आयशा सुसाइड केस : लड़की नहीं, पति और ससुराल वाले करते हैं तय उसकी ज़िन्दगी जहन्नम बनेगी या जन्नत

इस देश में एक साथ "तीन तलाक" के साथ "दहेज" शब्द बोलने पर भी आपराधिक कानून बना देना चाहिए और इसकी वृहद परिभाषा यौन उत्पीड़न की तरह गढ़कर ऐसा कानून बनाना चाहिए कि कोई लालची भेड़िया अपने जबड़े में आई किसी "आयशा" से दहेज की उम्मीद करें तो डर कर काँप जाए...

Update: 2021-02-28 07:09 GMT

Ayesha Suicide Case : आयशा के बेइंतहा मोहब्बत को ठुकराने वाले बेवफा आरिफ को मिली सजा, अब जेल में गुजारेगा 10 साल

मोहम्मद ज़ाहिद की टिप्पणी

और "आयशा" ने कल 27 फरवरी की शाम अहमदाबाद की "साबरमती नदी" में कूदकर आत्महत्या कर ली। उसने इसके पहले सबसे बात की, दुनिया से, अपने समाज से अपने पिता से और साबरमती नदी में कूद गयी।

आप इसे हिन्दू-मुस्लिम के ऐंगल से मत देखना, हालाँकि फिर भी आप देखोगे पर मैं इसे एक सामाजिक समस्या के रूप से देख रहा हूँ। मेरा मानना है कि दुनिया में सबसे साहसिक काम होता है एक लड़की का उस लड़की को आप "आयशा" नाम दे सकते हैं।

अपने माँ, बाप, भाई बहन और अपना घर जहाँ उसने जन्म लिया, जहाँ उसने चलना सीखा, जहाँ उसका बचपन बीता, जहाँ वह बड़ी हुई, वह सब उसके बड़े होने के कारण ही छोड़ कर एक ऐसे घर में जीवन जीने चले जाना जो उसके लिए अनजान होता है।

कभी कभी सोचता हूँ कि बेटियों का बड़ा होना यदि जुर्म है तो उन्हें बड़ा होना ही नहीं चाहिए, लगता है जैसे बड़े होकर उन्हें जहन्नम के ऊपर बने "सीरत पुल" को पार करना होता है जहाँ आमाल "आयशा" नहीं बल्कि उसके पति और ससुराल वालों का यह तय करता है कि उसकी ज़िन्दगी जहन्नम जैसी बनेगी या जन्नत जैसी।

कभी मर्दों ने सोचा है उस समय उस आयशा की मनःस्थिति? शादी तय होते ही आयशा के उस एहसास को सोचिए जब वह सोचती है कि यह घर यह आँगन यह मुहल्ला, बाप, माँ, भाई बहन सबकुछ, जिनकी वह लाडली रही है, सब छोड़कर एक अनजान लोगों के साथ जीवन जीने जा रही है।

कभी महसूस करिए इस एहसास को तो आपको अटलांटिक महासागर का नाव से अकेले पार किया सफर इतना डरावना नहीं लगेगा।

मेरी एक दोस्त थी, बहन सी, उसकी शादी तय हुई तो वह हर दिन मुझसे अपने इस एहसास को शेयर करती थी, पूरे एक साल बाद उसकी शादी हुई तो वह 365 दिन हर दिन अपने घर से जाने के एहसास को मुझसे शेयर करती रही।

घर की हर चीज़ उसे यह सोच कर रुलाती थी कि अब यह उसकी नहीं, एक एक छोटी छोटी चीज़ों को खुद से बिछड़ने का एहसास मुझे दिलाती थी, विदाई से पहले ही लड़कियाँ कितनी बार अंदर अंदर यह सब सोच कर रोती हैं, इसका एहसास मुझे उस बहन ने दिलाया।

आयशा को भी यही "एहसास" रहा होगा, जब उसका रिश्ता जालौर (राजस्थान) के आरिफ से तय हुआ था, पर "आरिफ" और उसका परिवार चंद सिक्कों की लालच में "आयशा" को खा गये। यह हमारे समाज का एक घृणित चेहरा है।

दरअसल, इस देश में एक साथ "तीन तलाक" के साथ साथ एक बार के "दहेज" शब्द बोलने पर भी आपराधिक कानून बना देना चाहिए और इसकी वृहद परिभाषा यौन उत्पीड़न की तरह गढ़ कर ऐसा कानून बनाना चाहिए कि कोई लालची भेड़िया अपने जबड़े में आई किसी "आयशा" से दहेज की उम्मीद करें तो डर कर काँप जाए।

और ऐसा ना होने के कारण ही दहेज की बेदी पर एक "आयशा" लाईव वीडियो बनाकर हंसती खिलखिलाती साबरनदी में कूद कर अपनी जान दे दी।

