Viral Auto Video Reality : 27 सवारियों वाला ऑटो हुआ था सोशल मीडिया पर वायरल, ठूंस-ठूंसकर बैठना उनकी मजबूरी थी शौक नहीं
Viral Auto Video Reality : सुविधा सबको अच्छी लगती है, एसी डिब्बा सबको पसंद है। लेकिन मूल सवाल यही है कि सबके पास उसका टिकट खरीदने का पैसा नहीं है. ये तो एक मामला था की वीडियो बन गया लोग हँस लिए लेकिन ऐसे सैकड़ों हजारों ऑटो देश में चलते हैं...
Viral Auto Video Reality : ईद के मौके पर नमाज पढ़कर लौट रहे एक परिवार के 26 सदस्यों को लेकर लौटने के दौरान पुलिस के हत्थे चढ़े ऑटो पर साढ़े ग्यारह हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया गया। खबरों के मुताबिक इस ऑटो को सीज भी कर दिया गया है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिंदकी थाना क्षेत्र में सोमवार 11 जुलाई को यह ऑटो उस समय चर्चा में आया था जब पुलिस ने एक मजदूर परिवार के 26 सदस्यों को ले जा रहे इस ऑटो को रोका था। ऑटो में तमाम बच्चों सहित कुल 26 लोग सवार थे, जो की ईद की नमाज के बाद इस ऑटो से वापस अपने घर लौट रहे थे। पुलिस द्वारा इस ऑटो को रोके जाने और ऑटो से बाहर निकलते लोगों का वीडियो वायरल होने पर देशभर में लोग इसका मजाक बनाने में जुटे थे। इस गरीब परिवार की ऑटो में सफर करने की मजबूरी का वीडियो तमाम मिम्स के साथ वायरल होने लगा।
खबरों के अनुसार पुलिस ने इस ऑटो चालक पर साढ़े ग्यारह हजार रुपए का भारी-भरकम जुर्माना लगाया है। इसके साथ ही इस ऑटो को पुलिस ने सीज भी कर दिया है। बहरहाल, जहां इस मामले में तमाम लोग निहायत ही हल्के ढंग से इस परिवार का उपहास उड़ाकर अपनी कुंठायें शांत कर रहे हैं तो देवेश मिश्रा नाम के एक फेसबुक यूजर ने इसकी एक अलग ढंग से मीमांसा की है।
जन विचार संवाद नाम के फेसबुक पेज पर अपनी पोस्ट में देवेश ने लिखा है कि दिनभर से देख रहा था उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में एक ऑटो रिक्शा का वीडियो काफी लोग शेयर कर रहे थे। वीडियो में दिख रहा है कि ऑटो में 27 लोग बैठे हैं और दरोगा दो सिपाहियों के साथ खड़ा होकर उन्हें उतार रहा है और उनकी गिनती कर रहा है। लोग उसे शेयर कर हँस रहे हैं, जनसंख्या का मजाक बना रहे हैं, बेहूदगी के साथ उनकी मजबूरी का मजाक उड़ा रहे हैं। न्यूज चैनलों में भी उस वीडियो को चलाकर तरह तरह के पैकेज बनाए गए हैं।
लेकिन वीडियो का अगला हिस्सा सबसे जानदार और असली था, जिसे चलाया नहीं गया। ऑटो में बैठे सभी लोग मुस्लिम थे और बकरीद की सुबह नमाज़ पढ़कर लौट रहे थे, जब पुलिस ने उन्हें रोका। वीडियो जहां खत्म होता है वहीं एक व्यक्ति पुलिस से कह रहा है, "साहब नमाज़ पढ़कर लौट रहे हैं साधन नहीं मिल रहा था बच्चे थे इसलिए बैठ गए" इतने में दरोगा जोर से लगभग गरियाकर हौंकते हुए आगे बढ़ता है और कहता है "नमाज़ पढ़कर लौट रहे हो तो हम क्या करें"
ऑटो में बैठे सभी लोगों की वेशभूषा और भाव भंगिमा से वह सभी निम्न मध्यमवर्गीय मजदूर वर्ग के लोग लग रहे हैं। जिनके पास सीमित आय है। जिसमें उन्हें कमरतोड़ मंहगाई में त्योहार भी मनाना है, बच्चों को मेला भी दिखाना है और घर में कुछ अच्छा खाना बन जाए इसका इंतजाम भी करना है। आगे देवेश कहते हैं कि ऑटो में ठूंसकर बैठना किसे अच्छा लगता है? कौन नहीं चाहता कि आराम से फैल कर मजे में बैठे। लेकिन क्या सबके पास इतना पैसा है? मजदूर वर्ग का आदमी ऐसे ही सफर करता है, ये उसकी मजबूरी है।
भाजपा ने यही काम बहुत शातिर तरीके से यूपी में किया है कि मुसलमानों के हर त्योहार को लॉ एंड ऑर्डर और सुरक्षा व्यवस्था का मुद्दा बनाया है। इस वीडियो को बहुत सांप्रदायिक तरीके से मुसलमानों की जनसंख्या और उनकी आबादी से जोड़कर चलाया गया। अब उस दरोगा को इस बात का इनाम भी मिलेगा कि उसने कैसे मुसलमानों के एक परिवार के 26 लोगों को ऑटो में संदिग्ध तरीके से यात्रा करने से रोक लिया। लेकिन मूल सवाल यही है कि कोई शौक से भूसे की तरह भरकर यात्रा नहीं करता।
मैंने बचपन से ही बुंदेलखंड और अपने इलाके में देखा है कि कमांडर गाड़ियों में ठसाठस भरने के बाद भी लोग गाड़ी की छत पर बैठकर यात्रा करते थे, क्योंकि कम पैसे में वो घर पहुंच जाते थे, वहां यात्रा का और कोई साधन नहीं था। आज भी यूपी में बसों की ये हालत है कि भेड़ बकरी की तरह इंसान भरकर यात्रा करते हैं बसों में। इसका सीधा मामला लोगों की आय, मंहगाई और सरकार की नाकामी है. लेकिन इसे भी सांप्रदायिकता के जहर में घोलकर फैलाया जायेगा। मेरे अपने गांव से हर महीने पूर्णिमा के रोज लोग गंगा नहाने जाते हैं उस ऑटो में हर बार कम से कम 25 लोग बैठकर जाते होंगे। बचपन में मैं खुद दर्जनों बार गया हूं। गांव के लोग हैं यार 50,50 रुपए सब मिलाकर दिए हो गया किराया। किसके पास 250 रुपए धरे हैं कि आराम से बुक करके पैर फैलाकर ऊंघते हुए गंगा नहाने जाए?
ऑटो से उतर रहे उन लोगों के चेहरे पढ़िए, उनकी कातर निगाहें देखिए और दरोगा का डर किस कदर उनके मन था इसे भी देखिए। मुसलमान थे सबके सब, दरोगा के लिए और भी आसान था उन्हें गालियां देना, मारना और जो भी हजार पांच सौ मिले दबा लेना। यही हकीकत है। वीडियो का बाद की स्टोरी से किसी को लेना देना नहीं। याद रखिए सुविधा सबको अच्छी लगती है, एसी डिब्बा सबको पसंद है। लेकिन मूल सवाल यही है कि सबके पास उसका टिकट खरीदने का पैसा नहीं है. ये तो एक मामला था की वीडियो बन गया लोग हँस लिए लेकिन ऐसे सैकड़ों हजारों ऑटो देश में चलते हैं, जिसमें जरूरत से ज्यादा लोग बैठकर यात्रा करते हैं, क्योंकि ये उनकी मजबूरी है शौक नहीं!