सावित्रीबाई फुले की इस बेटी जस्टिस बी.वी. नागरत्ना का साहस देखिए, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले को गैरवाजिब और गैरकानूनी कहा
Justice BV Nagarathna : जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार का फैसला न केवल गैर-वाजिब था, बल्कि गैर-कानूनी भी था। उन्होंने कहा कि यह सरकार का फैसला था और उसने आरबीआई से केवल इस संबंध में अपनी राय देने को कहा। यह सब 24 घंटे के अंदर किया गया....
नवल किशोर कुमार की टिप्पणी
Justice BV Nagarathna : आज 3 जनवरी, 2023 है और आज जब मैं डायरी का यह पन्ना लिख रहा हूं तो मन अत्यंत ही प्रफुल्लित है। मन के प्रफुल्लित होने की दो वजहें हैं। एक वजह तो यह कि आज सावित्रीबाई फुले की जयंती है। आज के दिन ही 1831 में महाराष्ट्र के एक ओबीसी परिवार में उनका जन्म हुआ था। मेरा मन इस वजह से भी बहुत खुश है कि आज 191 साल बाद न केवल महाराष्ट्र में बल्कि पूरे भारत में लोग सावित्रीबाई फुले को याद कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर जिस तरह से लोग उन्के प्रति कृतज्ञतापूर्वक संदेश पोस्ट कर रहे हैं, वे अत्यंत हर्षित करनेवाले हैं।
मेरे मन के प्रफुल्लित होने की दूसरी वजह यह कि कल एक भारतीय नारी ने अपने विवेक को साबित किया और उसने हुक्मरान तक की परवाह नहीं की। उसने न्याय को समझा और पूरी साहस के साथ यह कहा कि देश में संसद महत्वपूर्ण है।
दरअसल, मैं बात कर रहा हूं कल सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ द्वारा दिये गये एक फैसले के संबंध में। यह मामला 8 नवंबर, 2016 को नरेंद्र मोदी द्वारा रातों-रात लागू किये गए नोटबंदी से जुड़ा था।
कुल 58 याचिकाओं की एकल सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने 4:1 के बहुमत के आधार पर नरेंद्र मोदी के उस फैसले को वैध ठहराया, जिसके कारण महीनों तक देश के लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। कुल 273 लोगों की मौत हो गई। यह भारत सरकार द्वारा 2018 में लोकसभा में दिया गया आंकड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त खंडपीठ की अध्यक्षता जस्टिस अब्दुल नजीर कर रहे थे। उनके साथ नरेंद्र मोदी के फैसले को वाजिब ठहराने वाले अन्य न्यायाधीशों में जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन शामिल रहे, जबकि जस्टिस बी.वी. नागरत्ना खंडपीठ की एकमात्र महिला सदस्य रहीं, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के फैसले को गैर-वाजिब और गैर-कानूनी कहा।
नरेंद्र मोदी के उपरोक्त फैसले को वाजिब कहन वाले जजों ने अपने फैसले में कहा कि प्रक्रिया के स्तर पर नरेंद्र मोदी के फैसले में कोई त्रुटि नहीं थी। उन्होंने चार आयामी टेस्ट की बात करते हुए कहा कि नोटबंदी का जो मकसद सरकार ने बताया – वे काला धन, आतंकवाद का वित्त पोषण और नकली मुद्राओं पर रोक लगाना था। इसलिए उद्देश्य के स्तर पर सरकार का फैसला वाजिब था।
नरेंद्र मोदी के फैसले के वाजिब ठहराते हुए चारों पुरूष जजों ने कहा कि सरकार ने विमुद्रीकरण के लिए जो तरीका अपनाया, वह संविधान सम्मत है। भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के बीच समन्वयन के आधार पर यह फैसला लिया गया। इन पुरूष जजों ने हालांकि यह भी अवश्य कहा कि सरकार के फैसले की प्रासंगिकता विचारणीय नहीं है। इसका मतलब यह कि नोटबंदी के फलाफल पर बात करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
वहीं दूसरी ओर बी. वी. नागरत्ना ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार का फैसला न केवल गैर-वाजिब था, बल्कि गैर-कानूनी भी था। उन्होंने कहा कि यह सरकार का फैसला था और उसने आरबीआई से केवल इस संबंध में अपनी राय देने को कहा। यह सब 24 घंटे के अंदर किया गया।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जबरन राय मांगे जाने की प्रक्रिया को भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26(2) के तहत उसके द्वारा की जाने वाली सिफारिश संबंधी प्रक्रिया नहीं कहा जा सकता है।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि आरबीआई अधिनियम यह कहता है कि यदि शीर्ष बैंक इस संबंध में कोई सिफारिश करता भी है तो उसके ऊपर संसद में विचार होना चाहिए और यह संसद की सहमति से ही किया जाना चाहिए। संसद को बायपास कर इस तरह के फैसले सरकार के स्तर पर लिया जाना असंवैधानिक हैं।
जाहिर तौर पर चार पुरुषों के फैसले पर एक महिला का फैसला तार्किक और नैतिक रूप से भारी है। जस्टिस नागरत्ना ने यह साबित कर दिया है कि आज की भारतीय महिला पितृसत्ता के दबाव को खारिज करने में कामयाब है और वह स्वतंत्र व न्यायपूर्ण राय रख सकती है।
मैं तो 1848 में सावित्रीबाई फुले व उनके जीवनसाथी जोतीराव फुले द्वारा लड़कियों के लिए खोले गए पहले स्कूल के बारे में सोच रहा हूं और उसकी परिणति आज जस्टिस नागरत्ना के रूप में देख रहा हूं।
आप ही कहें, मन प्रफुल्लित क्यों न हो?
जिंदाबाद भारत की नारियो! जिंदाबाद !