1 लाख की आबादी वाले देश किरबाती की चीन से नजदीकियां क्यों खटक रही अमेरिका को

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस को किरबाती और चीन की बढ़ती नजदीकियां खटकने लगी हैं और इन देशों ने अप्रत्यक्ष तौर किरबाती सरकार को इस मुद्दे पर धमकाया भी है...

Update: 2020-08-12 05:21 GMT

महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

आज के दौर में चीन से किसी छोटे देश की नजदीकियां विश्व समुदाय को खटकने लगती हैं और ऐसा ही प्रशांत महासागर के देश किरबाती के साथ भी हो रहा है। किरबाती के राष्ट्रपति तनेती मामउ ने हाल में ही एक प्रेस कांफ्रेंस में ऐलान किया था कि तापमान वृद्धि के कारण जो महासागरों के सतह में वृद्धि हो रही है उससे उनके देश को डूबने का खतरा है, इसलिए द्वीपों की सागर तल से ऊंचाई बढ़ाने की योजना है और इसके लिए चीन की मदद ली जायेगी।

हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया है कि इस कार्य के लिए देश की संप्रभुता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि इस काम के लिए चीन समेत किसी भी देश से कोई आर्थिक मदद नहीं ली जायेगी और ना ही किसी भी देश को अपना सैन्य ठिकाना स्थापित करने की इजाजत दी जायेगी।

राष्ट्रपति तनेती मामउ शुरू से ही चीन के समर्थक रहे हैं और मार्च 2016 से ही राष्ट्रपति हैं। सितम्बर 2019 में उन्होंने चीन से आधिकारिक सम्बन्ध स्थापित करने की घोषणा की। इससे पहले किरबाती के चीन से राजनीतिक सम्बन्ध नहीं थी, बल्कि ताईवान से राजनीतिक सम्बन्ध थे। इस घोषणा के बाद उनकी पार्टी के ही अनेक सदस्य विरोध के तौर पर सरकार से अलग हो गए और तनेती मामउ की सरकार अल्पमत में आ गई।

कोविड 19 के दौर में जिन देशों में चुनाव हुए, उनमें किरबाती भी है। वहां जून 2020 में चुनाव कराये गए और राष्ट्रपति तनेती मामउ पहले से भी अधिक बहुमत से दुबारा चुने गए। इस जीत को किरबाती की जनता के चीन समर्थन के तौर भी देखा गया।

किरबाती प्रशांत महासागर में 33 द्वीपों का एक समूह है, पर इसमें से 20 द्वीप निर्जन हैं। किरबाती का महासागर का क्षेत्र लगभग भारत जितना है, पर अधिकतर आबादी केवल तीन द्वीपों तक सीमित है। इस देश की पूरी आबादी लगभग 1,10,000 है। यहाँ की अर्थव्यवस्था दूसरे देशों की सहायता पर टिकी है।

पर्यटन, नारियल और मछली का निर्यात यहाँ का मुख्य कारोबार है। यहाँ की मुद्रा ऑस्ट्रेलियन डॉलर है और राजधानी टारावा है। वर्ष 1979 से पहले तक यह द्वीप समूह ग्रेट ब्रिटेन के अधिकार में था, और उसी दौरान इस क्षेत्र में अमेरिका ने अनेक सैनिक अड्डे स्थापित किये थे। यह सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र है और कुछ द्वीपों से अमेरिका की दूरी 2000 किलोमीटर से भी कम रह जाती है। चीन-अमेरिका के शीत युद्ध और धमकी के दौर में इस क्षेत्र का सामरिक महत्त्व और बढ़ जाता है।

प्रशांत क्षेत्र में छोटे-बड़े कुल 18 देश हैं, जिसमें ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड भी शामिल हैं। इस क्षेत्र के लगभग सभी देश विश्व स्वास्थ्य संगठन को कोविड 19 के आंकड़े नियमित तौर पर भेजते हैं, पर किरबाती अपने आंकड़े नहीं भेजता। इसलिए, इस देश की कोविड 19 के सन्दर्भ में जानकारी नहीं मिलती। अन्य देशों के आंकड़ों से इतना पता चलता है कि ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर अन्य कोई भी देश कोविड 19 से बहुत प्रभावित नहीं है।

किरबाती का अमेरिका के साथ समझौता है कि यहाँ किसी भी देश के सैन्य ठिकाने स्थापित करने की इजाजत नहीं दी जायेगी। पर अब अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस को किरबाती और चीन की बढ़ती नजदीकियां खटकने लगी हैं और इन देशों ने अप्रत्यक्ष तौर सरकार को इस मुद्दे पर धमकाया भी है।

राष्ट्रपति तनेती मामउ ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि उनका देश किसी भी देश से किसी भी काम के लिए अपनी शर्तों पर ही समझौता करेगा, किसी देश से आर्थिक मदद नहीं लेगा और किसी भी देश को अपने यहाँ सैन्य अड्डा स्थापित करने की अनुमति नहीं देगा।

