अंडमान में बंधुआ रहे बुजुर्ग फुचा को अंतत: मिल गया परिवार, पत्नी से मिले तो दोनों की आंखों से बही अश्रुधार
इतने लंबे अरसे के बाद कोई अपने परिवार से मिले तो क्या दशा हो सकती है सहज ही कल्पना की जा सकती है, फुचा राम महली की भी आंखों में आंसू आ गये, वही पत्नी लुंदी देवी की आंखों से आंसू भावुकता में अविरल बहते रहे..
विशद कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार। अंडमान में बंधुआ रहे फुचा राम महली 30 साल बाद अंतत: अपने परिवार से मिल ही गए। हालांकि, इसके पहले उन्हें थोड़ी निराशा भी हुई थी, जब शुरुआत में इनके बच्चों को कन्फ्यूजन था कि वे उनके पिता हैं कि नहीं। दोष बच्चों का भी नहीं था, चूंकि जब वे कमाने के उद्देश्य से अंडमान के लिए निकले थे तब उनकी शादी को कुल जमा 5 वर्ष ही हुए थे, लिहाजा उस वक्त बच्चे बिलकुल ही छोटे थे। फिर भी उन्हें विश्वास था कि वे अपनी पत्नी को देखते ही पहचान लेंगे, जिनके पैर के काले दाग को वे अबतक भूले नहीं हैं।
मुफलिसी, बेबसी और लाचारी भरी है फुचा महली की दास्तान
बता दें कि झारखंड के गुमला जिला व प्रखंड के फोरी गांव निवासी 60 वर्षीय फुचा महली आदिवासी वर्ग से आते हैं। करीब 30 वर्षो बाद बीते 3 सितंबर को वे अपने परिवार से मिल सके, चूंकि पिछले 30 वर्षो से वे अंडमान निकोबार में फंसे हुए थे। इतने लंबे अरसे के बाद कोई अपने परिवार से मिले तो क्या दशा हो सकती है, सहज ही कल्पना की जा सकती है। फुचा राम महली की भी आंखों में आंसू आ गये, वही पत्नी लुंदी देवी की आंखों से आंसू भावुकता में अविरल बहते रहे।
पूरी जवानी बीती बंधुआ मजदूर के रूप में
झारखंड के गुमला जिला अंतर्गत विशुनपुर प्रखंड के फोबिया गांव के रहने वाले फुचा महली की पूरी जवानी बंधुआ मजदूर के रूप में अंडमान में बीत गई। जब उन्हें 35 साल बाद झारखंड सरकार की मदद से वापस लाया गया तो उनके बच्चों ने पहचानने से साफ इंकार कर दिया। फुचा महली को अंडमान-निकोबार से शुक्रवार 3 सितंबर को झारखंड लाया गया था।
था विश्वास-पत्नी को देखते ही पहचान लेंगे
बच्चों द्वारा पहचानने से इंकार करने पर भी फुचा (Fucha Mahli) ने उम्मीद नहीं छोड़ी, कहा- पत्नी के पैर में काले दाग हैं, जिसे मैं भूला नहीं हूं। मैं अपनी पत्नी को देखते पहचान लूंगा। शायद यही एक उम्मीद 70 वर्षीय फुचा महली के पास बची थी, अपने परिवार से मिलने और उनका अपना कहलाने की।
कैसे वापस लौटे फुचा
गुमला के लेबर कमिश्नर को पहली बार इसकी जानकारी दी गई थी। इसके बाद झारखंड सरकार की मदद से इन्हें अंडमान से वापस लाया गया था। 70 की उम्र को पार कर चुके फुचा महली अब ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहे हैं। उनके आधे से ज्यादा दांत गिर गए हैं। आवाज भी साफ नहीं निकल रही है। चलना मुश्किल हो गया है। बावजूद इसके 35 साल बाद उनके चेहरे पर आज भी एक गर्वीली मुस्कान है। उन्हें खुशी इस बात की है कि उम्र के आखिरी पड़ाव में ही सही, लेकिन उन्हें अपनी मिट्टी मयस्सर तो हुई।
फुचा महली के दो बेटे और एक बेटी है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया था, बच्चे तो मुझे नहीं पहचान पाए, लेकिन पत्नी के पैर में काले दाग से मैं उसे पहचान लूंगा। झारखंड के गुमला जिले के विशुनपुर प्रखंड के फोबिया के रहने वाले फुचा की पूरी जवानी बंधुआ मजदूर के रूप में अंडमान में बीत गई। आज से 35 साल पहले वह मात्र 1 साल काम करने के उद्देश्य से अंडमान गए थे, लेकिन लौट नहीं सके। सरकार की पहल से दो दिन पहले ही उन्हें मुक्त कराकर झारखंड लाया गया है।
फुचा महली के गुमला जाने से पहले रांची में सीएम हेमंत सोरेन ने उनसे मुलाकात की और उनके जीवन के पहलुओं की जानकारी ली।
किराए के पैसे न होने के कारण नहीं लौट सके थे
फुचा महली रुआंसा होकर कहते हैं, जब वे मजदूरी के लिए अंडमान गये तो जवान थे। शादी को अभी 5 साल ही बीते थे। वहां पैसा कमाने गए थे, ताकि परिवार को बेहतर सुविधा मुहैया करा सकें। अचानक कंपनी बंद हो गई। खाने के लाले तक पड़ गए। घर का रास्ता तो पता था, लेकिन किराए के लिए पैसा कहां से लाता।
न जाने कितनों को गुहार लगायी, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। कई दिन और रातें भूखों गुजारनी पड़ी। लोगों के लिए लकड़ी फाड़ता था, तब वे खाना देते थे। खाने के लिए लोगों के घरों में नौकर बनकर उनकी गाय को खिलाता था, तब किसी तरह दो टाइम का खाना मिलता था।रांची में ही फुचा महली ने श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता से मुलाकात की और आभार व्यक्त किया।
प्रवासी मजदूरों को मदद कर रही संस्था शुभ संदेश फाउंडेशन के डैनियल पुनराज कहते हैं, गुमला के लेबर कमिश्नर को फुचा महली के बारे में जानकारी मिली थी। उन्होंने इसकी जानकारी स्टेट हेल्पलाइन को दी, जिसके बाद श्रममंत्री सत्यानंद भोक्ता के निर्देश पर संस्था ने उन्हें झारखंड वापस लेकर आई।