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जनज्वार विशेष

फ्रांस को बहुलतावाद ने बनाया फुटबॉल विश्व चैंपियन और हमें हिंदूवाद ने पहुंचाया मॉब लिंचिंग में नंबर वन पर

Prema Negi
18 July 2018 4:40 AM GMT
फ्रांस को बहुलतावाद ने बनाया फुटबॉल विश्व चैंपियन और हमें हिंदूवाद ने पहुंचाया मॉब लिंचिंग में नंबर वन पर
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हम विश्वगुरु बनने का दंभ भरने वाले गुरुघंटाल लोग हिंदू-मुस्लिम, मंदिर मस्जिद और मॉब लिंचिंग का खेल खेलने में ज्यादा आनंद पा रहे हैं, बजाय फुटबॉल या ओलपिंक के...

सुशील मानव का विश्लेषण

समानता, बंधुत्व, स्वतंत्रता (equality, fraternity, liberty) के नारे के साथ दुनिया को समाजवादी व्यवस्था और राजनीतिक विचारधारा देने वाले फ्रांस की बहुसंस्कृतिवादी मूल के खिलाड़ियों से सजी फुटबाल टीम ने 2018 का फुटबॉल विश्वकप विजेता बनकर एक बार फिर से विश्व को अपनी सोच बदलने को प्रेरित किया है।

आज पूरी दुनिया में अप्रवासियों और शरणार्थियों को लेकर एक अलग तरह की धारणा बना ली गई है। अमेरिका समेत कई मुल्कों ने प्रवासियों, शरणार्थियों को अपने देश में न घुसने देने के लिए कड़े से कड़े कानून बना रखे हैं। भारत, अमेरिका, इंग्लैंड, जापान जैसे देशों की राजनीति में अप्रवासियों के बरअक्स राष्ट्रवाद को खड़ा किया जा चुका है।

कई देशों की राजनीतिक सत्ता की दशा दिशा ही अप्रवासियों को निशाना बनाकर तय की गई है। योरोप और अमेरिकी देशों में बाकायदा आतंकवाद को प्रवासी अल्पसंख्यकों से जोड़कर ही पूँजीवादी राष्ट्रवाद ने अपने लिए रास्ता बनाया है। खुद फ्रांस ने सन 2015 में शार्ली ऐब्डो आतंकी हमले के बाद से अब तक कई आतंकी हमले झेले हैं, जिसमें 250 से ज्यादा लोगो की जान जा चुकी है।

बनिस्बत इन सबके ‘हुगो लॉरिंस’ जैसे अप्रवासी की अगुवाई में बहुसंस्कृतिवादी अप्रवासी खिलाड़ियों से सजी फ्रांस की टीम ने 2018 फुटबॉल विश्वकप की विजेता बनकर पूरे के पूरे अप्रवासी-शरणार्थी विमर्श को ही नई दिशा दे दी है।

ये सिर्फ फ्रांस टीम की नहीं मानवता और बहुसंस्कृतिवाद की जीत है, जिसने फुटबॉल के मैदान में बड़े बड़े राष्ट्रवादी, बहुसंख्यक और तथाकथित उच्च नस्लवाले समुदायों के खिलाड़ियों से सजी टीमों को धूल चटाकर विश्वकप की ट्रॉफी पर अपना कब्जा जमा लिया है।

यह महज इत्तेफाक़ नहीं कि आज से बीस साल पहले 1998 के फुटबॉल विश्वकप में दिदिएर देसचैम्प्स की अगुवाई वाली फ्रांस की विश्वविजेता टीम में भी कई संस्कृति व मूल के विदेशी खिलाड़ी शामिल रहे थे।

फ्रांस के लिए इस जीत के क्या मायने हैं और इस जीत में बहुसंस्कृतिवादी खिलाड़ियों का क्या योगदान है इसका आकलन इस बात से किया जा सकता हैं कि फ्रांस के राष्ट्रपति एमैन्युअल मैकरोन ने फ्रांस की विजेता टीम के हर एक खिलाड़ी को लीजन ऑफ ऑनर देने का ऐलान किया है, जोकि फ्रांस देश का सर्वोच्च सम्मान है, और जो सिर्फ देश के लिए असाधारण सेवा के लिए दिया जाता है।

