Rajni Murmu Controversy : आदिवासी पर्व सोहराय में लड़कियों से अश्लीलता की बात उठा निशाने पर आईं रजनी मुर्मू की आवाज बना सोशल मीडिया

सोहराय पर्व में लड़कियों के साथ होने वाली अश्लीलता पर सवाल उठाते हुए फेसबुक पोस्ट को आदिवासी सवालों से जोड़कर देखा जाने लगा है, जिससे आक्रोशित एसपी कॉलेज के आदिवासी छात्र-छात्राओं को आगे कर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है...

Update: 2022-01-19 12:55 GMT

आदिवासी प्रोफेसर रजनी मुर्मू निशाने पर, छात्रों को आगे कर उनके खिलाफ बनाया जा रहा माहौल (Photo : Rajni Murmu FB wall)

Rajni Murmu Controversy : झारखण्ड के दुमका स्थित एसपी कॉलेज में प्रोफेसर रजनी मुर्मू पर विवाद घबराता जा रहा है, कहा जा रहा है कि उन्होंने आदिवा​सी अस्मिता को चोट पहुंचायी है। सोहराय पर्व में लड़कियों के साथ होने वाली अश्लीलता पर सवाल उठाते हुए फेसबुक पोस्ट को आदिवासी सवालों से जोड़कर देखा जाने लगा है, जिससे आक्रोशित एसपी कॉलेज के आदिवासी छात्र-छात्राओं ने उनके खिलाफ दुमका नगर थाना में आईटी एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज करवा दी।

हालांकि जहां उनकी पोस्ट को आदिवासी अस्मिता को चोट पहुंचाने वाला कहा गया, वहीं एक बड़े तबके ने उन्हें सपोर्ट करना शुरू किया है और कहा है कि जब भी समाज में किसी गलत के खिलाफ आवाज उठायी जाती है तो उसका विरोध इसी तरह होता है।

कल्पना झा कहती हैं, 'महिलाएं जहाँ भी बोलने लगीं, उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश की गई...Rajni Murmu बहादुर हैँ, उनकी आवाज़ बुलंद हो!'

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मनीषा सिंह लिखती हैं, 'रजनी मुर्मू को पिछले 3 सालों में जाना है। मुझे इससे पहले नहीं पता था, सच में नहीं पता था कि आदिवासी स्त्रियां किस तरह समाज का सशक्त दस्तख़त बन रही हैं। मुझे पता है सोशल मीडिया पर कहने की कीमत कैसे चुकाई जाती है। रजनी के लिए यह और भी मुश्किल रहा होगा। कोई दो राय नहीं। बस इतना ही कहूंगी, आप डटे रहना। हम आपके साथ हैं, घबराना मत।'

अर्जुन महर ने लिखा है, 'Rajni Murmu जी, आपको डरने की ज़रूरत नहीं है..! हम आपके साथ खड़े है..! आपने महिला सुरक्षा से जुड़ी बात रखी है ना कि संथाल आदिवासी समुदाय की आस्था को ठेस पहुँचायी है..!'

शशि कुशवाहा ने टिप्पणी की है, 'सामाजिक कुरीतियों या परंपराओं के नाम पर हो रहे गलत कार्यों के खिलाफ लिखने-बोलने वाली महिलाओं को हमारे इस सो कॉल्स सभ्य समाज में बुरी महिला माना जाता है जिसे कुछ घटिया लोग "समाज विरोधी" नाम भी देते हैं।'

इप्सा सताक्षी कहती हैं, 'सही को सही और गलत को गलत कहना हर जिम्मेदार व्यक्ति का कर्तव्य है, और एक शिक्षक या शिक्षिका के तौर पर तो यह और भी महत्व रखता है। साथी Rajni Murmu ने भी यही किया। इनकी बात पर गौर कर सही वस्तुस्थिति का पता लगाना और उसमें सुधार के बजाय इनकी बर्खास्तगी की मांग निंदनीय है।'

राम चंद्रा ने लिखा है, 'सिद्धू कान्हू विश्वविद्यालय, झारखंड में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर Rajni Murmu की एक फ़ेसबुक पोस्ट पर छात्र उनकी बर्ख़ास्तगी की माँग पर कर रहे है। उन्हें धमकियां मिल रही हैं। अधिकतर मामलों में महिला उत्पीड़न व पितृसत्तात्मक माहौल के खिलाफ सवाल करती महिला की समस्यायों पर ठोस कदम उठाने की बजाए। यह पुरुष-प्रधान समाज हमेशा उन पर हमवार हो जाता है। महिलाओं की समस्यायों को अपने हृदय पर आघात व अपने वजूद पर खतरा समझ बैठता है। कितना कायर है, यह सामंती पुरुष-प्रधान समाज। जबकि महिलाएं इनके उत्पीड़न, पशुवत व्यवहार को सदियों से सहती आ रही है, जबकि आज जरूरत है इन महिलाओं की समस्याओं को चिन्हित कर ठोस कदम उठाये जाने की।'

जया निगम कहती हैं, 'रजनी मुर्मू के लिए जो लगातार फेसबुक पर आदिवासी समाज में औरतों की बदहाल स्थिति को उजागर करते हुए अपनी लेखनी से, अपनी ही कम्युनिटी के पॉवरफुल मर्दों और उनका साथ देने वाली महिलाओं से लोहा लेने का साहस कर रही हैं।'

