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Mulayam Singh Yadav : ये नेताजी का करिश्मा था जिसे मोदी परस्त मीडिया भी इग्नोर नहीं कर सका, दिखानी पड़ी- पल-पल की कवरेज

Janjwar Desk
11 Oct 2022 10:53 AM IST
Mulayam Singh Yadav : ये नेताजी का करिश्मा था जिसे मोदी परस्त मीडिया इग्नोर नहीं कर सका, जारी है- पल-पल की कवरेज
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Mulayam Singh Yadav : ये नेताजी का करिश्मा था जिसे मोदी परस्त मीडिया इग्नोर नहीं कर सका, जारी है- पल-पल की कवरेज

Mulayam Singh Yadav : जिनका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है...90 के दशक में इन नारों की गूंज ने यूपी में कांग्रेस की नींव हिला कर रख दी थी। इतना ही नहीं उनके तत्कालीन राष्ट्रीय नेताओं और राहुल-प्रियंका के पूर्वजों के घर से उनकी पार्टी का बोरिया बिस्तर समेटने की भी बुनियाद रख दी थी...

Mulayam Singh Yadav : जिनका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है...90 के दशक में इन नारों की गूंज ने यूपी में कांग्रेस की नींव हिला कर रख दी थी। इतना ही नहीं उनके तत्कालीन राष्ट्रीय नेताओं और राहुल-प्रियंका के पूर्वजों के घर से उनकी पार्टी का बोरिया बिस्तर समेटने की भी बुनियाद रख दी थी। इसी समय देश की राजनीति की बड़ी दिशा व दशा तय करने वाली लोकसभा सीटों के लिहाज से सबसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में छोटे से कद के मुलायम के बड़े सियासी किरदार की धमाकेदार एंट्री हुई।

इस किरदार ने नए जातीय गुणा-भाग के ऐसे प्रयोग किये, जिससे न सिर्फ प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरणों की रचना हुई बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी सर्वथा नई सियासी गणित की शुरूआत भी हो गई। यही कारण है कि कल भरूच में जनसभा को संबोधित कर रहे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जैसे ही सूचना मिली की मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया। वे भावुक हो गये। उन्होने मुलायम को याद करते हुए कहा कि, 'नेताजी ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद दिया था।'

साल 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल्ली की सत्ता में बैठते ही कुछ समय बाद देश की मीडिया ने विपक्ष की कवरेज एक तरह से बंद कर दी। सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री को टीवी अखबारों में कवरेज दी जाने लगी। इसके अलावा जो जगह बची, उनमें जिहाद और हिंदू-मुस्लिम को तरजीह दी गई। नेताजी के निधन के बाद ये पहला ऐसा मौका है जब विपक्ष के नेता को मेदांता से लेकर सैफई तक चौबीसों घंटे की कवरेज दी गई।

देश के तमाम बड़े अखबार धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव की वीर गाथाओं से पटे पड़े हैं। ऐसा शायद ही कोई पन्ना हो जिसमें मुलायम सिंह यादव का जिक्र ना किया गया हो। उनके जन्म से लेकर अंतिम विदाई तक फुल कवरेज दी गई है। सही मायनों में ये नेताजी की खुद के लिए बनाई गी पूंजी में से एक है, जो पक्ष के साथ विपक्ष भी उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सका। खुद सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ तमाम राग द्वेष भुलाकर अपने मंत्रियों के साथ सैफई पहुँचे।


सही मायनों में कहें ते अपनी भाषा, अपने वेष, अपने विषय, अपने समाज और अपने गांव को सत्ता की कालीन पर बिछा देने की ताकत मुलायम सिंह जैसे नेता ही रखते हैं। वे कहते भी थे कि, 'जो कार्यकर्ता उनके लिए धूप और धूल में खपा, सरकार बनने के बाद उसपर पहला अधिकार उनका है।' ये थे नेताजी, जो उन्हें वाकई उस तबके का नेता, जननायक बनाता था जो वर्ग मुलायम के उदय से पहले उपेक्षा का शिकार हुआ करता था।

यूपी में तमाम लोग बताते बैं कि नेताजी कभी भी फोन कर हाल चाल ले लेते थे। सुबह की पहली रोशनी के साथ लोगों से मिलना शुरू कर देने वाले नेताजी शाम ढ़लने तक उनके बीच ही समय गुजारते थे। उनकी राजनीति में दंभ व अहंकार के लिए कोई जगह ना थी। लेकिन एक पहलवान की तरह चुनौतियों से लड़ने और पार पाने की कला उनके भीतर जरूर भरी पड़ी थी। विभिन्न तरह की राजनीति करने वाले लोग कई बार उसे महज कैरियर मान लेते है, लेकिन मुलायम सिंह असल मायनों में पहलवान थे।


कुश्ती से लेकर सियासी अखाड़े तक अपने दांव से विरोधियों को धूल चटा देने वाले नेताजी को लोगों ने अंतिम पड़ाव पर अपनो के ही हाथों मात खाते हुए भी देखा। राजनीति का सबसे मजबूत और एकजुट माना जाने वाला परिवार बिखरा। पार्टी की दुर्गति हुई। मुलायम के राजनीतिक इतिहास में उसी पुत्र के हाथों पार्टी की अध्यक्षता से बेदखल होने का काला अध्याय भी जुड़ा, जिसे उन्होने मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचाया। ताउम्र समाजवादी धारा एवं लोहिया की राह पर चलने वाले इस नेता को भाजपा के साथ जाता देखना पड़ा। शिवपाल सिंह यादव के रूप में भाई को पार्टी से ही नहीं परिवार से भी दूर जाते देखना पड़ा

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