13 साल पुरानी गलती को अब सुधारेंगे शिवराज, धोना चाहते हैं भ्रूणहत्या और ड्रॉपआउट का पाप

लड़कियों की भ्रूण हत्या और ड्रॉप आउट का कलंक धोने की कोशिश में ऐसे लगे हैं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

Update: 2020-09-14 13:04 GMT

photo : social media

सौमित्र रॉय की रिपोर्ट

भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार ने राज्य में लिंगानुपात को बढ़ाने और बालिका भ्रूण हत्या को रोकने के लिए 2007 में लाड़ली लक्ष्मी योजना शुरू की थी। उस समय मध्यप्रदेश में लिंगानुपात 960 था, जो 2015-16 में घटकर 927 रह गया। यही नहीं, 15 से 16 साल की उम्र वाली लड़कियों के स्कूल ड्रॉप आउट में भी करीब 27 फीसदी की गिरावट आई है।

असल में शिवराज सरकार ने लाड़ली लक्ष्मी योजना में आर्थिक प्रोत्साहन को ज्यादा महत्व दिया। ग्वालियर में इसी साल जून में योजना में नाम जुड़वाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं द्वारा 6 हजार रुपए की रिश्वत लेने का मामला सामने आया था। हालांकि, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस साल 15 अगस्त को यह दावा किया था कि राज्य में लाड़ली लक्ष्मी योजना के तहत 78 हजार ई-प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं। लेकिन अब इस योजना में पिछली गलतियों को सुधारने की कवायद शुरू हो गई है।

ऐसे सुधारी जाएगी गलती

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार योजना में अब बालिकाओं को आत्मनिर्भर, स्वतंत्र बनने पर जोर दिया जाएगा, ताकि वे अपना और अपने परिवार का सहारा बन सकें। इसके लिए बालिकाओं को उच्च शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए आर्थिक सहायता दी जाएगी। इसके अलावा खुद का व्यापार शुरू करने में भी उनकी मदद करने की योजना है। संशोधित योजना में गृह, कानून और उद्योग मंत्रालयों को भी जोड़ जा रहा है।


भ्रूण हत्या का कलंक

मध्यप्रदेश के सिर पर देश में सर्वाधिक भ्रूण हत्या का कलंक है। एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार 1994 से 2014 के दौरान मध्यप्रदेश में भ्रूण हत्या के 537 मामले दर्ज हुए। 2018 में भ्रूण हत्या के केवल 50 मामले ही दर्ज हो सके, लेकिन इनमें भी महज 7 लोगों को ही पीसी-पीएनडीटी सजा हो पाई।

लाड़ली लक्ष्मी योजना के तहत अभी बालिका के 21 साल का होने पर एक लाख रुपए मिलते हैं। लेकिन तब तक इस पैसे को शिक्षा के प्रयोजन में खर्च नहीं किया जा सकता। शिवराज सरकार की सोच यही थी कि ये एक लाख रुपए लड़की की 21 साल की उम्र के बाद शादी होने पर काम आएंगे। इसके अलावा सरकार बालिकाओं की स्कूली शिक्षा के लिए तीन किस्तों में 12 हजार रुपए की मदद भी देती है, लेकिन अब सरकारी अधिकारी खुद इतनी रकम को पर्याप्त नहीं मानते। 

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