Rajni Murmu controversy : आदिवासी प्रोफेसर रजनी मुर्मू ने सोहराय पर्व पर ऐसा क्या कह दिया कि झारखंड में मच गया बवाल

पेशे से शिक्षक और लेखिका नीलिमा चौहान लिखती हैं, 'Rajni Murmu हमारी फ़ेसबुक साथी हैं प्राध्यापक हैं, आदिवासी समाज की बुलंद आवाज़ हैं और स्त्रियों के हुक़ूक़ पर संवेदनशील होकर लिखती हैं। अपने इसी लिखने के कारण अपने ही समाज अपने ही लोगों के बीच आज उन्हें निशाने पर लिया जा रहा है। उनकी एक फेसबुक पोस्ट की वजह से उनके खिलाफ़ इकट्ठा होकर उनकी बर्खास्तगी की माँग की जा रही है। मामला संवेदनशील है। यह सिर्फ़ किसी टीचर की नौकरी बचाने भर का नहीं है यह हर उस स्त्री को सबक देने की पुरानी रवायत का सामना करने का भी है। हर उस स्त्री के लिए जो अपने समाज की किसी बुराई की तरफ इशारा भर करती है उसे चुप कराने की शव कामुक अतीतोन्मुखी होने की लत का है। हर समाज में स्त्रियां हाशिये पर रखी जाती हैं चाहे वह कितना भी उन्नत या कितना भी गैर उन्नत क्यों न हो अपनी सारी ताकत स्त्रियों को पछाड़ने में लगाता है। वैसे तो हमारे आसपास के समाज में किसी स्त्री ने कैसे अपने हिस्से की लड़ाई लड़ी पता चलने नहीं पाता है पर यह लड़ाई तो हमारे सामने की है, दिख पा रही है। हमें इस ज़रूरत के वक्त एक सशक्त स्त्री को कमज़ोर नहीं पड़ने देने का है।'

अनुज बसेरा ने लिखा है, 'समाज में सभी व्यक्तियों को अपनी विचार और पीड़ा को प्रमुखता से रखने का पूर्ण अधिकार है। इससे समाज की सही और गलत दोनों चीजें समय पर लोगों के सामने दिखने लगती है, परिणामस्वरूप उसका समाधान समय पर हो पाता है।आदिवासी समाज आदिम काल से ही महिला और पुरुष में बिना भेदभाव किए आपसी तालमेल के साथ जीते आया है। अभी वर्तमान समय में महिला और पुरुष के बीच हमारी यह दूरियाँ बढ़ी है। इसका एक वजह पुरुषों में पितृसतात्मक भाव का बढ़ना है। इस गेप को भरने के लिए महिलाओं की ओर से सिर्फ नहीं वरन पुरुषों को भी प्रमुखता से आवाज उठाने की आवश्यकता है। इस विषय पर Rajni Murmu मैम अच्छा कर रही हैं। उनके शब्दों और मंशाओं को हमें गहराई से मंथन करने की आवश्यकता है। मैं रजनी मुर्मू मैम के साथ हूँ।'

इन टिप्पणियों के अलावा सैकड़ों लोग आदिवासी प्रोफेसर रजनी मुर्मू के पक्ष में सोशल मीडिया पर आवाज उठा रहे हैं,हालांकि उनका विरोध करने वालों का भी अच्छा—खासा तबका भी सोशल मीडिया पर सक्रिय है और कोशिश कर रहा है कि किसी भी तरह से उन्हें नौकरी से बर्खास्त करा दिया जाये और उनकी आवाज को दबाया जाये, ताकि आगे से वह महिलाओं के पक्ष में बोलना छोड़ दें।

रजनी मुर्मू खुद भी इसे एक चुनौती के तौर पर ले रही हैं, तभी तो वह कहती हैं, मैंने जिस मामले में पोस्ट लिख कर लोगों को सच्चाई से वाकिफ कराने की कोशिश की थी, वह अब हल्के भयभीत मोड़ लेने लगा है। यह झूठ होगा यदि मैं कहूँ कि मुझे इसका अंदेशा नहीं था। एक महिला होने के कारण उत्पीड़न और ऑब्जेक्टिफिकेशन इतने करीब से देखा है कि बचपन से खुद से यही सवाल करती आई हूँ कि 'क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहूँगी?' आपके पास बोलने का अवसर और मंच है और आप सुविधाजनक चुप्पी चुनें या तारीफ के कसीदे पढ़ें, बजाय इसके कि आप बदलाव हेतु सामाजिक समस्याओं की तरफ ध्यान आकृष्ट कराएँ तो आप एक हिपोक्रिट से बढ़ कर और क्या हैं? हम जिस समाज में रहते हैं उसका ट्रेंड यही है कि यदि उसकी खामियों और खास कर लड़कियों/औरतों की समस्याओं पर मुखर होकर बात की जाए तो लोग बोलने वाले मुँह पर कैसे भी एक टेप चढ़ा देना चाहते हैं। वह टेप कभी उसके सामाजिक बहिष्कार के रूप में तो कभी आर्थिक बहिष्कार के रूप में सामने आता है। इसी कड़ी का नवीन उदाहरण है कॉलेज में छात्रों द्वारा मेरे निलंबन की माँग करना।'

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