Awakening in South America : अपनी पहली महायात्रा पर निकला 'लोकतांत्रिक' बारबाडोस, बदलाव के दिखने लगे संकेत
Awakening in South America : कैरिबियन द्वीप समूह में स्थित बारबाडोस 29 नवम्बर को पूर्ण लोकतंत्र घोषित किया गया और इस तरह अब यह दुनिया का सबसे नया लोकतंत्र बन गया है....
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
Awakening in South America : दक्षिण अमेरिकी देशों को प्रायः निरंकुश शासन, मानवाधिकार हनन और महिला उत्पीड़न के लिए जाना जाता है, पर अब इसमें बदलाव के संकेत दिखने लगे हैं। कैरिबियन द्वीप समूह (Caribbean Island) में स्थित बारबाडोस (Barbados) 29 नवम्बर को पूर्ण लोकतंत्र घोषित किया गया और इस तरह अब यह दुनिया का सबसे नया लोकतंत्र (Newest Republic) बन गया है। इससे पहले यह ब्रिटिश राजशाही द्वारा संचालित देश था। ब्रिटिश राजशाही से बाहर आने में बारबाडोस को 396 वर्ष लगे। 29 नवम्बर की आधी रात को राजधानी ब्रिजटाउन (Bridgetown) में सत्ता हस्तांतरण का जश्न आयोजित किया गया था, जिसमें प्रिंस चार्ल्स भी मौजूद थे।
नेशनल कल्चरल फाउंडेशन के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर कैरोल रोबर्ट्स रेइफेर (Carol Roberts Reifer) को सत्ता हस्तांतरण की घोषणा करने का सम्मान दिया गया और नए लोकतंत्र की पहली राष्ट्रपति होने का सम्मान एक महिला, डेम सांद्रा मासों (Dame Sandra Mason) को मिला। इससे पहले सत्ता के शीर्ष पर ब्रिटिश राजशाही के प्रतिनिधि के तौर पर गवर्नर जनरल होते थे। राष्ट्रपति डेम सांद्रा मासों को प्रधान न्यायाधीश ने शपथ दिलाया। शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि लोकतांत्रिक बारबाडोस अपनी पहली महायात्रा पर निकला है, इस जटिल, विभाजित और अशांत दुनिया में आवश्यक है कि इसकी यात्रा निर्बाध चलती रहे।
स्थानीय जनता ऐसे मौके पर प्रिंस चार्ल्स (Prince Charles) की उपस्थिति का प्रबल विरोध कर रही थी। प्रिंस चार्ल्स ने अपने संबोधन में आश्चर्यजनक तौर पर राजशाही के काले दिनों, जनता के दमन और गुलामी की ज्यादतियों के लिए माफी माँगी और उस दौर को ब्रिटेन के इतिहास का काला दौर बताया। प्रिंस चार्ल्स के भाषण के बाद विरोध ख़त्म हो गया, और उनके विरोधी भी उनकी स्पष्टवादिता की तारीफ़ करने लगे।
राजशाही से अलग होने का फैसला नवम्बर 2020 में प्रधानमंत्री मिया मोटले (Mia Mottley) ने आधिकारिक तौर पर लिया था और 29 नवम्बर के कार्यक्रम का संचालन भी उन्होंने ही किया। उन्होंने कहा कि, यह गर्व की बात है कि आज यह देश ब्रिटिश उपनिवेश की दास्ताँ से मुक्त हो गया। ब्रिटिश राजशाही के चंगुल से मुक्त होने की मांग वर्ष 1966 से शुरू हुई थी, पर इसका परिणाम 29 नवम्बर को निकला। इसी भाषण में उन्होंने बारबाडोस की अंतरराष्ट्रीय पॉप गायिका रिहाना (Rihanna) को बारबाडोस का राष्ट्रीय नायक घोषित कर दिया।
56 वर्षीय प्रधानमंत्री मिया मोटले को जो लोग ठीक से जानते हैं, उन्हें इन सब में कुछ आश्चर्यजनक नहीं लगा। वे इस देश की पहली महिला प्रधानमंत्री हैं और मानवाधिकार, रंगभेद और सामाजिक न्याय के लिए सक्रिय रहती हैं और कुछ जानकारों के अनुसार अपने वक्तव्यों और वादों को पूरा करने के लिए तत्पर रहती हैं। वे यह भी प्रयास करती हैं कि उनके कामों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिले। लोकतंत्र उत्सव में प्रिंस चार्ल्स को विशिष्ट अतिथि के तौर पर शामिल करना और रिहाना को राष्ट्रीय नायक घोषित करने को जानकार इसी कड़ी में आगे देखते हैं।