चीन छोटे, गरीब लेकिन सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देशों को आर्थिक मदद करता है, उनकी परियोजनाएं पूरी मदद करने में मदद करता है और फिर इन देशों पर दबाव बनाकर सैन्य ठिकाने स्थापित करता है। यही अमेरिका और यूरोपीय देशों का डर है।

तनेती मामउ के अनुसार किरबाती उन देशों में शुमार है जो जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते सागर तल में पूरी तरह से डूब सकते हैं। तनेती मामउ से पहले राष्ट्रपति रहे अनोते तोंग ने अपने कार्यकाल के दौरान ही पड़ोसी देश फिजी में ऊचाई पर स्थित एक द्वीप खरीदा था, जिससे यदि उनका देश पूरा डूब भी जाए तब नागरिकों को यहाँ बसाया जा सके।

किरबाती के नेशनल क्लाइमेट चेंज पालिसी के अनुसार यदि कुछ द्वीपों की ऊंचाई एक मीटर बढ़ाई जाए तब अगले 50 वर्षों तक इन्हें डूबने से बचाया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन, तापमान वृद्धि और महासागर ताल के बढ़ने के कारण किरबाती पर पड़ने वाले प्रभावों के आकलन में न्यूज़ीलैण्ड का नॅशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वाटर एंड एटमोस्फियरिक रिसर्च मदद कर रहा है, और द्वीपों की ऊंचाई बढ़ाना इस संस्थान द्वारा सुझाया गया तटीय सुरक्षा के लिए सुझाई गई दीर्घकालीन नीति का हिस्सा है। इसके तहत रेत की ड्रेजिंग कर द्वीपों की ऊंचाई बढाने की योजना है और द्वीपों के अन्दर और दूसरे द्वीपों तक जाने के लिए ऊंचाई पर लम्बे पुल बनाने की योजना है।

तनेती मामउ के अनुसार ऐसे कामों में अन्य देशों की तुलना में चीन का योग्यता जगजाहिर है। चीन से तनेती मामउ बड़ी संख्या में ड्रेजर चाहते हैं, जिससे रेत का खनन कर उन्हें द्वीपों पर डाला जा सके। चीन ने केवल अपने देश में ही बहुत लम्बे पुल नहीं बनाए हैं बल्कि दूसरे देशों में भी बनाए हैं। माले में मुख्य द्वीप से दूसरे द्वीप पर बसे हवाईअड्डे के बीच पुल चीन ने ही बनाया है। चीन हाल-फिलहाल भी मछली पकड़ने के इंफ्रास्ट्रक्चर विकार में भी किरबाती की मदद कर रहा है।

राष्ट्रपति तनेती मामउ के लिए उनके देश में पर्यटन का विकास, मछली पकड़ने के लिए सुविधाएं बढ़ाना और बढ़ते सागर तल के खतरे से आबादी को सुरक्षित रखना प्राथमिकता के विषय हैं। पूर्व राष्ट्रपति अनोते तोंग के अनुसार महासागर तल बढ़ने के कारण उत्पन्न चुनौतियों से निपटाना बहुत जरूरी है, वरना किरबाती की बड़ी आबादी को विस्थापित होना पड़ेगा। हालांकि फिजी में उन्होंने नागरिकों के बसने का इंतजाम कर दिया है, फिर भी बड़ी संख्या में नागरिकों का विस्थापन एक बड़ी चुनौती होगी। राष्ट्रपति तनेती मामउ को भरोसा है कि वास्तविक समस्या आने के पहले ही वे समाधान खोज लेंगें इसीलिए यह काम उनकी प्राथमिकता है।

जाहिर है इस समय लगभग पूरी दुनिया अमेरिका के समर्थन में एक ध्रुवीय है और इस दुनिया को अमेरिका की ज्यादतियां, मानवाधिकार हनन, ट्रम्प की बेवकूफियां और दुनिया में साम्राज्य विस्तार की मंशा नहीं दिखतीं। लेकिन इन्हीं देशों को चीन से शिकायतें हैं और चीन के बहिष्कार का इरादा भी। ऐसे में चीन से किरबाती की नजदीकियां दुनिया को खटक रही हैं और संभव है भविष्य में अमेरिका समेत कुछ पश्चिमी देश इसकी आर्थिक मदद से भी हाथ खींच लें।

दूसरी तरफ, जलवायु परिवर्तन का असर कितना व्यापक होने वाला है इसका भी पता चलता है। स्थिति इतनी गंभीर है कि द्वीपों पर बसे कुछ देश तो संभवत: दुनिया के नक़्शे से ही गायब हो जायेंगे। इन गरीब देशों को अपने नागरिकों के लिए वैकल्पिक जगह तैयार करनी पड़ रही है।

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