Rajni Murmu Controversy: प्रोफेसर रजनी मुर्मू Online मॉब लिंचिंग मामले में अदालत ने FIR दर्ज करने का दिया आदेश
Rajni Murmu: जो इस नफरत के खिलाफ खड़ा होगा वह या तो तोड़ दिया जाएगा या मानसिक प्रताड़ना झेलेगा। यही अब के समय का यानी न्यू इंडिया का दस्तूर और चलन चल पड़ा है....
Rajni Murmu Controversy: आदिवासी प्रोफेसर रजनी मुर्मू लगातार सुर्खियों में हैं। बता दें रजनी ने आदिवासी त्योहार सोहराय पर्व को लेकर भी आवाज उठाई थी। 7 जनवरी को गोड्डा कॉलेज में समाजशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर प्रो.रजनी मुर्मू (Asstt Prof Rajni Murmu) ने एसपी कॉलेज में मनाए जाने वाले सोहराय को लेकर फेसबुक एक पोस्ट किया था जिसे लेकर खूब विवाद हुआ। प्रो.रजनी मुर्मू के पोस्ट से एसपी कॉलेज के आदिवासी (Adiwasi) छात्र-छात्राएं आक्रोशित हो गए है। छात्रों के लिखित बयान पर दुमका नगर थाना में आईटी एक्ट के तहत प्रो रजनी मुर्मू के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
इसके बाद रजनी मुर्मू तकरीबन चार दिन पहले एक दस्तावेज शेयर कर बताया था कि उन्हें फोर्सली लीव पर भेज दिया गया है। यानी जबरिया तौर पर छुट्टी पर भेजा गया है।इस दौरान जनज्वार ने रजनी से बात की तो उन्होने कहा कि, इस देश में सच की हिमायत करने वालों के लिए कोई जगह नहीं है। मीडिया से लेकर तमाम वर्ग में नफरत भरी जा रही है। जो इस नफरत के खिलाफ खड़ा होगा वह या तो तोड़ दिया जाएगा या मानसिक प्रताड़ना झेलेगा। यही अब के समय का यानी न्यू इंडिया का दस्तूर और चलन चल पड़ा है। प्रोफेसर ने कहा था कि वह अब न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएंगी।
अब इस मामले में अदालत ने संबंधित थाने को मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है। रजनी के वकील आशीष कुमार ने जनज्वार से बात करते हुए बताया कि, 'सब डिवीजनल कोर्ट ने 156(3) सीआरपीसी के तहत थाने को आदेश दिया है कि वह रजनी मुर्मु की एफआईआर दर्ज करें। हमें बताया गया कि यह एफआईआर उस संबंध में दर्ज हुई है, जिसमें रजनी ने अपनी online मॉब लिंचिंग किए जाने का आरोप लगाया था। साथ ही एफआईआर में प्रोफेसर से अभद्र टिप्पणी और गाली-गलौज किए जाने का भी जिक्र है। अधिवक्ता आशीष ने हमें बताया कि अब यदि कोर्ट के आदेश के बाद थानेदार एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करता है तो कोर्ट तय करेगा कि क्या दण्डात्मक कार्रवाई की जाए?'
प्रोफेसर ने क्या कहा था?
आज फिर से रजनी मुर्मू ने एक पोस्ट शेयर की है जिसमें लिखा गया है कि, 'सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका की आदिवासी कुलपति सोना झरिया मिंज, जिन्होंने सालों जेएनयू जैसे संस्थान में अध्यापन किया..जहाँ जेंडर जस्टिस के लिए शिक्षक से लेकर छात्र व छात्राएं जोरदार आवाज उठाते हैं.. ने मुझे आदिवासी महिलाओं के पक्ष में आवाज उठाने की सजा सुनाई है...जहाँ उपद्रवी छात्र विश्वविद्यालय केंपस में ही मेरा मौब लिंच कर रहे थे... उनके खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय उन अपराधी छात्रों के साथ हो कर मेरा आर्थिक बहिष्कार( मौब लिंचिंग) में शामिल हो गई है....'