फ्रांस की टीम में 23 में से 17 खिलाड़ी विविध पृष्ठभूमि, विविध संस्कृति व मूल से आते हैं। बहुसंस्कृतिवाद ही 2018 फुटबॉल विश्वकप चैंपियन फ्रांस की टीम की सबसे बड़ी खासियत है, और जीत की सबसे बड़ी वजह भी।



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एक नज़र फ्रांस से इतर बहुसंस्कृति व दूसरे मूल के खिलाडियों पर जो विश्वविजेता फ्रांस टीम के सदस्य हैं-

हुगो लॉरिस : फ्रांस की विजेता टीम के कप्तान गोलकीपर लॉरिस का स्पेन से गहरा नाता है। 26 दिसंबर 1986 में जन्में लॉरिस के पिता मूल रूप से स्पेन के थे और मोंटे कार्लो में बैंक में कार्यरत थे। लॉरिस जब 2008 में नाइस क्लब के लिए एक मैच खेल रहे थे तभी सूचना मिली कि उनकी मां का देहांत हो गया है, लेकिन कोच फ्रेडेरिक एंटोनेटी के आग्रह के बावजूद उन्होंने फुटबॉल के प्रति अपना पेशेवर रवैया दिखाते हुए मैच से छुट्टी लेने से मना कर दिया था।

पॉल पोग्बा : अफ्रीकी देश गुइनिया मूल के मिड फील्डर पाल पोग्बा कहते हैं हम सभी फ्रांसीसी हैं और हम इसे प्यार करते हैं। क्रोएशिया के खिलाफ फ्रांस की जीत में एक गोल समेत पॉल पोग्बा का अहम योगदान रहा। पोग्बा का जन्म जरूर फ्रांस में हुआ, लेकिन उनके माता-पिता गिनी से यहां आकर बसे। पोग्बा के दो बड़े जुड़वा भाई फ्लोरेंटिन और माथियास का जन्म गिनी में ही हुआ था। पोग्बा के दोनों भाई भी फुटबॉलर हैं और वह गिनी की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के सदस्य हैं। पोग्बा के पास फ्रांस और गिनी देशों की दोहरी नागरिकता है।

काइलियन एमबापे : फाइनल मुकाबले में 25 गज की दूरी से दमदार शॉट् मारकर विरोधी टीम क्रोएशिया को चित्त कर देने वाले एमबापे को विश्व कप में सर्वश्रेष्ठ युवा खिलाड़ी का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। एमबापे का जन्म पेरिस में 20 दिसंबर 1998 को हुआ था। एमबापे के पिता विलफ्रिड एमबापे कैमरून से हैं, जबकि मां फैजा लामारी अल्जीरिया से हैं। एमबापे के पास फ्रांस समेत तीन देशों की नागरिकता है।

कोरेंटीन टोलिसो : मिडफील्डर टोलिसो का नाता पश्चिमी अफ्रीकी देश टोगो से है। फ्रांस में जन्मे टोलिसो के माता-पिता टोगो से हैं और वह फ्रांस आकर बस गए थे। टोलिसो जर्मन क्लब बायर्न म्यूनिख के लिए भी खेलते हैं। कई बार उनके टोगो से खेलने की खबर सुर्खियां बनीं, लेकिन जून 2017 में अपने एक वक्तव्य में स्पष्ट कहा था कि वह फ्रांस में जन्मे हैं और यहीं से खेलेंगे। टोलिसो के पास भी फ्रांस और टोगो की दोहरी नागरिकता है।

एंटोनी ग्रीजमैन : ग्रीजमैन मूल रूप से जर्मनी के हैं। उनके पिता एलियन जर्मनी के हैं और वह फ्रांस आकर बस गए थे जबकि मां इजाबेल पुर्तगाली हैं। इजाबेल के पिता अमारो लोप्स फुटबॉलर थे और वह 1957 में फ्रांस आकर बस गए थे, यहीं पर इजाबेल का जन्म हुआ।

