Gujrat News: गुजरात में सड़क पर उतरे आदिवासियों ने रैली निकालकर किया बांध का विरोध, ये है कारण

Gujrat News: नर्मदा – तापी रिवर लिंक प्रोजेक्ट व प्रस्तावित पैखड डेम के विरोध में आदिवासियों ने रैली निकाली तथा राज्य सरकार के जमीन संपादन का विरोध किया...

Update: 2022-03-01 06:26 GMT

रैली निकालकर विरोध करते आदिवासी (Image/Janjwar)

मनीष भट्ट मनु की रिपोर्ट

Gujrat News: जल, जंगल व जमीन के हक की मांग को लेकर दक्षिण गुजरात के धरमपुर में हजारों आदिवासी सोमवार को सडकों पर उतरे। नर्मदा – तापी रिवर लिंक प्रोजेक्ट व प्रस्तावित पैखड डेम के विरोध में आदिवासियों ने रैली निकाली तथा राज्य सरकार के जमीन संपादन का विरोध किया। वलसाड धरमपुर के पास सोमवार को एकत्र हुए हजारों आदिवासियों ने गुजरात सरकार के नर्मदा – तापी रिवरलिंक प्रोजेक्ट व प्रस्तावित पैखड डेम के लिए जमीन संपादन का विरोध किया।

कांग्रेस विधायक अनंत पटेल व स्वर्गीय सांसद मोहन डेलकर के पुत्र अभिनव डेलकर की मौजूदगी में आदिवासियों ने कहा कि राज्य सरकार बार बार उनके गांव की जमीन का संपादन करती है जो उनके जल, जंगल व जमीन के हक के खिलाफ है।

प्रदर्शन करते आदिवासी (Image/janjwar)

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार मानसून के अतिरिक्त वर्षा जल व महाराष्ट्र के इलाके से बहकर आने वाले बारिश के पानी को एकत्र करने के लिए धरमपुर के पास चासमांडवा गांव में पैखड बांध बनाना चाहती है। इसके अलावा नर्मदा – तापी रिवर लिंग प्रोजेक्ट भी प्रस्तावित है। राज्य सरकार के जमीन संपादन की तैयारी के साथ ही आदिवासी यह कहते हुए सडकों पर उतर आए कि बार बार उनके इलाके में अलग अलग परियोजनाओं के नाम पर सरकार जमीन संपादन करती है जबकि 20 साल पहले की गई संपादित जमीन का आज भी उपयोग नहीं हो रहा है।

रैली में उमड़ा हुजूम (Image/janjwar)

कांग्रेस विधायक अनंत पटेल का कहना है कि भारतमाला प्रोजेक्ट, रिवरलिंग, दिल्ली – मुंबई कॉरीडोर , सफारी पार्क सबके लिए आदिवासियों की जमीन पर ही कब्जा किया जाता है जबकि आज भी आदिवासी बहुल गांव पेयजल को तरस रहे हैं। सरकार विकास के नाम पर जमीन का संपादन कर दे देती है जिसके खिलाफ आदिवासी सडकों पर उतरे हैं।

क्या है पैखड डेम योजना?

वलसाड के धरमपुर के पास चासमांडवा गांव में सरकार वर्षा जल को एकत्र करने के लिए 52 मीटर गहरा व 2703 मीटर लंबा बांध बनाना चाहती है। इसके आसपास के 7 गांव के करीब 4 सौ परिवारों को गांव से विस्थापित होना होगा तथा बांध के डूब क्षैत्र से इस इलाके के करीब 15-20 गांव प्रभावित होंगे।

आदिवासी इसके लिए अपनी खेती की जमीन देने को तैयार नहीं है। चूंकि उनका कहना है कि सरकार 10 गुना मुआवजा भी दे तो वे उस राशि से इतनी जमीन दुबारा नहीं खरीद पाएंगे। गौरतलब है कि सरकार की ओर से पूर्व में 10 रु प्रतिवर्गमीटर के भाव से हाइवे के लिए जमीन का संपादन किया गया था जिसका अभी उपयोग नहीं हो सका।

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