह की समस्यायें हैं, खासतौर पर लड़कियों के साथ। लड़कियों के परिजन उन्हें आनलाइन पढ़ाई में इसलिए नहीं जुड़ने देना चाहते क्योंकि इससे लड़कों के पास उनका नंबर चला जायेगा और उसके बाद उनकी लड़कियों के साथ वे गंदी हरकतें करेंगे। परिजन कहते हैं कि अगर लड़कियों को आनलाइन पढ़ाना है तो उनके लिए अलग ग्रुप बनाइये, भला एक ही टाइम में एक शिक्षक 2 तरह के ग्रुप में कैसे पढ़ाई करा पायेगा।
इन शिक्षिका की मानें तो उनके स्कूल के 9वीं से 12वीं तक के 10 फीसदी बच्चे भी बमुश्किल आनलाइन क्लास अटैंड कर पा रहे हैं। वो भी तमाम मुश्किलातों के साथ। इन 10 फीसदी में लड़कियों की संख्या तो नगण्य है।
आजमगढ़ के दसवीं तक के बच्चों की आनलाइन कक्षा लेने वाले एक शिक्षक कहते हैं, हमारे स्कूल के तो मात्र 5 फीसदी बच्चे ही बमुश्किल आनलाइन कक्षायें अटैंड कर पा रहे हैं। जब बच्चों के अभिभावकों के पास बात करने के लिए फोन तक उपलब्ध न हो, रिचार्ज करने के लिए पैसा न हो, ऐसे में कैसे कल्पना की जा सकती है कि वे आनलाइन कक्षायें अटैंड करेंगे। ये सिर्फ सरकार की चोंचलेबाजियों हैं, जिनका सिर्फ टीवी और मीडिया के प्रचार तक महत्व है। इससे सरकारें दिखाती हैं कि वह छात्रों के प्रति कितनी सजग है, मगर असलियत जाननी हो तो किसी गांव—देहात में आकर देखिये। जिन बच्चों को पेटभर खाना तक नसीब हो नहीं पा रहा, उनके लिए आनलाइन शिक्षा से भद्दा मजाक भला क्या हो सकता है। हमारा क्या है हम तो सिर्फ अपनी ड्यूटी बजा रहे हैं और सरकार के आदेशों का पालन कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के कानपुर के एक अन्य शिक्षक कहते हैं, आनलाइन कक्षाओं के चोंचले बड़े—बड़े पैसेवालों के लिए तो ठीक हैं जो अपने बच्चों को नामी प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा दिलवा रहे हैं, मगर इस तरह सरकार गरीब बच्चों के साथ मजाक न करे।
सरकारी स्कूलों अथवा प्राइवेट स्कूलों की पढ़ाई में भी तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जैसे—
1- हर किसी के पास ऑनलाइन पढ़ाई के लिए एंड्रॉयड मोबाइल उपलब्ध नहीं हैं।
2- किसी के पास मोबाइल है तो रिचार्ज करवाने को पैसा नहीं है।
3- मोबाइल उपलब्ध भी हैं तो अभिवावकों के पास रहता है, बच्चों की पहुंच से दूर है।
4- लॉकडाउन के बीच फीस और मोबाइल के इंटरनेट पैक के खर्चे से दोहरी मार पड़ रही है।
5- धरातल स्तर पर ऑनलाइन पढ़ाई कारगर साबित नहीं हो रही।
6- साधनसम्पन्न लोगों के अलावा गरीबों की पहुंच से दूर है यह पढ़ाई।
7-ऑनलाइन पढ़ाई के लिए अभिभावकों से अलग बच्चों को मोबाइल चाहिए, जो सम्भव ही नहीं है।
8- कुछ अभिभाकों का कहना है कि अभी से स्कूल वाले बच्चों को एंड्रायड फोन लत लगा रहे हैं, जिसके बुरे परिणाम होंगे।
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के पदाधिकारी राकेश मणि त्रिपाठी का इस बारे में कहना है कि शासन स्तर का निर्णय है, जिसके क्रम में निर्देश जारी है तो जाहिर सी बात है शिक्षक उन निर्देशों का पालन करेंगे ही। अधिकांश लोग ऐसे हैं जो पूर्ण निष्ठा से काम कर रहे हैं, लेकिन इन निर्देशों में सरकारी स्कूलों के ज्यादातर बच्चे ऐसे हैं जो वंचित वर्ग से आते हैं। इनके लिए हमारी सरकार 10 से 20 किलो राशन की व्यवस्था करवा रही है, तो उनके लिए एंड्रॉयड मोबाइल से पढ़ाई कर पाना धरातल स्तर पर व्यावहारिक कतई नहीं लग रहा है।
राकेश मणि कहते हैं, हम लोग शासन के हर निर्णय पर अपने स्तर से सहयोग करने, उनकी नीतियों का क्रियान्वयन करने का काम कर रहे हैं, पर धरातल स्तर पर कठिनाई उत्पन्न हो रही है। तमाम ऐसे परिवार हैं जिनके बच्चे हमारे विद्यालयों में पढ़ते हैं। उनके यहां भोजन तक कि सुविधा नहीं हो पाती है। ऐसे परिवारों के बच्चों को हम लोग भोजन, ड्रेस, जूते, मोजे इत्यादि मुहैया करवाते हैं, तो ऐसे परिवारों में कहां से संभव हो पायेगा आनलाइन पढ़ाई कर पाना।
