लॉकडाउन के चलते पुरानी जिंदगी में लौटे 'बाबा का ढाबा' फेम कांता प्रसाद, बंद हो गया रेस्टोरेंट
कांता प्रसाद कहते हैं कि दिल्ली में कोरोना के कारण 17 दिनों के लिए अपने पुराने ढाबे को बंद करना पड़ा, इससे बिक्री प्रभावित हुई है। उन्हें फिर से गरीबी का सामना करना पड़ा है...
जनज्वार डेस्क। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होते ही दक्षिण दिल्ली के मालवीय नगर इलाके के चर्चित बाबा का ढाबा की किस्मत पलट गई थी। 81 वर्षीय कांता प्रसाद और उनकी पत्नी बादामी देवी ने यह ढाबा शुरू किया था। ट्विटर पर वह कई दिनों टॉप ट्रेंड में रहे। उन्हें कई जगह से अच्छी आर्थिक मदद भी मिलने लगी तो रेस्टोरेंट में तब्दील कर दिया था। लेकिन कोरोना महामारी की दूसरी लहर में उनका ढाबा बंद हो चुका है। कांता प्रसाद अब अपनी पुरानी जगह पर लौट आए हैं, लॉकडाउन के चलते अब वह पहले जैसी ग्राहकों की भीड़ का इंतजार कर रहे हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बाबा का ढाबा चलाने वाले कांता प्रसाद का रेस्टोरेंट फरवरी में बंद हो गया है। लिहाजा वो अब ढाबे पर लौट आए हैं। लेकिन पहले जैसी कमाई नहीं हो रही। बीते साल वीडियो वायरल होने के बाद यहीं से उनकी कमाई में 10 गुना की बढ़ोतरी हो गई थी। बाबा इंटरनेट पर फेमस हो गए थे।
कांता प्रसाद कहते हैं कि दिल्ली में कोरोना के कारण 17 दिनों के लिए अपने पुराने ढाबे को बंद करना पड़ा, इससे बिक्री प्रभावित हुई है। उन्हें फिर से गरीबी का सामना करना पड़ा है। कांता प्रसाद कहते हैं, 'हमारे ढाबे पर चल रहे कोविड लॉकडाउन के कारण दैनिक फुटफॉल में गिरावट आई है। हमारी दैनिक बिक्री लॉकडाउन से पहले 3,500 रुपये से घटकर अब 1,000 रुपये हो गई है। ये हमारे परिवार के गुजारे के लिए पर्याप्त नहीं है।'
बीते साल बाबा का ढाबा का वीडियो वायरल होने के बाद कांता प्रसाद को कई लाख रुपये की आर्थिक मदद मिली, इससे उन्होंने एक नया रेस्टोरेंट खोला, अपने घर में एक नई मंजिल जोड़ी, अपना पुराना कर्ज चुकाया। खुद के लिए और अपने बच्चों के लिए स्मार्टफोन खरीदे। हालांकि, अब अच्छे दिन बीत गए हैं। बाबा का ढाबा में वर्तमान में चावल, दाल और दो प्रकार की सब्जियां मिल रही हैं।
कांता प्रसाद ने दिसंबर में बहुत धूमधाम से अपना नया रेस्टोरेंट खोला था। प्रसाद जहां ढाबे पर रोटियां बनाते थे, वहीं अब रेस्टोरेंट में मॉनिटरिंग करते हैं। जबकि उनकी पत्नी और दो बेटे चमचमाते काउंटर में बैठकर पेमेंट लेते थे। दो रसोइये और वेटर ग्राहकों की सेवा करने में लगे थे। शुरुआती उत्साह के बाद ग्राहकों का आना कम होने लगा और रेस्टोरेंट का खर्चा बढ़ने लगा।