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फ्रांस के इतिहास में सबसे बड़ी हड़ताल, पूरे देश के मजदूर उतरे सड़क पर

Nirmal kant
8 Dec 2019 1:33 PM IST
फ्रांस के इतिहास में सबसे बड़ी हड़ताल, पूरे देश के मजदूर उतरे सड़क पर
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फ्रांस में पेंशन नियमों में व्यापक बदलाव के बाद ऐतिहासिक प्रदर्शन, इस बदलाव के बाद लाखों युवाओं की सुविधाओं में होगी कटौती, 5 दिसंबर से शुरू हुई हड़ताल पूरा देश ठप्प...

जनज्वार। 5 दिसंबर 2019 के दिन फ़्रांस में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों द्वारा पेंशन नियमों में व्यापक बदलावों के खिलाफ देशव्यापी आम हड़ताल शुरू हुई। इस हड़ताल का आह्वान रेलवे और यातायात कर्मचारियों, अस्पताल कर्मचारियों, शिक्षकों, अग्निशामक कर्मियों और छात्रों की यूनियनों द्वारा किया गया है। फ्रांस को ठप्प कर देने वाली यह हड़ताल कई दशकों में सबसे व्यापक मानी जा रही है और संभावना है कि यह हड़ताल सप्ताह भर चलेगी।

फ्रांस में 5 दिसंबर को शुरू हुई आम हड़ताल देश के लिए कई दशकों में सबसे महत्त्वपूर्ण हड़ताल बन सकती है। 5 दिसंबर की सुबह को फ्रांस के कोने कोने में मज़दूरों ने अपने कार्यस्थलों से निकलकर राष्ट्रपति मैक्रों द्वारा मजदूर वर्ग पर इस ताजा हमले के खिलाफ विरोध किया। इस हमले के तहत फ्रांस की रिटायरमेंट व्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया जाएगा और लाखों लोगों की सुविधाओं को काट दिया जाएगा, खासकर युवाओं और वृद्ध लोगों का।

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फ्रांस में लाखों की तादाद में लोग सड़कों पर उतरकर राष्ट्रपति मैक्रों की सामाजिक योजनाओं में कटौती करने के इस कदम को चुनौती दे रहे हैं- जिसमें 30 से अधिक यूनियनों में संगठित मज़दूर, युवा और छात्र, सामाजिक कार्यकर्ता और कई 'येलो वेस्ट' (आर्थिक न्याय के लिए संगठित एक आंदोलन) शामिल हैं। हड़ताल पहले ही फ्रांस के कई मुख्य शहरों तक फैल चुकी है: पैरिस, ल्योन, नान्ते, और मारसे में मज़दूर काम छोड़कर बाहर निकले। देश की 90 % ट्रेनें रद्द हो चुकी हैं, पेरिस में मेट्रो स्टेशन बंद हो चुके हैं, 40 % स्कूल बंद हैं, सैकड़ों फ्लाइट भी रद्द हो चुकीं हैं, यानि पूरा देश ठप्प पड़ा है।

फ्रांस की एक वेबसाइट 'परमानेंट रेवोलुशन' के निर्देशक जुआन चिन्गो मानते हैं कि पेंशन बदलावों के खिलाफ यह आंदोलन फ्रांस में हड़तालों की शुरुआत कर सकता है, जो आर्थिक सुधारों के खिलाफ विरोध से शुरू होकर एक व्यापक राजनीतिक हड़ताल का रूप लेते हुए मैक्रों के इस्तीफे की मांग करने तक पहुँच सकता है।

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जुआन चिन्गो कहते हैं, 'सब बातें इस तरफ इशारा करती हैं कि 5 दिसंबर की हड़ताल अभूतपूर्व है और 1995, 2006 और 2010 की हड़तालों के बाद फ़्रांस में हुई मजदूरों की सबसे बड़ी लामबंदी है। यह हड़ताल 'आज्ञाभंग' की उस हवा का विस्तार है, जिसकी पहली अभिव्यक्ति 'येलो वेस्ट' आंदोलन ने की थी। इस व्यापक आम हड़ताल में इतनी संभावना है कि मज़दूर आंदोलनों के मुख्य गढ़ों में और मुख्य सेक्टरों जैसे एस.एन.एफ.सी (फ्रांस की राष्ट्रीय रेल कंपनी) और पैरिस के जन-परिवहन में कायम रह सकें। यह वर्ग संघर्ष की धारा का रुख भी बदल सकता है। 'येलो वेस्ट' के उभरने के एक साल बाद अलग-अलग सेक्टरों के श्रमिकों में फिर से एकता बनने से एक नए दौर की शुरुआत हो रही है, जिसको फ्रेंच भाषा में 'टूस ऑनसम्बल' यानी 'सब एक साथ' कहा जाता है। एकता बनने की यह प्रक्रिया कितनी दूर तक जाएगी ? इसका जवाब सिर्फ वर्ग संघर्ष से निकल सकता है।'

