एक तस्वीर जिसने अमेरिकियों को रुलाया भी और हराया भी
9 साल की बच्ची जिसके शरीर में सिर्फ एक चड्ढी थी, रोते-बिलखते और भागते हुए उसके चेहरे में जो डर, जो दहशत और जो हताशा की भावना थी, उसने दुनिया भर को परेशान कर दिया....
वरिष्ठ पत्रकार लोकमित्र गौतम की टिप्पणी
8 जून 1972 का दिन। वियतनाम का एक गांव त्रांग बांग। मंदिर के पास बने शरणार्थी शिविर में रहने वाले छोटे बच्चों को मंदिर के प्रांगण में खेलने की इजाजत थी। इसलिए दोपहर बाद जब गांव के ज्यादातर बड़े लोग या तो खेतों में काम कर रहे थे या खाना खाकर आराम कर रहे थे, छोटे बच्चे मंदिर के प्रांगण में धमाचौकड़ी मचा रहे थे। तभी अचानक बहुत जोर का धमाका हुआ। कुछ जलने की बहुत तीखी गंध आयी। साथ ही चारों तरफ से लोगों की चीख-पुकार सुनायी देने लगी। अचानक कुछ सैनिक जो मंदिर के बाहर थे, उन्होंने बच्चों को मंदिर से भागने के लिए कहा। मंदिर से निकलकर सारे बच्चे बहुत तेज भाग रहे थे, उनमें एक नौ साल की लड़की भी थी, नाम था- किम फुक फान।
लड़की बहुत जोर से रो रही थी और पूरी ताकत से भाग रही थी। उसके कपड़ों में आग लग गई थी, इसलिए उसने खुद और एक सैनिक ने मिलकर उसकी फ्राॅक फाड़ दी थी, अब वह सिर्फ चड्ढ़ी पहने हुए थी और बहुत तेजी से गांव के बाहर की तरफ रोते हुए भाग रही थी, उसके पीछे तबाही का गुबार था।
उस दौरान उस पूरे इलाके में कुछ हथियार बंद सिपाही थे, कुछ रोते बिखलते गांव वाले थे और वहीं एसोसिएट प्रेस के फोटो जर्नलिस्ट निक उट भी थे। निक उट का काम ही था, वियतनाम में चल रहे गृह युद्ध की तस्वीरें खींचना; क्योंकि इस युद्ध में अमरीका सीधे सीधे अपनी फौजी ताकत के साथ युद्ध कर रहा था। इसलिए पूरी दुनिया का मीडिया इस युद्ध को कवर कर रहा था।
निक उट ने भागती हुई उस लड़की का फोटो खींचा और अगले दिन जब यह फोटो और उस बम बरसाती त्रासदी पर पूरी दुनिया के अखबारों में सुर्खियां बनीं, तो इस फोटो ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा। संवेदनशील लोग इस भागते हुए जार जार रोती और करीब करीब नग्न वियतनामी बच्ची को देखकर रो पड़े।
इस फोटो ने पूरी दुनिया में लोगों की वियतनामियों के साथ सहानुभूति पैदा कर दी और अमरीका के लिए नफरत। सिर्फ दुनिया के दूसरे देशों में ही वियतनाम युद्ध को लेकर यह भावनात्मक परिवर्तन नहीं हुआ बल्कि खुद अमरीका में भी बहुसंख्यक अमरीकी अपने ही फौज और अपनी ही सरकार के विरूद्ध हो गये।
इस तस्वीर ने अमरीकियों का इस हद तक हृदय परिवर्तन किया कि पूरे देश में वियतनाम युद्ध के विरूद्ध आंदोलन होने लगे, नौजवान सड़कों पर उतर आये और अंततः अमरीका को वियतनाम को लेकर अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। अमरीकी फौजों को बिना वियतनाम को जीते, बिना अपनी मंशा पूरी किये ही वापस अमरीका लौटना पड़ा।
इतिहास में इसे वियतनाम की अमरीका पर जीत दर्ज की गई और हो ची मिन्ह इस जीत के हीरो के तौरपर उभरकर आये। जबकि वास्तव में यह जीत उस तस्वीर की थी, यह जीत उस भागती हुई वियतनामी बच्ची के प्रति पूरी दुनिया में पैदा हुई सहानुभूति की थी। 9 साल की बच्ची जिसके शरीर में सिर्फ एक चड्ढी थी, रोते-बिलखते और भागते हुए उसके चेहरे में जो डर, जो दहशत और जो हताशा की भावना थी, उसने दुनिया भर को परेशान कर दिया।
