सुदर्शन न्यूज के सुरेश चव्हाणके को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया जबरन धर्मांतरण वाला वीडियो हटाने का आदेश
दिल्ली हाइकोर्ट ने अपने निर्देश में कहा, ‘यह देखते हुए कि गंभीर खतरा है, जैसा कि अदालत के समक्ष रखी गई टिप्पणियों से स्पष्ट है, यह निर्देश दिया जाता है कि धर्मांतरण वाले वीडियो लिंक को सार्वजनिक रूप से देखने के लिए तुरंत ब्लॉक कर दिया जाए...
Breaking News : दिल्ली हाईकोर्ट ने आज शुक्रवार 12 मई को सुदर्शन न्यूज को आदेश दिया है कि वह सोशल मीडिया पर प्रसारित उन खबरों को हटाये दे या फिर उन वीडियो लिंक को ब्लॉक करे, जिसमें उसने दावा किया है कि एक मुस्लिम व्यक्ति ने महिला का जबरन धर्मांतरण कराया। सुदर्शन न्यूज के अलावा ने कुछ अन्य समाचार चैनलों को भी कोर्ट ने यह आदेश दिया है, जिन्होंने इस खबर को प्रसारित किया था। सुदर्शन समेत कुछ अन्य समाचार चैनलों के अलावा दिल्ली हाईकोर्ट ने गूगल, यूट्यूब और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को भी वीडियो हटाने का आदेश दिया है।
गौरतलब है कि जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की पीठ अज़मत अली खान द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें दिल्ली की एक महिला ने 19 अप्रैल को एक एफआईआर दर्ज करके आरोप लगाया था कि उसका जबरन धर्मांतरण किया गया है।
दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने यह आदेश सुदर्शन न्यूज समेत कई अन्य समाचार चैनलों को यह कहते हुए दिया है कि आरोपी अजमत अली खान पर लगाये गये आरोपों की जांच की जा रही है। दिल्ली पुलिस जांच कर रही है कि वह आरोपी है या नहीं, मगर वीडियो का प्रसार स्वतंत्र जांच के साथ-साथ खान की सुरक्षा और सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन रहा है, इसलिए इन्हें हटा दिया जाये। इससे जांच भी प्रभावित होने का बड़ा खतरा है।
अदालत ने आदेश में कहा, ‘यह देखते हुए कि गंभीर खतरा है, जैसा कि अदालत के समक्ष रखी गई टिप्पणियों से स्पष्ट है, यह निर्देश दिया जाता है कि याचिका में दिए गए लिंक को सार्वजनिक रूप से देखने के लिए तुरंत ब्लॉक कर दिया जाए।’
दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने यह भी स्पष्ट किया है यह आदेश सुदर्शन न्यूज के सुरेश चव्हाणके के साथ साथ सभी प्रतिवादियों पर लागू होता है, जिनमें यूट्यूब, गूगल, ट्विटर, सुदर्शन टीवी, उड़ीसा टीवी, भारत प्रकाशन शामिल हैं।
हालांकि गूगल का इस
मामले में कहना है कि चूंकि धर्मांतरण मामले में पीड़ित महिला द्वारा एफआईआर पहले ही दर्ज की जा चुकी है, इसलिए वीडियो के प्रवर्तकों को इस मामले में सुना जाना चाहिए। वहीं प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि खान के 9 मई के ईमेल में समाचार रिपोर्टों के लिंक शामिल हैं, जिस पर अदालत को गौर करना चाहिए। साथ ही अदालत को अवगत कराया गया कि काउंसिल केवल उन मामलों को देखती है जो प्रकाशित होते हैं न कि वे जो वेबसाइटों पर अपलोड किए जाते हैं।