दरअसल "आयशा" का साल 2018 में राजस्थान के जालौर के रहने वाले आरिफ खान से विवाह हुआ था। शादी के बाद ससुराल वालों ने उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।

इतना ही नहीं लड़की जिस एक उम्मीद पर अपना घर बचपन माँ, बाप, भाई, बहन सबकुछ छोड़कर किसी दूसरे घर जीवन जीने आती है वह उम्मीद उसके पति को क्या कहिएगा जब उसके पति "आरिफ खान" ने भी पैसे के लालच में आयशा को ले जाकर मायके छोड़ दिया।

यही नहीं आरिफ ने अपनी आयशा के परिवारवालों से उसे अपने साथ ले जाने के लिए डेढ़ लाख रुपए की मांग की।

अब बाप को देखिए कि पेशे से दर्जी का काम करने वाले आयशा के पिता लियाकत अली ने किसी तरह इंतजाम करके डेढ़ लाख रुपए दे भी दिए, लेकिन पैसे मिलने के बाद आरिफ और उसके घरवालों का लालच और बढ़ गया।

उन्होंने आयशा को एक बार फिर से अहमदाबाद छोड़ दिया। लेकिन अब आयशा के घरवाले पैसे का इंतजाम करने में असमर्थ थे। मुंहमांगी रकम न मिलता देख आरिफ ने आयशा से बात तक करना छोड़ दिया।

शादीशुदा बेटी को ससुराल से निकाले जाने के बाद पैसों की कमी में कोई उपाय न सूझता देख लियाकत ने प्रशासन से मदद मांगी। उन्होंने आयशा के ससुरालवालों के खिलाफ मुकदमा कर दिया। आयशा के पिता के मुताबिक इसके बाद आरिफ ने आयशा से कहा कि "जाके कहीं मर जा और उसकी वीडियो भेज देना"

आयशा ने वही किया, अपने पति की आज्ञा का पालन, अपने पति से इकतरफा प्यार जो करती थी। निकाह के बाद पति के पैसों का लालच और पिता की गरीबी के बाद आयशा नहीं चाहती थी कि वह दोनों-परिवारों को कोर्ट कचहरी में लड़ते देखे। इन हालात से निराश होकर आयशा ने साबरमती नदी में छलांग लगा ली।

क्या आयशा? तुमसे भी कुछ कहना है।

तुमने यह क्या किया? तुम तो हिम्मती थी, पता है? तुमने हिम्मत और दिलेरी की दो बाधाएँ पार कीं, एक विवाह करके अपना घर छोड़ कर और दूसरा मर कर।

मरना आसान नहीं होता तुमने तो वह कर लिया।

तुम तो कुछ भी कर सकती थी, इतनी दिलेर थी फिर भी खुद को खत्म कर लिया? अरे पिता को हिम्मत देती, पिता के साथ खड़ी तुम जीत जाती मगर ये तुमने क्या किया...

प्यार न मिले तो क्या सारी दुनिया से प्यार खत्म हो गया था? दहेज के लालची भेड़ियों को सबक सीखा जाती तुम, ऐसे तो हार कर नदी में समा जाना कोई हल नहीं...

इस देश में दहेज के नाम पर हर दिन जलाई और सताई जाने वाली बेटियों की हिम्मत को तोड़कर क्या मिला तुम्हें मेरी बहन... थोड़ा रुकती, थोड़ा सोचती, थोड़ा अपने अब्बू की मजबूती बनती... दुष्टों से जीत जाती फिर अपने आकाश में अपने पंखों से उड़ती... कौन रोक पाता तुम्हें... पर तुमने अपने भीतर की ताकत को पहचाना ही नहीं, तुमने अपने सपनों को झिंझोड़ा ही नहीं... क्यों हावी होने दिया तुमने शैतानों को अपने व्यक्तित्व पर अपने अस्तित्व पर... रास्ते तुमने साबरमती के ही क्यों तलाशे...

तुम तो आयशा थी, अपने नाम का ही मान रख लेती, पर चुना भी तो एक "हराम मौत"। मैं भी एक बेटी का बाप हूँ, तुमने तो मुझे निराश ही कर दिया।

नदी से ये क्यों नहीं सीखा की वक्त के थपेड़ों और झंझावातों से जूझ कर भी वह बहती रहती है अविरल अविचल, निर्बाध और झरझर... तुम जब समा गई हो साबरमती के चमचम पानी में तब इस देश की हर आयशा की आंखों से दुख की नदी बह रही है...

हे "साबरमती" तुमने आयशा को रोका क्यों? तुमने उसे अपने में समाने क्यों दिया? लहरों से उछाल कर किनारे फेंक क्यों नहीं दिया? तुम तो माँ थी।

(मोहम्मद ज़ाहिद की यह टिप्पणी उनके फेसबुक वॉल से)

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