बहरहाल, किसी तस्वीर से इस तरह का हृदय परिवर्तन अपने आप में एक अनूठा मामला था, जिसने युद्ध का पूरा नक्शा ही बदल दिया। इसके पहले दुनिया के इतिहास में कभी किसी तस्वीर ने युद्ध के मनोविज्ञान को इस कदर प्रभावित नहीं किया था। हालांकि लोगों ने तत्काल इस तस्वीर के प्रभाव को इस अंदाज में नहीं देखा। लेकिन जब निक उट की उस तस्वीर को पुलित्जर पुरस्कार मिला और पूरी दुनिया के बुद्धिजीवियों ने उस तस्वीर के प्रभाव की तारीफ की तो इस तस्वीर को अब तक के या कहें जब से कैमरा अस्तित्व में आया है, तब से अब तक की पहली पांच सबसे प्रभावशाली तस्वीरों में माना गया।
इस घटना के बाद कई महीनों तक किम फुक के जले हुए का इलाज हुआ, उनके तमाम अंग करीब करीब जल गये थे, लेकिन दुनियाभर की डाॅक्टर विरादरी ने अपना वेस्ट देकर, अपना सर्वोच्च प्रयास करके इस लड़की को बचा लिया और इस घटना के बाद इस लड़की को लोगों ने, उसके नाम की बजाय उसे 'नापाम गर्ल' कहकर पुकारने लगे। आज भी पूरी दुनिया में किम फुक अपने नाम से नहीं 'नापाम गर्ल' के नाम से ही जानी जाती हैं।
इस घटना के करीब एक साल बाद किम फुक इस लायक हुईं कि वह दोबारा से स्कूल जा सकें, अपने दोस्तों और दूसरे लोगों से मिल सकें। लेकिन इस घटना ने किम फुक को इस कदर पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया था कि दुनिया के हर कोने से मीडियाकर्मी उसके घर पहुंचने लगे, उसकी तस्वीरें खींचने लगे, उससे इंटरव्यू करने लगे। निःसंदेह इसके लिए तमाम मीडियाकर्मी उसे पैसे भी देते, लेकिन ग्लोबल मीडिया के इस अटेंशन ने किम फुक की जिंदगी को नरक बना दिया। वह और उसके घर वाले बहुत परेशान हो गये, यहां तक कि वियतनामी सरकार भी इससे परेशान हो गई। नतीजतन उसने लड़की को पढ़ने के लिए क्यूबा भेज दिया।
किम फुक क्यूबा में छह सालों तक रहीं। वहां से अपनी पढ़ाई पूरी की और यहीं पर अपने जीवन को व्यवस्थित करने के लिए कुछ काम करने की भी सोची, लेकिन छह साल बाद एक दिन जब किम फुक और उनके पढ़ने के दौरान बने प्रेमी वियतनाम से क्यूबा जा रहे थे, तो रास्ते में एक घंटे के लिए हवाईजहाज को टोरंटो में रुकना था। इस एक घंटे के ब्रेक में कई लोग जहाज से उतरकर एयरपोर्ट के आसपास घूमने चले गये। किम फुक और उनका प्रेमी भी इन्हीं लोगों में से थे, इसका नतीजा ये हुआ कि उनका जहाज छूट गया।
इस दौरान टोरंटो के कुछ नौजवानों को पता चला कि उनके बीच नापाम गर्ल मौजूद है, तो उससे बातचीत करने के लिए एयरपोर्ट आये और अपने साथ यह कहकर ले गये कि आप एक दो दिन बाद यहां से क्यूबा चले जाना। लेकिन फिर किम फुक और उनके प्रेमी कभी भी टोरंटो से बाहर नहीं जा पाये। उन्होंने वहीं अपनी जिंदगी सेटल कर ली।
आज 57 साल की किम फुक युद्ध पीड़ित बच्चों के लिए पूरी दुनिया में काम करती हैं। हर जगह उन्हें बुलाया जाता है, जहां वो भाषण देती हैं। लोग उनसे उनके बारे में बहुत कुछ पूछते हैं। खासकर यह कि उनकी नापाम गर्ल के रूप में लोकप्रियता है, वह उन्हें कितना परेशान करती है? किम फुक कहती हैं, 'पहले मुझे इस सबको दोहराने में और उस घड़ी को याद करने में बहुत गुस्सा आता था, मुझे लगता था मैं ही दुनिया में सबसे ज्यादा पीड़ित थी? लेकिन धीरे धीरे मैं अब इन सब चीजों से उबर गई हूं। अब मुझे गुस्सा नहीं आता बल्कि मैं उन तमाम लोगों का, शक्तियों का धन्यवाद करती हूं। जिनकी वजह से मैं आज जिंदा हूं।'
गौरतलब है कि आज की तारीख में किम फुक पूरी दुनिया में युद्ध विभीषिका, युद्ध त्रासदी का चेहरा हैं। हालांकि अब वह अपना धर्म बदलकर ईसाई हो गई हैं, चर्च जाती हैं और लोगों को अपनी कहानी सुनाते हुए यह भी बताती हैं कि बाइबिल की वजह से उनमें शांति आयी है, मन निर्मल हुआ है और वह क्षमा करना सीख गई हैं। लेकिन आज भी उनकी वह तस्वीर देखकर लोग भावुक हो जाते हैं।