PM मोदी को खून से खत लिखने के बाद केदारनाथ के पुरोहितों का BJP को श्राप, तुम्हारा जड़ मूल होगा नाश

मुख्यमंत्री धामी द्वारा मामले के समाधान के लिए बजाए बोर्ड को भंग करने के, कमेटी बनाये जाने के सुझाव से पुरोहितों को लगने लगा है कि भाजपा अब 'अपनी' नही रही, जिसके बाद उन्होंने आखिरी उम्मीद के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी को अपने खून से लिखे पत्र भेजकर मामले में हस्तक्षेप की गुहार की थी...

Update: 2021-08-24 04:22 GMT

देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की मांग कर रहे तीर्थ पुरोहित खुलकर आये भाजपा के खिलाफ, पीएम मोदी के केदारनाथ दौरे से पहले पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत का किया बॉयकॉट

सलीम मलिक की रिपोर्ट

रुद्रप्रयाग, जनज्वार। प्रदेश के तीर्थ स्थलों व मंदिरों को रेगुलाईज किये जाने के नाम पर भाजपा सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा बनाये गए देवस्थानम बोर्ड को भंग न करने पर अब केदारनाथ के पुरोहितों ने भाजपा सरकार को जड़ मूल नाश होने का श्राप दे दिया है। आम चुनाव के दौरान केदारनाथ गुफा में बैठकर साधना करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खून से खत भेजने के बाद भी कोई असर न होता देख पुरोहितों ने इस ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया है।

गौरतलब है कि उत्तराखंड में धामों व मंदिरों की व्यवस्थाओं को व्यवस्थित करने के नाम पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने 2020 में देवस्थानम बोर्ड नामक जिन्न को अस्तित्व में लाकर राज्य के तीर्थ पुरोहितों के क्रोध को भड़का दिया था। वैष्णो देवी में मौजूद श्राइन बोर्ड की तर्ज पर गठित इस बोर्ड के गठन के बाद से ही तीर्थ पुरोहित इसका विरोध कर रहे हैं। बोर्ड के गठन का नोटिफिकेशन जारी होते ही अभी तक तीर्थ धाम की व्यवस्थाओं को देख रही बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति का अस्तित्व स्वतः समाप्त हो गया था। बोर्ड के गठन से पहले बदरी-केदार मंदिर समिति के लिए 1939 में लाये एक अधिनियम के तहत बदरीनाथ और केदारनाथ धाम की व्यवस्थाओं को व्यवस्थित किया जाता रहा था, लेकिन देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के कारण करीब 80 साल पुरानी यह बीकेटीसी निरस्त हो गई है।

इसी बोर्ड को भंग करने की मांग तीर्थ पुरोहित बीते दो सालों से कर रहे हैं। पुरोहित इसे धार्मिक मामलों में सरकार का बेवजह हस्तक्षेप बता रहे हैं। पुरोहितों की इस मांग को त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने तो क्या ही सुनना था। उनके बाद आये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत तक ने पुरोहितों की मांग पर कोई तवज्जो नहीं दी। बीते दो साल से राज्य के तीर्थ पुरोहित इस मामले को लेकर कभी नरम तो कभी तीखा आंदोलन कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा की 'अपनी' सरकार में देर-सवेर उनकी बात सुन ली जाएगी, लेकिन अगले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा भी इस मामले में कोई दिलचस्पी न लिए जाने पर तीर्थ पुरोहितों का माथा ठनकने लगा है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा मामले के समाधान के लिए बजाए बोर्ड को भंग करने के, कमेटी बनाये जाने के सुझाव से पुरोहितों को लगने लगा है कि अपनी सरकार अब 'अपनी' नही रही, जिसके बाद उन्होंने आखिरी उम्मीद के तौर पर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने खून से लिखे पत्र भेजकर मामले में हस्तक्षेप की गुहार की थी, लेकिन वहां से भी तीर्थ पुरोहितों को कोई सकारात्मक सिग्नल नहीं मिला।

इधर धीरे-धीरे विधानसभा चुनाव का समय आने पर पुरोहितों को आशंका है कि यदि फौरन बोर्ड भंग नहीं हुआ तो फिर इसे भंग करवाया जाना खासा मुश्किल भरा कदम हो सकता है। लिहाजा तीर्थ पुरोहित अब प्रदेश की भाजपा सरकार के सीधे विरोध में आ खड़े हुए हैं। धाम के जिस परिसर में वेद ऋचाओं की ध्वनि गूंजती थी, वहां अब BJP सरकार विरोधी नारेबाजी की आवाज़ आने लगी है। तीर्थ पुरोहितों ने मंदिर प्रांगण से ही सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि जहां से आपका समर्थन किया करते थे, वहीं से आज आपका विरोध कर रहे हैं। आप राम के नाम पर खा रहे हो, हम भी भगवान की संतान हैं। सत्ता के लोभ में आप देहरादून में बैठे हो। हम रुद्राभिषेक व पूजा करने वालों को आपने नारेबाजी करने पर विवश कर दिया। हम सभी आपको श्राप देते हैं कि आप कभी सत्ता में नहीं आ पाओगे। आपका जड़ मूल नाश हो जाएगा। हम इसके लिए हवन भी करेंगे।

तीर्थ पुरोहितों के इस विकराल रूप को देखकर प्रदेश सरकार में बैचेनी शुरू हो गयी है। पहले से कई मोर्चों पर घिरी सरकार चुनाव से इस मोर्चे से उठने वाले तेवरों से सकते में है। यह युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की परीक्षा भी है कि त्रिवेन्द्र सिंह रावत के लाये देवस्थानम बोर्ड नाम के इस जिन्न को वह वापस बोतल में डालने में कैसे सफल होते हैं।

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