ड़ताल को लेकर कई मुख्य यूनियन नेताओं, कार्यकर्ताओं, मजदूरों-कर्मचारियों, शिक्षकों और बुद्धिजीवियों द्वारा एक संयुक्त बयान (फ्रेंच पत्रिका 'लिबरेशन' में प्रकाशित) जारी किया गया। बयान में कहा गया है कि येलो वेस्ट आंदोलन की शुरूआत के एक साल बाद मैक्रों हर सेक्टर में उभर रहे गुस्से को लगातार अनदेखा कर रहे हैं, चाहे वो शिक्षक, आपातकालीन स्वास्थ्य-कर्मी, छात्र हों, जलवायु के लिए प्रदर्शन कर रहे युवा हो या रोएं के क्षेत्र के मज़दूर और निवासी हो।

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यान में आगे कहा गया है कि शिक्षा क्षेत्र में राष्ट्रीय रेल कम्पनी एस.एन.सी.एफ और पोस्ट ऑफिस विभाग में बढ़ रही आत्महत्या की घटनाओं को अनदेखा कर रहे हैं। अस्पतालों की असहनीय कार्य-स्थिति, उप-ठेकाकरण में तेज़ी, कॉन्ट्रेक्ट की अनिश्चितता और बिना दस्तावेज के रह रहे अप्रवासियों की जोखिम भरी स्थिति को अनदेखा कर रहे हैं। यह पेंशन व्यवस्था सिर्फ मानवता और प्रकृति की हार लेकर आती है। पेंशन नियमों में बदलाव और बढ़ते दमन से सरकार खुलेआम मजदूर वर्ग और युवाओं की अवहेलना कर रही है।

स संयुक्त बयान में कहा गया है इस सन्दर्भ में ही फ्रांस की सरकारी सार्वजानिक यातायात कंपनी आर.ए.टी.पी के कर्मचारियों ने 13 सितम्बर को बड़ी लामबंदी की थी। कई क्षेत्रों से 90-100 % मज़दूरों की हिस्सेदारी से यह साबित हुआ कि बड़े पैमाने में भागीदारी से हुई हड़ताल कितनी असरदार होती हैं और सबसे बड़ी बात कि 13 सितंबर की हड़ताल ने 5 दिसंबर की आम हड़ताल के लिए मैदान तैयार कर लिया।

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यान में आगे कहा कि हमारा भविष्य दांव पर है इसलिए प्रदर्शनों का आयोजन और आम सभाएं आयोजित करना जरूरी हैं। हम ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता, राजनेता, अलग-अलग क्षेत्रों के संगठन, येलो वेस्ट, मजदूर इलाकों के कार्यकर्ता, महिलाएं, एलजीबीटीक्यू, युवा पर्यावरण कार्यकर्ता इसका समर्थन करते हैं। हममे से हर एक व्यक्ति अपने कार्यस्थल और शिक्षास्थल में हड़ताल पर जाना चाहिए और अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाना चाहिए।

5 दिसंबर की यह आम हड़ताल न सिर्फ प्रतिरोध के लिए बड़ा दिन था। इस हड़ताल ने जनता में चेतना और आत्म-विश्वास बढ़ाने का भी काम किया, मज़दूर वर्ग की एकता और ताकत दिखाई। अब यह देखना बाकी है कि हड़ताल आगे क्या रुख लेती है, कितना लंबा चलती है। फिलहाल यह हड़ताल थमने के संकेत नहीं दे रही है। इसमें 9 दिसंबर एक निर्णायक दिन होगा जो तय करेगा कि यह हड़ताल कितने दिनों तक चलेगी और अपनी राजनीतिक मांगों का विस्तार करेगा या नहीं।

(मूल खबर : लेफ्ट वॉयस, अनुवाद : सुमति पीके)

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