अंधविश्वास की बलि चढ़ गयी 5 माह की मासूम, पेट दर्द की तकलीफ पर मां ने गर्म सरिये से था दागा

अंधविश्वास और देसी इलाज के चक्कर में अपनों को पीड़ा देने से ग्रामीणों को नहीं है परहेज, भीलवाड़ा के गांव में पेट दर्द की शिकायत पर मां से गर्म सरिये से दागा दूधमंही का पेट, मौत

Update: 2021-07-09 04:45 GMT

अंधविश्वास ने छीन ली 5 महीने की लीला की सांसें

भीलवाड़ा जनज्वार। कहने को हम एक आधुनिक समाज में जी रहे हैं। लेकिन देश के कई इलाकों से ऐसी तस्वीर और घटनाएं सामने आती है, जो हमारे विकसित होने की रेस पर ब्रेक लगाती है। जहां अंधविश्वास के नाम पर अपनों को यातना देने से भी लोग गुरेज नहीं करते। कुछ ऐसा ही मामला सामने आया है, राजस्थान के भीलवाड़ा के एक गांव से जहां 5 महीने की दूधमुंही बच्ची के पेट को अंधी आस्था और देशी इलाज के नाम पर उसकी मां ने ही गर्म सलाखों से दाग दिया। और अंधविश्वास की कीमत मासूम को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

पेट में दर्द होने पर गर्म सरिये से दागा

राजस्थान के मांडल क्षेत्र के लूहारिया गांव में रमेश बागरिया व उसकी पत्नी लहरी अपनी 5 महीने की बेटी लीला के साथ रहते थे। लीला की तबीयत बीते एक महीने से ठीक नहीं थी। उसे पेट में दर्द की शिकायत थी। जिस पर उसकी मां ने अपनी 5 महीने की मासूम के पेट को गर्म सरिये से दाग दिया। पेट की बीमारी दूर करने के देशी इलाज के नाम पर मां ने अपनी ही मासूम को बड़ा दर्द दिया।

लेकिन इसके बाद लीला की तबीयत और बिगड़ गयी। गुरुवार 8 जुलाई को दंपती उसे लेकर अस्पताल आए, जहां देर रात बच्ची की मौत हो गई। मासूम की मौत के बाद अस्पताल में मौजूद हर किसी की आंखें नम हो गई। मासूम लीला की हालत बिगड़ने पर उसे वैंटिलेटर पर भी रखा गया था। करीब 8 घंटे वैंटिलेटर पर रहने के बाद उसकी मौत हो गयी। डॉक्टरों ने इस मामले की सूचना पुलिस को दी है। पुलिस ने मासूम लीला के शव को मॉर्चरी में रखवाया है। जहां शुक्रवार 9 जुलाई को उसका पोस्टमार्टम किया जाएगा।

अंधविश्वास में अपनों पर कहर

भीलवाड़ा जिले के गांवों से अंधविश्वास के नाम पर अपने ही बच्चों को दर्द देने का ये पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी ऐसे केस सामने आये हैं। बीते दो सालों में भीलवाड़ा के अलग-अलग ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे 15 से ज्यादा मामले सामने आय़े, जिसमें मासूम बच्चों ने दागने का दर्द झेला है। इनमें से चार मासूम ऐसे भी थे जो इस दर्द को नहीं सह पाये और उनकी मौत हो गई। ये तो वो मामले हैं, जो सामने आय़े। गांव में ना जाने ऐसे कितनी घटनाएं होती होंगी जहां देशी इलाज के चक्कर में अमानवीय व्यवहार होता है। हर बार पुलिस इस मामले में कार्रवाई करती है, लेकिन इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वासी भोपों का शिकंजा लोगों के जहन में काफी गहरा बना हुआ है।

उल्लेखनीय ये भी है कि मासूम लीला के माता-पिता लूहारिया गांव में एक कच्चे मकान में रहते हैं। यह दोनों ही झाड़ू बनाने का काम करते हैं। झाड़ू बनाकर गरीबी तंगहाली में जिंदगी काट रहे इन लोगों में शिक्षा और जागरूकता की कमी है। ऐसे में ये टोटके के फेर में पड़ कर अपनों की जान के साथ खिलवाड़ करते हैं।

झारखंड के रामगढ़ में भी ऐसी प्रथा

देश के कई राज्यों, कई गांव में ऐसी अंधविश्वास से भरी प्रथाएं, परंपराएं हैं, जहां जीवन से खिलवाड़ होता है। झारखंड के रामगढ़ जिले के गांवों में भी पेट को गर्म सरिये से दागने की प्रथा है। स्थानीय लोग इसे चिड़ीदाग प्रथा के नाम से जानते हैं। गांव के लोगों का मानना है कि छोटे बच्चों के पेट को गर्म सलाखों से अगर दाग दिया जाता है तो उन्हें पेट से संबंधित बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। ऐसे में मासूम दागने के दर्द से जहां कराहते हैं, वहीं उनकी मां अंधविश्वास की जद में आकर दर्द से तड़पते अपने बच्चे को देख मुस्कुराती है।

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