ओडिशा में दलित बच्ची के फूल तोड़ने पर सवर्णों ने 40 परिवारों का किया सामाजिक ​बहिष्कार

ग्रामीणों ने मीडिया को बताया कि इनमें से एक परिवार ने इसकी शिकायत की तो मामला दो समुदाय आमने-सामने आ गए और अंततः इन 40 दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया....

Update: 2020-08-21 07:57 GMT

जनज्वार। उड़ीसा के ढेंकानाल जिला में एक बच्ची द्वारा फूल तोड़े जाने जैसी एक छोटी सी घटना के बाद एक बड़े दलित वर्ग के सामाजिक बहिष्कार किए जाने का मामला सामने आया है। यहां के कांतियो कटनी गांव में पिछले दो सप्ताह से ये 40 दलित परिवार सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं। उस 15 वर्षीया बच्ची ने गांव के एक ऊंची जाति के व्यक्ति के पिछवाड़े में लगी फुलवारी से फूल तोड़ लिए थे।

स्थानीय ग्रामीणों ने मीडिया को बताया कि इनमें से एक परिवार ने इसकी शिकायत की तो मामला दो समुदाय आमने-सामने आ गए और अंततः इन 40 दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया।

उस लड़की के पिता निरंजन नायक ने मीडिया से कहा 'हमने तुरंत खेद व्यक्त किया, ताकि मामला सुलझ जाय, पर घटना के बाद कई बैठकें कर उन्होंने निर्णय ले लिया कि हमलोगों का बॉयकॉट करना है। अब किसी को हमसे न तो बात करने की इजाजत है, न ही हमें गांव के किसी सामाजिक समारोह में शामिल होने की इजाजत है।'

वे आगे बताते हैं कि गांव में लगभग 800 परिवार हैं, जिनमें से 40 परिवार दलितों के हैं।

गांव के एक और निवासी ज्योति नाइक कहते हैं 'स्थानीय पीडीएस डीलर और किराना दुकानदार भी हमें सामान नहीं दे रहे, जिस कारण हमें जरूरी सामानों के लिए 5 किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है। लोगों ने हमसे बात करना भी बंद कर दिया है।'

इसे लेकर बीते 17 अगस्त को दलित समुदाय द्वारा जिला प्रशासन और स्थानीय थाने को एक आवेदन दिया गया है।

इस आवेदन में कहा गया है 'हममें से ज्यादातर लोग या तो अशिक्षित हैं या अल्पशिक्षित और गांव के लोगों के खेतों में काम कर रोजी-रोटी कमाते रहे हैं। अब गांव में काम नहीं मिल रहा, इस कारण काम की तलाश में अब दूसरे जगहों पर जाना पड़ रहा है।'

आवेदन में दलित समुदाय के लोगों द्वारा यह भी आरोप लगाया गया है कि शादी या शवयात्रा आदि के लिए गांव की सड़क का उपयोग न करने का फरमान भी जारी कर दिया गया है। यह भी कहा जा रहा है कि हमारे बच्चे गांव के सरकारी स्कूल में न पढ़ें और हमारे समुदाय के शिक्षकों को कहा जा रहा है कि अपना स्थानांतरण दूसरी जगह करा लें।

हालांकि, गांव के सरपंच और दूसरे समुदाय के लोग इस बात को स्वीकार करते हैं कि यह निर्णय लिया गया है कि उस समुदाय के लोगों के साथ बात नहीं किया जाएगा। पर बाकी सारे आरोपों को वे झूठा बताते हैं।

ग्राम विकास समिति के सचिव हरमोहन मलिक कहते हैं 'यह सच है कि लोगों को कहा गया है कि उनके साथ बात नहीं करें, चूंकि वे गलत कार्यों में संलग्न रहते हैं, लेकिन बाकी सारे आरोप निराधर हैं।'

सरपंच प्राणबंधु दास ने मीडिया से कहा 'यह दो समुदायों के बीच का मामला है और अंततोगत्वा इसका समाधान निकल जाएगा। बड़े समुदाय का मानना है कि दलित समुदाय के लोग उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाते रहते हैं और थानों में एससी-एसटी ऐक्ट के तहत झूठे मुकदमे दर्ज करा देते हैं।'

'जिस घटना ने यह रूप ले लिया वह मामूली विवाद और तकरार की घटना थी। दो-चार दिनों तक बड़े समुदाय ने दलित समुदाय के लोगों के साथ बात करना बंद कर दिया था, पर अब स्थिति सामान्य होती जा रही है।'

उधर दलितों द्वारा आवेदन दिए जाने के बाद दो बार शांति समिति की बैठक आयोजित की जा चुकी है, पर गांववालों का कहना है कि अभी समस्या का समाधान नहीं हुआ है।

कामाख्या नगर अनुमंडल के उपजिलाधिकारी बिष्णु प्रसाद आचार्य ने मीडिया से कहा 'उन्होंने स्थानीय थाने को आवेदन दिया था पर वहां लिए गए निर्णयों से वे सन्तुष्ट नहीं हुए। फिर वे मेरे पास आए। मैंने उन्हें अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के पास भेजा। मैं भी एक शांति समिति की बैठक कराने जा रहा हूं ताकि मामले का समाधान किया जा सके।'

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