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Mulayam Singh Yadav: 'हम आप सबन के सामने खड़े हैं ये नेताजी की देन है'- फूलन देवी को संसद भेजने के फैसले से पूरा देश हैरान हुआ था
सैफई में अंतिम दर्शन के लिए जुटी भीड़ से साफ है मुलायम सिंह यादव हमेशा उनके 'नेता जी ' बने रहेंगे
Mulayam Singh Yadav: बात साल 1984 की है, उस ज़माने की दस्यु सुंदरी फूलन देवी (Bandit Queen Phoolan Devi) ने बंदूक छोड़कर सरेंडर कर दिया। उस वक्त यूपी में मुलायम सिंह की सरकार थी, साल 1993 में यूपी सरकार ने फूलन के ऊपर लगे तमाम आरोप वापस ले लिए और फूलन के जेल से बाहर आने का रास्ता खुल गया। बाहर आते ही उनके लिए नई भूमिका इंतज़ार कर रही थी। बाहर आते ही फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली। और उन्होंने साल 1996 में मिर्ज़ापुर सीट से एमपी का चुनाव लड़ा और 11वीं लोकसभा के लिए चुनी भी गईं। दो साल बाद दोबारा हुए चुनाव में फूलन देवी हार गईं लेकिन 1999 के चुनाव में वे फिर चुनकर सांसद बनीं। इसी कार्यकाल के दौरान उनकी ह्त्या हो गयी।
Biography Phoolan Devi : फूलन देवी की जन्मकुंडली
फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को जालौन जिले के गुढ़ा का पुरवा गांव में हुआ था। मल्लाह परिवार में जन्मी फूलन देवी को ठाकुरों के दुश्मन के रूप में याद किया जाता है। अपने ऊपर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए डकैत फूलन ने 14 फरवरी 1981 को कानपुर के बेहमई में 22 ठाकुरों को मौत की नींद सुला दिया था। लेकिन, यह भी सच है कि बेहमई कांड के बाद एक ठाकुर ने ही फूलन देवी की कदम दर कदम मदद की थी और उन्हें राजनीति का ककहरा पढ़ाया था। सपा नेता मुलायम सिंह की पहल के बाद फूलनदेवी जब भदोही से सासंद बनीं तब चंबल इलाके के चकरनगर में समाजवादी पार्टी की एक सभा थी। इसमें मुलायम सिंह यादव भी मौजूद थे।
ठाकुर बहुल इलाके में आयोजित इस सभा में मुलायम ने फूलन से कहा कि वह अपने संबोधन में ठाकुरों के सम्मान में भी कुछ कहें। तब फूलन ने इस बात का खुलासा किया कि भले ही मुझे ठाकुरों से नफरत के लिए याद किया जाता है लेकिन, बेहमई कांड के बाद मेरी सबसे ज्यादा मदद एक ठाकुर ने ही की थी। फूलन ने ठाकुर नेता जसवंत सिंह सेंगर का नाम लेते हुए बताया था कि बेहमई कांड के जब वह गैंग के साथ जंगलों में दर-दर भटक रहीं थीं। तब सेंगर साहब ने ही उन्हें महीनों शरण दी। खाने-पीने से लेकर अन्य संसाधन भी उपलब्ध करवाए।
8 साल की सजा के बाद राजनीति में एंट्री
साल 1983 में फूलन देवी ने 10 हजार लोगों और 300 पुलिस वालों के सामने आत्म समर्पण कर दिया था। तब उन्हें यह भरोसा दिलाया गया था कि मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा। आत्मसमर्पण के बाद फूलन को 8 साल की सजा हुई। 1994 में फूलन जेल से रिहा हुईं। फिर राजनीति में एंट्री ली और दो बार संसद बनीं। 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में घर के सामने उनकी हत्या कर दी गई। हत्या में शेर सिंह राणा का नाम आया था। फूलन की हत्या को राजनीतिक षडयंत्र माना जाता है। उनकी हत्या के छींटे उसके पति उम्मेद सिंह पर भी आए। हालांकि वह आरोपित नहीं हुए।
सपा सरकार में मुलायम ने सभी आरोप लिए थे वापस
बेहमई कांड के दो साल बाद इंदिरा गांधी की सरकार ने फूलन देवी के सामने आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा था। फांसी की सजा न देने का आश्वासन मिलने के बाद फूलन ने सरेंडर कर दिया। फूलन ने भिंड जिले के एक गांव में अपनी शर्तों के मुताबिक, हथियार डाले। फूलन को बिना मुकदमे ही 11 साल जेल की सलाखों के पीछे बिताने पड़े। जब मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो 1994 में फूलन देवी के ऊपर लगे सारे आरोप वापस ले लिए, जिसके बाद फूलन को जेल से रिहा कर दिया गया।
नेताजी की देन है हम आपके बीच खड़ी हुँ - फूलन
फूलन नेताजी मुलायम सिंह यादव के एहसानों को कभी नहीं भूल पाईं। आखिर 11 साल की जेल बिताने के बाद फूलन को सलाखों से आजादी मिल पाई थी। कई दफा फूलन ने सार्वजानिक मंच से कहा कि जब मेरे साथ अत्याचार हुआ तो मैंने आत्महत्या करने के बारे में सोचा, लेकिन ये जीत नहीं, बल्कि कायरता होती तो मैंने रावण का अंत करने के लिए हथियार उठाना मुनासिब समझा, लेकिन मुझे बाद में डकैत के नाम से नवाजा गया। मुलायम का जिक्र करते हुए फूलन ने कहा कि आज हम आपके बीच खड़ी हूं, वो नेता जी मुलायम सिंह की देन है। मैंने अपने ऊपर हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई इस दौरान पुरुषों के विरोध का सामना किया। मेरे ऊपर 18 अपहरण और 30 डकैती के आरोप लगे थे, लेकिन समाजवादी पार्टी के नेता ने मेरे दर्द को समझा और मुकदमे वापस लेते हुए रिहाई की मंजूरी दी। फूलन चुनाव लड़ी और मिर्जापुर सीट से लोकसभा पहुंचीं।
48 मुकदमों वाली सांसद से पूरा देश हैरान था
फूलन को बीहड़ों से संसद तक पहुंचाने के पीछे मुलायम सिंह का काफी योगदान रहा। अगर मुलायम मुकदमे वापस न लेते तो फूलन का जेल से रिहा होना काफी मुश्किल था। फूलन देवी पर हत्या, अपहरण, डकैती समेत कुल 48 आपराधिक मामले दर्ज थे। 1994 में मुलायम सरकार के उस फैसले से देशभर के लोग हैरान रह गए थे। लोग एक खूंखार डकैत को एक नेता के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। बाद में इस पर काफी चर्चा और विवाद पैदा हुआ, लेकिन सपा सरकार ने फूलन के खिलाफ न सिर्फ सारे आरोप वापस ले लिए थे, बल्कि पार्टी से टिकट भी दिया। वह पहली बार 1996 और फिर 1999 में मिर्जापुर सीट से लोकसभा पहुंचीं। 25 जुलाई 2001 को दिल्ली बंगले के बाहर तीन नकाबपोश हमलावरों ने सांसद फूलन देवी की हत्या कर दी। जिसमें मुख्य दोषी शेर सिंह को पाया गया। 2014 में कोर्ट ने शेर सिंह राणा को उम्रकैद की सजा सुनाई। अंत में 40 वर्ष बाद बेहमई कांड पर फैसला आया, जब तक फूलन के हाथों से बंदूक और शरीर से सांसें दोनों दम तोड़ चुकी थीं।