प्रिंस चार्ल्स का मतलब अंतरराष्ट्रीय मीडिया कवरेज और रिहाना का नाम मतलब युवा वर्ग को अपने साथ जोड़ना है। एक राजनैतिक परिवार से आने के बाद भी राजनीति और समाज सेवा में मिया मोटले ने अपना रास्ता तैयार किया है। उनके दादा राजधानी ब्रिजटाउन के मेयर थे और उनके पिता संसद सदस्य थे। मिया मोटले को जनता और कामगारों से संवाद करने और उनकी आकांक्षाओं को परखने का महारथी माना जाता है। उन्होंने प्रधानमंत्री रहते पैन-अफ्रीकन आन्दोलन, प्रगतिशील आन्दोलन और सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में काम कर रहे संगठनों के साथ तालमेल बिठाया।
वर्ष 2018 में उनकी बारबाडोस लेबर पार्टी प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई थी। सत्ता में आते ही उन्होंने उच्च शिक्षा को मुफ्त किया था, जिससे उनकी लोकप्रियता पहले से भी अधिक बढ़ गयी। वर्ष 2020 में अमेरिका में अश्वेत जॉर्ज फ्लाएड की हत्या के बाद जब ब्लैक लाइव्स मैटर नामक आन्दोलन की शुरुआत की गयी तब मिया मोटले ने बारबाडोस में इस आन्दोलन की स्वयं अगुवाई की थी और उनके नेतृत्व में नागरिकों को गुलामी की तरफ धकेलने वाले एडमिरल होराटियो नेसम की 200 वर्ष पुरानी प्रतिमा को धराशाई किया था, उस दिन भी मिया मोटले ने अपने भाषण में ब्रिटिश उपनिवेशवाद से अलग होने का नारा दिया था।
हाल में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए आयोजित कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के 26वें अधिवेशन में सबसे प्रभावी भाषणों में एक मिया मोटले का भाषण भी था. उनके भाषण के प्रभाव का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसके बाद से अनेक राजनेता और मानवाधिकार संगठन मानने लगे हैं कि उनमें संयुक्त राष्ट्र के पहली कैरेबियन और पहली महिला महासचिव होने के सारे गुण हैं। बारबाडोस का समाज सामाजिक तौर पर पुरातनपंथी और धर्मभीरु है, और ऐसे समाज में भी मिया मोटले की नई सोच और विचारधारा कारगर हो रही है, इससे ही उनकी क्षमता और कुशलता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
एक दूसरे दक्षिण अमेरिकी देश होंडुरस (Honduras) में हाल में ही राष्ट्रपति चुनाव हुए हैं, अभी तक पूरे परिणाम सामने नहीं आये हैं, पर प्राप्त जानकारियों के अनुसार इस बार देश में पहली महिला और वामपंथी, जिओमारा कास्त्रो (Xiomara Castro), के राष्ट्रपति बनने के आसार हैं। अब तक महज 52 प्रतिशत मत-गणना की गयी है, जिसमें से 53 प्रतिशत मत कास्त्रो को मिले हैं और विपक्षी उम्मेदवार नसरी अस्फुरा (Nasry Asfura) को मिले हैं। अस्फुरा सार्वजनिक तौर पर अपनी हार स्वीकार कर चुके हैं. अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकें (Antny Blinken) और ताइवान की राष्ट्रपति सां इंग-वें (Tsan Ing-Wen) ने कास्त्रो को राष्ट्रपति बनाने की बधाई भी दे दी है।
इन चुनावों के परिणाम पर अमेरिका, चीन और ताइवान की निगाहें भी टिकी हैं, क्योंकि जिओमारा कास्त्रो ने चुनावों के दौरान कहा था कि यदि वे राष्ट्रपति चुनी जाती हैं तब ताइवान से राजनईक रिश्ते ख़त्म कर देंगीं और चीन का समर्थन करेंगीं। 12 वर्ष पहले जिओमारा कास्त्रो के पति मनुएल ज़ेलाया (Manuel Zelaya) राष्ट्रपति थे, पर उद्योगपतियों और सेना के विरोध के कारण उन्हें अपने पद से हटाना पड़ा था। इसके बाद से लगातार निरंकुश शासन का दौर चलता रहा। पिछले 2 बार से जुआन ऑर्लैंडो (Juan Orlando) राष्ट्रपति चुने जा रहे थे, जिनपर भ्रष्टाचार और ड्रग तस्करों के साथ देने के अनेक आरोप लगे हैं। इनके पूरे शासनकाल में जनता भ्रष्टाचार, महंगाई और निरंकुश शासन से परेशान रही है।