बावजूद ऐसी परिस्थितियों के हमारे शिक्षक पढा भी रहे हैं। अभिवावकों के साथ स्कूल वालों ने ग्रुप बना रखा है, लेकिन इसमें कठिनाई आ रही है। हमारे संसाधनविहीन अभिवावकों के पास एंड्रॉयड मोबाइल फोन नहीं है। है भी तो अभिवावकों के पास रहता है। अभिभावक सुबह से शाम तक अपने-अपने रोजगार में रहते हैं। अब इस समय उत्तर प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में खेतों में कटाई, मड़ाई इत्यादि का कार्य चल रहा है। सभी उसमें व्यस्त हैं, तो उनके बच्चे एंड्रॉयड मोबाइल से पढ़ाई कहां और कैसे करेंगे।
राकेश कहते हैं, विद्यालय, शिक्षक, बच्चे और अभिवावक चार बिंदु हैं, जिन पर पूरा का पूरा ताना बाना घूमता है। पहली चीज ये समझिये की बच्चों से संबंधित जो भी डेटा होता है जैसे एड्रेस अथवा नम्बर वो विद्यालय में ही रहता है। विद्यालय 10 से 15 किलोमीटर दूर है। अब लॉकडाउन में 10 से 15 किलोमीटर जाकर डाटा लाना, डाटा लाकर उसे डिवाइड करना बड़ा ही मुश्किल भरा रहता है। जिसका नम्बर उपलब्ध है जोड़ लिया गया है, उसे पढ़ाया जा रहा है।
राकेश मणि कहते हैं, प्राइवेट स्कूलों में जो बच्चे पढ़ते हैं वो साधन संपन्न होते हैं, वहां आनलाइन पढ़ाई का प्रयोग सफल हो रहा होगा। यही प्राइवेट स्मूल हमारे सरकारी विद्यालयों को एक तरीके से डैमेज कर रहे हैं। शासन स्तर से नियम है कि कोई भी सरकारी विद्यालय से 1.5 किलोमीटर के दायरे में विद्यालय नहीं खोल सकता, लेकिन इसके बावजूद लोग सीबीएससी या आईसीएससी के नाम पर विद्यालय खोल देते हैं। आजमगढ़ का जो सरकारी विद्यालय है, उससे महज 5 मीटर की दूरी पर एक प्राइवेट विद्यालय चल रहा है, बीच मे बस खड़ंजा भर है। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए, ये नियम विरुद्ध है, शासन को बजाय उटपटांग निर्णयों के, इस दिशा में पहलकदमी लेनी चाहिए।
आनलाइन कक्षाओं के बारे में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में प्राइमरी विद्यालय की शिक्षिका प्रियंका श्रीवास्तव कहती हैं कि इस स्तर की पढ़ाई में सारा मामला एंड्रॉयड मोबाइल के इर्दगिर्द घूमता है। सबसे बड़ी बात है कि बच्चे उत्सुक तो हैं, पर उनके पास मोबाइल नहीं है। जिसके पास मोबाइल है किसी पड़ोसी या रिश्तेदार के पास जाकर पढ़ रहे हैं। जो गरीब तबके से संबंध रखते हैं उनके पास तो साधारण मोबाइल ही होंगे।
आपको बताऊं की जब मैंने ऑनलाइन पढ़ाई के लिए ग्रुप बनाया लोगों से बात की तो वहां से उत्तर आया कि भईया का मोबाइल है, पापा के पास रहता है, या फलाने देते नहीं, इस तरह की समस्याएं खड़ी हैं। हां आनलाइन कक्षायें काफी सशक्त तब हो सकती थीं, जब ऑनलाइन पढ़ाई को टेलीविजन पर दूरदर्शन अथवा रेडियो के माध्यम से चालू करने कराने का प्रयास किया गया होता, तब यह अधिक कारगर साबित हो पाता।
आनलाइन शिक्षा पर एक बच्चे के पिता विकास अवस्थी कहते हैं, स्कूल वाले कुछ बहुत लोगों को पढ़ाने की खानापूर्ति करने के बाद फीस के लिए दबाव बना रहे हैं। यह सब वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अमानवीय है। सरकार और विद्यालय प्रबंध तंत्र से जानना चाहता हूँ कि आज भी गांव में रहने वाला किसान मजदूर अपने बच्चे की महीने में 300 रुपए फीस जमा करने में असमर्थ होता है। अब उस पर डबल मार पड़ रही है। वो एंड्रॉयड फोन को 299 रुपये का रिचार्ज कराये और फिर आपको फीस भी दे, यह उन सभी आर्थिक रूप से कमजोर लोगो पर एक अप्रत्यक्ष प्रहार ही तो है।
इस सिलसिले में जनज्वार ने जब शिक्षामंत्री व सूबे के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा से बात करने की कोशिश की तो खुद को उनका सिपहसालार बताने वाले ब्रजेश बहादुर ने फोन उठाया। हमने उनसे शिक्षा के बारे में कुछ सवाल किए तो उन्होंने एक नम्बर उपलब्ध कराया। उपलब्ध कराया गया नम्बर उत्तर प्रदेश के शिक्षा प्रमुख विनय कुमार पांडेय का था। विनय कुमार को लगभग 20 बार फोन करके जनज्सार ने उनका पक्ष जानने की कोशिश की, मगर इन महोदय का फोन ही नहीं उठा।