UP Election 2022: तो इन आंकड़ों की दम पर खुद को BJP के ताबूत की आखिरी कील बता रहे 'स्वामी प्रसाद मौर्य'
UP Election 2022: स्वामी प्रसाद मौर्य जिधर जाता है उधर जय और जिधर से जाता है उधर पराजय जाती है। न मानों तो मायावती का उदाहरण सामने है। स्वामी ने खुद को भाजपा के ताबूत की आखिरी कील भी बता डाला...
मनीष दुबे की रिपोर्ट
UP Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी को स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) के रूप में बड़ा झटका लगा है। योगी आदित्यनाथ सरकार में श्रम मंत्री मौर्य ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया और समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हो गये। स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपना इस्तीफा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को भेजते हुए बीजेपी सरकार पर दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों और छोटे व्यापारियों को नजर अंदाज करने का आरोप लगाया है।
स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ बांदा की तिंदवारी विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक बृजेश कुमार प्रजापति ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। वहीं कानपुर के बिल्हौर से भाजपा विधायक भगवती प्रसाद सागर ने भी देर आज मंगलवार 11 जनवरी की शाम स्तीफा सौंप दिया। एमएलए बृजेश कुमार प्रजापति ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़ने के बाद उन लोगों के लिए पार्टी में कुछ बचा नहीं है।
बृजेश प्रजापति ने अपने इस्तीफे में लिखा है कि पार्टी ने दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े समुदायों के नेताओं को कोई तवज्जो नहीं दी है इसलिए पार्टी छोड़ रहे हैंं। बता दें कि ठीक एक दिन पहले बदायूं जिले के बिल्सी से बीजेपी विधायक राधा कृष्ण शर्मा ने पार्टी को अलविदा कहा और अखिलेश यादव से मिलकर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए।
स्वामी का इस्तीफा बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है क्या?
मौर्य यूपी के कद्दावर नेताओं में से एक माने जाते हैं। कुशीनगर के पडरौना सीट से वो लगातार तीसरी बार विधायक चुने गए थे। इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर और उसके आसपास के इलाकों में कई सीटों पर स्वामी प्रसाद मौर्य का अपना दबदबा है। स्वामी प्रसाद मौर्य कुशवाहा समाज से आते हैं या कहें पिछड़ा वर्ग मतलब ओबीसी क्लास से आते हैं।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में कुशवाहा समाज के लोग ज्यादातर अपने नाम में शाक्य लगाते हैं, वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में मौर्य। उत्तर प्रदेश में इटावा, मैनपुरी, कन्नौज इलाके में यादवों के बाद ओबीसी में सबसे ज्यादा मौर्य समाज की आबादी है। माना जाता है कि पिछले चुनाव में बीजेपी ने गैर यादव ओबीसी वोट मैनेज कर ही बड़ी जीत दर्ज की थी। इस बार अखिलेश भी गैर यादव ओबीसी वोट के जुगाड़ में हैं।
मौर्य यूपी की राजनीति के 'मौसम विज्ञानी' कहे जा सकते हैं। 2017 में पासा पलटता देख बीजेपी में आए थे। तो क्या अब उन्होंने हवा के बदलते रुख को भांप लिया है? अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्या उन्हें ये पता है कि बीजेपी में उनकी स्थिति खराब होने वाली है। चूंकि मौर्य का इस्तीफा ऐसे दिन में आया जब दिल्ली में बीजेपी यूपी में टिकट बंटवारे पर चर्चा कर रही थी। जातीय समीकरण कहता है कि मौर्य के साथ बीजेपी नाइंसाफी नहीं करेगी तो फिर क्या वजह वही है कि यूपी की राजनीति नब्ज पर पकड़ रखने वाले मौर्य वक्त बदलता देख रहे हैं?
बीजेपी से पहले वो मायावती की बहुजन समाज पार्टी में थे, लेकिन साल 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में जब बीएसपी ने स्वामी प्रसाद मौर्य के परिवारवालों को टिकट देने से इनकार किया तो मौर्य नाराज हो गए और पार्टी छोड़ दी। जिसके बाद मौर्य बीजेपी में शामिल हो गए। 2017 में फिर चुनाव जीते और बीएसपी छोड़ बीजेपी में आने का फायदा भी मिला। योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री बन स्वामी प्रसाद मौर्य ने करीब साढ़े चार साल मंत्री बने रहे।
मैं बीजेपी के ताबूत की आखिरी कील-स्वामी प्रसाद
एक न्यूज चैनल से बातचीत करते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने भारतीय जनता पार्टी को अहंकारी करार देते हुए कहा कि, स्वामी प्रसाद मौर्य जिधर जाता है उधर जय और जिधर से जाता है उधर पराजय जाती है। स्वामी ने खुद को भाजपा के ताबूत की आखिरी कील भी बता डाला। उन्होने मायावती का हवाला देते हुए कहा कि, देख लीजिए मायावती का क्या अंजाम हुआ आज वो किसी लायक नहीं बची हैं। हम पिछड़ों और दलित समाज की दम पर ही उनकी राजनीति चलती थी।
अकेले स्वामी नहीं और भी हैं!
बता दें कि स्वामी प्रसाद के साथ करीब आधा दर्जन बीजेपी विधायकों के पार्टी छोड़ने की बात सामने आ रही है। जानकारी के मुताबिक कानपुर के बिल्हौर से बीजेपी विधायक भगवती सागर और शाहजहांपुर के तिलहर से बीजेपी विधायक रोशन लाल वर्मा ने भी बीजेपी का साथ छोड़ दिया है और अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। बता दें कि विधायक रोशन लाल ही स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा लेकर राजभवन पहुंचे थे।
स्वामी को लेकर पार्टी में हलचल
बीजेपी के लिए यह झटका इतना बड़ा है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि खुद सूबे के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने स्वामी प्रसाद मौर्य को मनाने के लिए ट्वीट किया है और उन्हें बैठकर बात करने की अपील की है। इसके अलावा स्वामी ने खुद भी बताया है कि उन्हे मनाने के लिए भाजपा के जो लोग लगे हैं वह जान रहे हैं, लेकिन किसी का भी नाम नहीं लेना चाहते।
उठ रहीं योगी से खटपट की बातें
अभी हाल ही में एक न्यूज चैनल से बात करते हुए स्वामी प्रसाद और योगी आदित्यनाथ के बीच की दूरी सामने आई थी। स्वामी प्रसाद मौर्य से जब अगले चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, 'केंद्रीय नेतृत्व ही तय करेगा कि साल 2022 में मुख्यमंत्री कौन होगा। वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी हो सकते हैं और कोई नया चेहरा भी हो सकता है। विधायक दल की बैठक में भी मुख्यमंत्री के नाम की मुहर लग सकती है।' मतलब साफ था कि स्वामी प्रसाद मौर्य योगी को सीएम उम्मीदवार आसानी से नहीं मानना चाहते थे।
अब कुल मिलाकर चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद मौर्या का बीजेपी का इस तरह से जाना बीजेपी के लिए अच्छा संकेत कतई नहीं कहा जा सकता। ये सिर्फ कुछ सीटों की बात नहीं है जहां मौर्या और उनके समर्थक विधायकों की चलती है। खुद को सर्वशक्तिमान बता रही पार्टी को बड़े नेता चुनाव से ऐन पहले छोड़ दें तो वोटर के मन में सवाल उठना लाजिमी होता है कि, आखिर क्या ऐसी बात हुई जो हिंदुत्व अचानक बिखरने लगा।