जिओमारा कास्त्रो ने कहा है कि राष्ट्रपति बनाने के बाद वे देश के नए संविधान पर काम करेंगीं, मानवाधिकार बहाल करेंगीं, गर्भपात के कानून को सरल करेंगीं और देश के भ्रष्ट न्यायतंत्र को दुरुस्त करेंगी। इस मतदान के बाद से होंडुरस की जनता ने राहत की सांस ली है, क्योंकि अब से पहले हरेक चुनावों के बाद विरोध और हिंसा का लम्बा दौर चलता था और चुनावों में धांधली की खबरें आती थीं। इस बार ऐसा कुछ नही हुआ, और चुनावों पर नजर रखने वाली संस्था, आर्गेनाईजेशन ऑफ़ अमेरिकन स्टेट्स ऑब्जरवेशन मिशन, ने भी बताया है कि चुनावों से सम्बंधित कोई शिकायत नही मिली है। कास्त्रो की सबसे बड़ी चुनौती बढ़ती बेरोजगारी दर को नियंत्रित करना, दो बड़े चक्रवातों से प्रभावित आबादी की तेजी से मदद करना और हिंसा और पैसा-उगाही की वारदातों पर अंकुश लगाना है। दूसरी सबसे बबडी समस्या है, होंडुरस की 74 प्रतिशत आबादी गरीब है और नई सरकार को इन्हें गरीबी से बाहर करना होगा।
नए संविधान बनाने की कवायद चिली (Chile) में भी की जा रही है। दुनिया भर की तरह चिली में भी वर्तमान में कट्टर दक्षिणपंथी विचारधारा वाली सरकार है और इसके खिलाफ वर्ष 2019 से बड़े प्रदर्शन किये जा रहे हैं। शुरुआत में प्रदर्शन मानवाधिकार, लैंगिक समानता और सरकारी निरंकुशता के खिलाफ थे, पर बाद में इसमें जनता को प्रभावित करने वाले हरेक मुद्दे जुड़ते चले गए। आन्दोलन का और उनकी मांगों का दायरा इतना बड़ा हो गया कि सारी बहस स्थानीय शासनतंत्र, सरकार और संविधान को बदलने तक पहुँच गयी।
इसके बाद सरकार ने नए संविधान के समर्थन को परखने के लिए वर्ष 2020 के अक्टूबर में एक जनमत संग्रह कराया, जिसमें 79 प्रतिशत लोगों ने नए संविधान का समर्थन किया। इस जनमत संग्रह में लोगों ने केवल नए संविधान का समर्थन ही नहीं किया था, बल्कि इस काम के लिए एक एलेक्टेड सिटीजन असेंबली की सिफारिश भी की थी, जिसके 155 सदस्यों में से महिला और पुरुषों की संख्या बराबर होगी।
इसके बाद वर्ष 2021 में 15-16 मई को सिटीजन असेंबली के 155 सदस्यों के लिए चुनाव आयोजित किये गए। जिसके नतीजों के अनुसार इसमें अधिकतर युवाओं की जीत हुई है, जो मानवाधिकार कार्यकर्ता, श्रमिकों के प्रतिनिधि, जनजातियों के प्रतिनिधि या फिर लैंगिक समानता की आवाज उठा रहे थे। इन चुनावों में दक्षिणपंथी विचारधारा वाले राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा का समर्थन लिए उम्मीदवार भी थे, पर महज 37 ऐसे सदस्य चुने गए हैं, जो दक्षिणपंथी राजनीति से जुड़े हैं और जिनकी विचारधारा रुढीवादी है। पर, इन रुढ़िवादी सदस्यों के असेम्बली में रहने से भी ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि चिली के क़ानून के हिसाब से संविधान की हरेक धारा को शामिल करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की ही आवश्यकता है।
चिली में इस समय जो संविधान है, उसे 1980 में तानाशाह पिनोचेट के शासन में लिखा गया था। इसमें तानाशाही, सामाजिक उपेक्षा और पून्जीवाद की भरपूर झलक थी। इस संविधान में महिलाओं, श्रमिकों और मानवाधिकारों की पूरी तरह से उपेक्षा की गयी थी। इसके बाद समय-समय पर चिली में बड़े आन्दोलन होते रहे, पर वर्ष 2019 में पहली बार सभी वर्ग एकसाथ आन्दोलन में शामिल हो गए। इसके बाद ही पूरी राजनैतिक व्यवस्था और संविधान को बदलने की चर्चा शुरू हुई थी।
हालांकि, अभी हाल में ही चिली में राष्ट्रपति चुनावों के प्राथन चरण के मतदान कराये गए हैं, जिसमें तानाशाह पिनोचेट के कट्टर समर्थक जोस अंतोनियो कास्ट ने अपने प्रगतिवादी युवा और पूर्व छात्र नेता गब्रिअल बोरिक से अधिक मत हासिल किया है, दूसरे चरण का मतदान 16 दिसम्बर को होना है। भले ही इन चुनावों में बदलाव की विजय नहीं हो, पर इतना तो तय है कि चिली के युवा, मानवाधिकार कार्यकर्ता और लैंगिक समानता के समर्थक अब बदलाव की राह पर चल पड़े हैं, और एकजुट हैं।
जाहिर है, दक्षिण अमेरिका में धीरे-धीरे ही सही पर बदलाव की आवाजें उठने लगी हैं, इसमें महिलायें सशक्त भूमिका अदा कर रही हैं। इसके परिणाम भी धीरे-धीरे आने लगेंगें।