इससे पहले प्रोफेसर ने हमसे बात करते हुए कहा था कि, 'हम जिस समाज में रहते हैं उसका ट्रेंड यही है कि यदि उसकी खामियों और खास कर लड़कियों/औरतों की समस्याओं पर मुखर होकर बात की जाए तो लोग बोलने वाले मुँह पर कैसे भी एक टेप चढ़ा देना चाहते हैं। वह टेप कभी उसके सामाजिक बहिष्कार के रूप में तो कभी आर्थिक बहिष्कार के रूप में सामने आता है। इसी कड़ी का नवीन उदाहरण है कॉलेज में छात्रों द्वारा मेरे निलंबन की माँग करना।
हर विक्टिम के पास वह मानसिक और आर्थिक सपोर्ट सिस्टम नहीं होता कि वह अपनी कहानी खुले तौर पर साझा कर सके। लड़कियों की बुली होने को लेकर, हाशियाकरण को लेकर, इतनी इनसिक्योरिटीज हैं कि उन पर अपने अनुभव साझा किए जाने का जबरन दबाव नहीं बनाया जा सकता। ऐसे में उनके आगे आने हेतु एक स्वस्थ स्पेस के निर्माण की बजाय छात्र-नेता यह कैसा संदेश देना चाह रहे हैं? क्या कोई पीड़िता विरोध और निरस्त करने के ऐसे माहौल में खुद को अभिव्यक्त करने में कभी सुरक्षित महसूस कर पाएगी?
बोलती महिला तक समाज को कभी भी अच्छी नहीं लगती। सवाल करती, जवाबदेही माँगती महिला पर अंकुश लगाना कोई विस्मय की बात नहीं है। मैंने बहुत सोच-समझ कर, दृढ़ संकल्प हो कर त्योहार के नाम पर होती अभद्रता के विषय में लिखने का फैसला लिया था। मुझे हल्का भान इस बात का भी था कि तादाद में लोग मेरी बात नहीं मानेंगे क्योंकि उत्पीड़क को क्लीन-चिट देने की आदत जो लग गई है। लेकिन यह याद रखा जाए कि प्रमाण की अनुपस्थिति, अनुपस्थिति का प्रमाण नहीं होता।
लोग कह रहे हैं मैं सोहराय जैसे पुनीत त्योहार की छवि खराब करने की कोशिश कर रही हूँ। जबकि मैं अपने समुदाय और उसके पर्वों की हितैषी के रूप में उसे और सुरक्षित व मजबूत बनाने की माँग कर रही हूँ। इस विषय में छात्र नेताओं का बात न करना और तिलमिला जाना यह बताता है कि वे अपने त्योहार का सम्मान नहीं करते और उसमें व्याप्त कुरीतियों का उन्मूलन नहीं चाहते। कोई भी व्यवस्था आदर्श नहीं होती और उसमें हमेशा बेहतरी की गुंजाइश होती है।
क्या थी त्योहार वाली पोस्ट?
गौरतलब है कि रजनी मुर्मू ने फेसबुक पर पहले टिप्पणी की थी, 'संताल परगना में संतालों का सबसे बड़ा पर्व सोहराय बडे़ ही धूमधाम से मनाया जाता है... जिसमें हर गांव अपनी सुविधानुसार 5 से 15 जनवरी के बीच अपना दिन तय करते हैं... ये त्योहार लगातार 5 दिनों तक चलता है..... इस त्यौहार की सबसे बड़ी खासियत स्त्री और पुरूषों का सामुहिक नृत्य होता है.... इस नृत्य में गाँव के लगभग सभी लोग शामिल होते हैं.... मां बाप से साथ बच्चे मिलकर नाचते हैं...
पर जब से संताल शहरों में बसने लगे तो यहाँ भी लोगों ने एक दिवसीय सोहराय मनाना आरंभ किया...खासकर के सोहराय मनाने की जिम्मेदारी सरकारी कॉलेज में पढने वाले बच्चों ने उठाई... मैंने दो बार एसपी कॉलेज दुमका का सोहराय अटेंड किया है.... जहाँ मैं देख रही थी कि लड़के शालिनता से नृत्य करने के बजाय लड़कियों के सामने बत्तमीजी से ' सोगोय' करते हैं... सोगोय करते करते लड़कियों के इतने करीब आ जाते हैं कि लड़कियों के लिए नाचना बहुत मुश्किल हो जाता है.. सुनने को तो ये भी आता है कि अंधेरा हो जाने के बाद सिनियर लड़के कॉलेज में नयी आई लड़कियों को झाड़ियों की तरफ जबरजस्ती खींच कर ले जाते हैं... और आयोजक मंडल इन सब बातों को नजरअंदाज कर चलते हैं...'