मदरसों और गायों पर यूपी हाईकोर्ट की सनसनीखेज टिप्पणियां : क्या अदालतें भी आईं चुनावी मोड में
गाय व मदरसा का सवाल छेड़कर हाईकोर्ट ने अनचाहे में भले ही भाजपा के लिए एक मुददा दे दिया है, लेकिन सच्चाई यह है कि गौरक्षा के सवाल पर भाजपा सबसे अधिक पिछले साढ़े चार वर्षों में घिरी रही है....
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
जनज्वार। उत्तर प्रदेश सरकार की सियासत गाय व गोबर से शुरू होकर मदरसों तक पिछले साढ़े चार वर्षों तक चलती रही। अब जब एक बार फिर विधानसभा चुनाव करीब है, ऐसे वक्त पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने व मदरसों पर चर्चा छेड़कर अनचाहे में भाजपा की राजनीति को सिंचने का कार्य की है। हालांकि गाय व पशुपालकों की रक्षा के सवाल पर लगातार घिरी रही सरकार के लिए इस एजेंडे पर खरा उतरना आसान नहीं होगा।
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि गाय भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है। इसे सरकार राष्ट्रीय पशु घोषित करे। कोर्ट ने केंद्र सरकार को गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर संसद में बिल पेश करने का सुझाव दिया है। हाईकोर्ट के मुताबिक गायों को किसी एक धर्म के दायरे में नहीं बांधा जा सकता। यह भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने ये भी कहा कि अपनी संस्कृति को बचाना हर भारतवासी की जिम्मेदारी है। महज स्वाद पाने के लिए किसी को भी इसे मारकर खाने का अधिकार कतई नहीं दिया जा है। कोर्ट के फैसले के मुताबिक देश का कल्याण तभी होगा, जब गाय का कल्याण होगा। फैसले में यह भी कहा गया है कि गौ हत्या की घटनाओं से देश कमजोर होता है और इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वालों का कतई देशहित में कोई आस्था या विश्वास नहीं होता।
मालूम हों कि ये फैसला जस्टिस शेखर कुमार यादव (Justice Shekhar Kumar Yadav) की सिंगल बेंच ने दिया है। कोर्ट ने संभल जिले के नखासा थाने में गौवध निवारण अधिनियम के तहत दर्ज हुई FIR में गिरफ्तार कर जेल भेजे गए जावेद नाम के आरोपी की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया।
दूसरी तरफ इलाहाबाद हाईकोर्ट यूपी के धार्मिक शैक्षिक संस्थानों को मिलने वाली सरकारी मदद से जुड़े तमाम मुद्दों पर सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने सवाल उठाया है कि मदरसों और दूसरे धार्मिक शैक्षिक संस्थानों को राज्य सरकार की ओर से दी जा रही फंडिंग संविधान के सेक्युलर स्कीम के तहत न्यायसंगत है या नहीं? इस तरह के संस्थानों से जुड़े दूसरे कई मुद्दों पर भी विचार होगा। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को चार हफ्तों के अंदर जवाब देने को कहा है।
जस्टिस अजय भनोट ने राज्य सरकार को इस मुद्दे और इसके दूसरे पहलुओं पर भी विस्तार से बताने को कहा है। मामले में अगली सुनवाई 6 अक्टूबर को होगी। इस दौरान यह भी विचार किया जाएगा कि धार्मिक अल्पसंख्यकों की ओर से संचालित संस्थानों की सरकारी फंडिंग संविधान के प्रावधानों के संदर्भ में सभी धार्मिक विश्वास, विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों को दी गई संवैधानिक सुरक्षा के लिए ईमानदारी से लागू होती है या नहीं। सरकार से पूछा है कि क्या कोई सेक्युलर स्टेट धार्मिक शिक्षा देने वाले मदरसे को फंड दे सकता है।
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योगी सरकार में गाय के लिए आवंटित पैसा जा रहा दूसरे के जेब में
हाईकोर्ट के आदेश के बाद सियासी दल इसके बहाने बीजेपी पर निशाना साध रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि यह बीजेपी के लिए शर्मनाक है, क्योंकि जिस गाय को बीजेपी मां कहती है, उसे लेकर हाईकोर्ट ने जो बड़ा ऑब्जर्वेशन दिया है, वह गाय की क्या स्थिति है उसे बयां करता है।राज्यसभा के पूर्व सांसद प्रमोद तिवारी का साफ तौर पर कहना है कि बार-बार उनकी पार्टी यह कहती आ रही है कि गाय मर रही हैं, गौशालाओं में गाय बीमार पड़ी हैं और उनकी सुध कोई नहीं ले रहा है। बीजेपी राज में गाय के लिए जो पैसा आता है वह गाय के पेट में ना जाकर दूसरों की जेब में जा रहा है।
