1857 में ही अंग्रेजों से डटकर लोहा लेने वाले मूलनिवासी आदिवासियों के साथ देश में सबसे बड़ा भेदभाव
आदिवासी समुदाय मूलनिवासी है पर शिक्षा और नौकरियों में पिछड़ा हुआ है, राज्य उनके साथ सौतेला व्यवहार कर रहा है....
Tribal live matter : सोनभद्र के रॉबर्ट्सगंज ब्लॉक के बहुआर में 20 दिसंबर को राइज एंड एक्ट के तहत सेंटर फॉर हार्मोनी एंड पीस द्वारा भारत की परिकल्पना और आदिवासी समाज पर परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें आदिवासी जीवन और उनकी संस्कृति की चर्चा की गई।
भारत की परिकल्पना आदिवासियों के योगदान की चर्चा किये बिना अधूरी है। आदिवासियों की जीवन शैली उनके संघर्ष, हक-अधिकार, न्याय, शासन पद्धति, रीति रिवाज, धर्म, दूसरे समाजों से उनका सम्पर्क और त्योहार आदि भारतीय पुरातन संस्कृति का अटूट हिस्सा हैं। आदिवासी प्रकृति के साथ-साथ मानव जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैं। आदिवासी महापुरुषों ने 1857 के पूर्व ही अंग्रेजों की नीयत को समझ लिया था। उन्होंने अपनी संस्कृति और अस्मिता की रक्षा के लिए हथियार उठाया, न की किसी संस्कृति के विरुद्ध। आजादी के आंदोलन से लेकर भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। उक्त बातें राइज एंड एक्ट द्वारा आयोजित परिचर्चा में वक्ताओं ने कही।
डॉ. मोहम्मद आरिफ ने कहा कि आजादी के आन्दोलन के दौरान ये सपना देखा गया था कि स्वतन्त्र भारत में आदिवासियों को उनकी संख्या के अनुपात एवं अनुरूप पद प्रतिष्ठा प्राप्त होगा, पर अभी तक ऐसा नहीं हो पाया। उनके संसाधनों पर राज्य जबरन कब्जा कर रहा है। हमें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य के लिए सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत है।
अयोध्या प्रसाद ने कहा कि आदिवासी समुदाय मूलनिवासी है पर शिक्षा और नौकरियों में पिछड़ा हुआ है। राज्य उनके साथ सौतेला व्यवहार कर रहा है। यदि आदिवासी समाज जागरूक हो जाये और आपस मे एकजुटता स्थापित करे तो समस्या का समाधान हो समता है।
हिदायत आज़मी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि आज अधिवासी समूहों के साथ खड़ा होने की जरूरत है। उनके योगदान पर विस्तृत चर्चा की जरूरत है। इसी के लिए हमें समाजिक केंद्र की स्थापना करनी होगी जो उनके अस्मिता और सम्मान की लड़ाई अन्य समाजों को साथ लेकर लड़े। भारत की परिकल्पना में सामाजिक न्याय, गरिमापूर्ण जीवन और शांति की ही कल्पना की गई है।
सामाजिक कार्यकर्ता रणजीत कुमार ने कहा कि तमाम सरकारी योजनाएं है, जिनका लाभ वंचित समुदाय नही उठा पा रहा है।पढा-लिखा न होना इसका सबसे बड़ा कारण है।हमें अपने समाज को सशक्त करना है साथ ही साथ एकजुट भी करना होगा। संविधान में जो भी अधिकार दिए गए हैं हम उन अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष भी करना होगा।
कार्यक्रम में रॉबर्ट्सगंज ब्लॉक के बहुआर, बढ़ौना, कुकराही, उरमौरा,बीचपाई, मडरा, बघुआरी, बसौली आदि गांवों के आदिवासियों ने सैकड़ों की संख्या में कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। कार्यक्रम के दौरान आदिवासियों के नायक बिरसा मुंडा, तिलका मांझी, सिद्धू-कानू आदि के जीवनी और संघर्षों के बारे में भी बताया गया।
इस मौके पर राजेश्वर, निर्मला, नीरा, बलिराम, अवधेश, विजेंद्र, चांदनी, रिंकू, शिवसागर, अनिता आदि की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही। कार्यक्रम का संचालन कमलेश कुमार और धन्यवाद ज्ञापन ज्योति ने किया।