योगी सरकार ने शुरू किया ऑपरेशन दुराचारी, UP में रेपिस्टों के चौराहों पर लगेंगे पोस्टर
जनज्वार। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार का कहना है कि वह अपराधियों के लिए सख्त कदम उठा रही है। इसी कदम के तहत मुख्यमंत्री योगी ने घोषणा की है कि अगर कोई बलात्कार के अपराध में संलिप्त पाया गया तो उसके पोस्टर चौराहे पर लगाये जायेंगे। योगी सरकार अपराधियों के खिलाफ ऑपरेशन दुराचारी चलायेगी।
योगी आदित्यनाथ ने ऑपरेशन दुराचारी की घोषणा करते हुए कहा कि कहीं भी महिलाओं के साथ कोई आपराधिक घटना होगी तो उसके लिए संबंधित बीट इंचार्ज, चौकी इंचार्ज, थाना प्रभारी और सीओ जिम्मेदार होंगे।
सीएम योगी ने कहा कि महिलाओं से किसी भी तरह का अपराध करने वाले अपराधियों को महिला पुलिसकर्मियों से ही दंडित कराने की योजना है। ऐसे अपराधियों और दुराचारियों के मददगारों के भी नाम उजागर करने का आदेश योगी सरकार द्वारा दिया गया है।
इसी कड़ी में योगी आदित्यनाथ ने कहा कि महिलाओं और बच्चियों के साथ किसी भी तरह की दरिंदगी को अंजाम देने वालों को समाज को जान लेना चाहिए, पहचान लेना चाहिये, इसीलिए हमने ऑपरेशन दुराचारी के तहत निर्णय लिया है कि चौराहों पर ऐसे अपराधियों के पोस्टर लगवाये जायें।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री योगी का पोस्टर अभियान इससे पहले सीएए को लेकर 19 दिसंबर को लखनऊ में हुए प्रदर्शन में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले आरोपियों की फोटो, उनके नाम-पते के शुरू हुआ था। सीएए का विरोध कर रहे लोगों के पोस्टर योगी सरकार ने उनके इलाकों में लगवाये थे। साथ ही यह नोटिस भी चस्पां किया गया था कि अगर इन लोगों ने जुर्माना नहीं चुकाया तो कुर्की की जाएगी।
गौरतलब है कि तब इसका भारी विरोध हुआ था। योगी सरकार ने आदेश जारी किया था कि जो लोग सीएए विरोधी आंदोलन में उपद्रव फैलाने के लिए आरोपित हैं, उनसे उस दौरान हुए नुकसान की भरपायी करवायी जाये। इसी आदेश के बाद पुलिस ने फोटो-वीडियो के आधार पर 150 से अधिक लोगों को नोटिस भेजे थे और पुलिस प्रशासन ने 57 लोगों को सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी ठहराया था।
सीएए विरोधियों के पोस्टर लगाने का मामला हाईकोट पहुंचा था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की विशेष पीठ ने लखनऊ के डीएम और पुलिस कमिश्नर को सीएए के विरोध में उपद्रव करने वालों के लगाए गए पोस्टर अविलंब हटाने के आदेश दिया था।
विशेष खंडपीठ ने 14 पेज के फैसले में योगी सरकार की इस कार्रवाई को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत निजता के अधिकार (मौलिक अधिकार) का हनन बताया था। अदालत ने निर्णय दिया था कि इस तरह से किसी के मौलिक अधिकारों को छीना नहीं जा सकता है। ऐसा कोई भी कानून नहीं है जो उन आरोपियों की निजी सूचनाओं को पोस्टर-बैनर लगाकर सार्वजनिक करने की अनुमति देता है, जिनसे क्षतिपूर्ति ली जानी है।