उनका कहना है की हाईकोर्ट को एक और भी ऑर्डर करना चाहिए कि प्रदेश में गौशालाओं के लिए कितना धन गौशालाओं में कितनी गाय के लिए भेजा गया और कितनी गायों की मौत हुई है। उनका कहना है कि जो ऑब्जरवेशन हाईकोर्ट ने दिया है, उस पर बीजेपी को शर्म आनी चाहिए और उन्हें जनता से माफी मांगना चाहिए।
आस्था व हिन्दुत्व के नाम पर राजनीतिक गोलबंदी
मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फाॅर सिविल लिबर्टीज पीयूसीएल के गोरखपुर मंडल अध्यक्ष फतेहबहादुर सिंह कहते हैं कि भावनात्मक मुददों पर चर्चा करने के बजाए जनता के सवालों पर बहस की जरूरत है। योगी सरकार लोगों के बुनियादी सवालों के बजाय शुरू से ही आस्था व हिन्दुत्व के नाम पर एक धर्म विशेष के गोलबंदी पर जोर रहा है। हाईकोर्ट का हालिया बयान सरकार के राजनीतिक मंशा को पूरा करने का काम करेगी। सवाल गाय को राष्टीय पशु घोषित करने से ज्यादा जरूरी उसकी सुरक्षा का है। इस मोर्चे पर सरकार विफल साबित हुई है।
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धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के साथ छेड़छाड़ करना लोकतंत्र विरोधी कदम
इलाहाबाद हाईकोर्ट की अधिवक्ता सोनी आजाद कहती हैं कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट के स्वरूप के साथ छेड़छाड़ करना लोकतंत्र विरोधी कदम है।हाल के वर्षों में कुछ जजों का प्रयास केंद्र व राज्य सरकार के नीत राजनीतिक एजेंडे के पक्ष में माहौल बनाने का रहा है। इसके लिए सभी जजों को कठगरे में नहीं खड़ा किया जा सकता। गाय को राष्टीय पशु घोषित करने को लेकर शुरू हुए बहस पर देखें तो ज्यादा जरूरी इनकी सुरक्षा का है। पशुपालन से जुडे किसानों की रक्षा पर बात होनी चाहिए। पशुपालकों के हितों के लिए कदम उठाए बिना आस्था के नाम पर गाय की चर्चा करना बेकार है। योगी सरकार में सर्वाधिक पशुओं की चार के अभाव में आश्रय केंद्रों में मौत हुई। यही हाल मदरसों को लेकर भी है।सरकार का नजरिया मदरसों को लेकर कभी सकारात्मक नहीं रहा है।
भाजपा शासित गुजरात राज्य में सर्वाधिक स्लाटर हाउस की संख्या
पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) की वरिष्ठ अधिवक्ता मंजू शर्मा कहती हैं, भाजपा गौ रक्षा की बात करती है, जबकि सच्चाई यह है कि सर्वाधिक स्लाटर हाउस का संचालन इनके लोगों द्वारा ही किया जाता है। इसके मांस के कारोबार में भी ये लोग ही आगे हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक सर्वाधिक स्लाटर हाउस की संख्या भाजपा शासित गुजरात राज्य में है। न्यायालयों में बैठे कुछ जर्जों के नजरिये पर हाल के वर्षों में सवाल उठते रहे हैं। ऐसे लोगों के कदम हमारे लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्ष छवि के विपरीत है। गाय की अगर चर्चा होगी तो सबसे पहले जरूरी है कि इसके पालन से जुड़े किसानों के सुरक्षा की बात की जाए। गाय के बछडों की सुरक्षा की बात की जाए। दुग्ध उत्पादन से जुडे किसानों की बात की जाए कि उन्हें कैसे उचित मूल्य मिल सकेगा। दूसरी तरफ दक्षिण के भाजपा शाषित राज्यों के नेताओं ने बीफ खाने का समर्थन करते हुए इस पर रोक को लेकर कई बार विरोध जताया है। यहीं तक नहीं इसके निर्यातक संस्थाओं में शामिल लोगों में भी भाजपा के ही कई लोग शामिल रहे हैं।
यूपी में अगले छह माह के अंदर विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। ऐसे में पूरे राज्य में चुनावी माहौल गरमाने लगा है। ऐसे वक्त में गाय व मदरसा का सवाल छेड़कर हाईकोर्ट ने अनचाहे में भले ही भाजपा के लिए एक मुददा दे दिया है, लेकिन सच्चाई यह है कि गौरक्षा के सवाल पर भाजपा सबसे अधिक पिछले साढ़े चार वर्षों में घिरी रही है। पशु आश्रय केंद्र में यूपी के महराजगंज व संतकबीर नगर में बडी संख्या में पशुओं की मौत ने सरकार को कठघरे में खडा कर दिया था। इसके अलावा अन्य जिलों में भी पशुओं की मौत की घटनाएं हो चुकी हैं, जिसका सरकार को जवाब देना पड़ेगा।