टोक्यो ओलिंपिक : 12 साल की हेंड जाजा से लेकर हिजाब के कारण ईरान से निष्कासित कीमिया का रोचक सफर
कीमिया अलिज़देह मूलतः ईरान की हैं, पर हिजाब, महिला शोषण और भ्रष्टाचार के बारे में बोलने के कारण उन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा और अब वे जर्मनी में शरणार्थी की हैसियत से रह रही हैं....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। हरेक ओलिंपिक में मैडल और अपने देश के खिलाड़ियों से अलग भी समाचार होते हैं, जिनकी हम उपेक्षा करते हैं। यह खेलों का महाकुम्भ है, पूरी दुनिया से इसमें खिलाड़ी और खेल अधिकारी एक जगह जमा होते हैं, पर इनमें से कुछ अलग कर जाते हैं।
सीरिया पिछले अनेक वर्षों से गृहयुद्ध की आग झेल रहा है और जीवन स्तर बहुत नीचे है। फिर भी यहाँ से 6 खिलाड़ी टोक्यो ओलंपिक्स में शिरकत करने पहुंचे हैं। इस दल में एक 12 वर्षीय टेबल टेनिस खिलाड़ी हेंड जाजा भी है, जो टोक्यो ओलंपिक्स में सबसे कम उम्र की खिलाड़ी है, किसी भी ओलिंपिक में टेबल टेनिस में प्रतिनिधित्व करने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी है और वर्ष 1968 के शीत ओलिंपिक के बाद से ओलिंपिक में हिस्सा लेने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी है।
यही नहीं, ओलिंपिक खेलों के शुरू में सभी देशों के खिलाड़ियों का मार्च होता है, जिसमें देश का ध्वज वाहक सबसे बुजुर्ग या फिर प्रसिद्ध खिलाड़ी होता है, पर सीरिया तीन की ध्वजवाहक बनने का गौरव 12-वर्षीय हेंड जाजा को मिला। उनकी छोटी उम्र का अंदाजा इस तही से लगा सकते हैं कि पहले राउंड में ही उनका मुकाबला जिस खिलाड़ी से हुआ, उन्होंने पिछले तीन ओलिंपिक में हिस्सा लिया था, और जब पहला ओलिंपिक खेल रही थीं तब हेंड जाजा का जन्म भी नहीं हुआ था।
टोक्यो ओलिंपिक में महिलाओं की स्ट्रीट स्केटबोर्डिंग की स्पर्धा ख़त्म होने के बाद पोडियम पर जिन तीन खिलाड़ियों ने कब्ज़ा किया वो किसी भी पोडियम पर खड़े होने वाली तीन सबसे युवा खिलाड़ी थीं। इस प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जापान की 13-वर्षीय मोमीजी निशिया ने जीता, रजत पदक ब्राज़ील की 13 वर्षीय राय्स्सा लाल ने जीता और कांस्य जापान की ही 16 वर्षीय फुना नातायासमा को मिला।
मोमीजी निशिया, ओलिंपिक खेलों के इतिहास में पदक जीतने वाली दूसरी सबसे कम उम्र की महिला बन गईं हैं। इनसे भी कुछ दिनों के कम उम्र की महिला 1936 के बर्लिन ओलिंपिक में 3-मीटर स्प्रिंगबोर्ड डाइविंग की स्वर्ण पदक विजेता मारजोरी गेस्त्रिंग थीं।
वर्ष 2016 के रिओ ओलंपिक्स से प्रतिस्पर्धी देशों के साथ ही आईओसी- रेफूजी टीम भी अलग से हिस्सा लेने लगी है। इसमें दुनिया के विभिन्न देशों में बसे शरणार्थियों में से चुनिन्दा खिलाड़ी प्रतिस्पर्धा में शिरकत करते हैं। रिओ में तो इन खिलाड़ियों ने कोई बड़ा उलटफेर नहीं किया था, पर टोक्यो में इसकी एक सदस्य, कीमिया अलिज़देह ने टायक्वोंडो में पिछले दो ओलिंपिक में स्वर्ण पदक हासिल करने वाली, ग्रेट ब्रिटेन की जेड जोंस को आसानी से हराकर सनसनी फैला दी।
कीमिया अलिज़देह मूलतः ईरान की हैं, पर हिजाब, महिला शोषण और भ्रष्टाचार के बारे में बोलने के कारण उन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा और अब वे जर्मनी में शरणार्थी की हैसियत से रह रही हैं। कीमिया अलिज़देह ने ईरान के नागरिक की हैसियत से रिओ ओलिंपिक में हिस्सा लिया था और कांस्य पदक भी जीता था। उस समय वे लगातार चेहरे को हिजाब से ढककर रखती थीं। ईरान की तरफ से ओलिंपिक पदक जीतने वाले वाली वे अकेली महिला हैं।
रिओ से वापसी के बाद ईरान के सर्वेसर्वा अयातोल्ला खामेनी ने स्वयं उनकी प्रशंसा की थी और ईरान की महिलाओं के लिए आदर्श बताया था। पर बाद में हिजाब के विरोध और महिला उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाने के कारण कीमिया अलिज़देह को ईरान छोड़ना पड़ा।
प्रशांत महासागर में बसे टापुओं के देश, किरबाती ने वर्ष 2004 से ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेना शुरू किया है और अब टोक्यो ओलिंपिक में पहली बार इस दल के साथ एक महिला जुडो खिलाड़ी, किनुआ बिरिबो, ओलिंपिक में पहुँची हैं। टोक्यो पहुंचते ही उन्होंने कहा, उन्हें मालूम है कि वे शायद ही कोई मुकाबला जीत पायें, पर ओलिंपिक टीम का हिस्सा होते ही वे अपने देश में महिलाओं और लड़कियों की रोल मॉडल बन गयी हैं।
उनके देश में महिलाओं पर हिंसा बहुत सामान्य है और लगभग 60 प्रतिशत महिलाओं के साथ ही वे भी इसका शिकार होती हैं। किनुआ बिरिबो ने कहा कि वे अपने देश वापस जाकर अपने रोल मॉडल के रुतबे के सहारे अपने देश की महिलाओं को हिंसा के विरुद्ध खड़ा करने का प्रयास करेंगी। यदि वे अपने प्रयास में सफल होती हैं तो इसे ही वे अपनी जीत मान लेंगी। किनुआ बिरिबो दुनिया को तापमान बृद्धि और जलवायु परिवर्तन के प्रति सचेत करना चाहती हैं।
जाहिर है, ओलिंपिक केवल कुछ मैडल की कहानी नहीं है और न ही केवल प्रतिस्पर्धा है। इसमें बहुत सारी कहानियां हैं और बहुत सारे सन्देश भी।