ओलिवियर गिरू : स्ट्राइकर ओलिवियर का इटली से खास नाता है क्योंकि उनकी नानी और दादी दोनों ही इटली से थीं।

बेंजामिन मेंडी : मेंडी अफ्रीकी देश सेनेगल से यहां आकर बसे हैं। मेंडी के पास दोनों ही देशों की नागरिकता है। मेंडी भारत में इंडियन सुपर लीग में भी खेल चुके हैं। मेंडी प्रीमियर लीग में मैनचेस्टर सिटी की ओर से खेलते हैं।

नबील फेकीर : आक्रामक डिफेंडर फेकीर का पैतृक देश अल्जीरिया है। फेकीर तब सुर्खियों में आए थे जब मार्च 2015 में उन्होंने फ्रांस टीम से खेलने से इन्कार करके अल्जीरिया की टीम के लिए खेलने का फैसला किया। अल्जीरिया को तब ओमान और कतर के खिलाफ दोस्ताना मुकाबले खेलने थे जबकि फ्रांस को ब्राजील और डेनमार्क से भिड़ना था।

स्टीवन जोंजी : मिडफील्डर जोंजी के पिता अफ्रीकी देश कांगो से हैं, जबकि उनकी मां फ्रांस से थीं। जोंजी स्पेन के सेविला क्लब का महत्वपूर्ण हिस्सा भी हैं।

आदिल रामी : आदिल का जन्म फ्रांस के प्रांत कोर्सिका के बस्तिया शहर में एक मोरक्कन परिवार में हुआ था। रामी की युवा अवस्था में उनका परिवार फ्रेजस आकर बस गया था, जहां उनकी मां सिटी काउंसिल की सदस्य के रूप में काम करती थीं।

सैमुअल उमतिति : बेल्जियम के खिलाफ सेमीफाइनल मुकाबले में गोल करने वाले सैमुअल उमतिति का जन्म कैमरून में हुआ था। जब वह दो वर्ष के थे तो उनका परिवार फ्रांस के लियोन में आकर बस गया था। कुछ महीने बाद परिवार मेनिवल नेबरहुड में आकर बसा तो उमतिति ने वहां पांच वर्ष की उम्र में लोकल क्लब मेनिवल एफसी में एडमिशन ले लिया था। नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने लियोन एकेडमी में एडमिशन लिया।

किमपेंबे : किमपेंबे के पिता कांगो जबकि उनकी मां हैती की हैं। 17 अक्टूबर 2014 में किमपेंबे ने अपना पेशेवर करियर शुरू किया। किमपेंबे को राष्ट्रीय टीम में जगह इसी वर्ष विश्वकप क्वालीफायर में मिली।

स्टीव मंडांडा : टीम के दूसरे गोलकीपर मंडांडा का जन्म 28 मार्च 1985 में कांगो के सबसे बड़े शहर किंशासा में हुआ। जब वह दो वर्ष के थे वह फ्रांस आ गए। नौ वर्ष की उम्र में एएलएम एवरियूक्स में एंट्री लेने से पहले वह मुक्केबाजी करते थे।

नगोलो कांटे : मिडफील्डर नगोलो कांटे का परिवार 1980 में माली से फ्रांस में आकर बस गया था। दिलचस्प बात है कि जब कांटे फ्रांस की किसी भी स्तर की टीम में नहीं खेल रहे थे। तब माली ने उन्हें 2015 अफ्रीकन कप ऑफ नेशंस में उनकी टीम से खेलने का न्यौता भेजा था, लेकिन कांटे ने मना कर दिया। जनवरी 2016 में फिर कांटे को न्यौता मिला। हालांकि 17 मार्च 2016 को उन्हें फ्रांस की टीम से खेलने का मौका मिला।

उस्मान डेंबले : फ्रांस टीम के स्ट्राइकर उस्मान डेंबले के पास तीन देशों की नागरिकता है। उस्मान की मां सेनेगल से हैं, जबकि उनके पिता माली से हैं। उस्मान का जन्म 15 मई 1997 में फ्रांस के वर्नोन में हुआ था।

ब्लेज मतोदी : फ्रांस के मिडफील्डर ब्लेज मतोदी के पिता फरियो रिवेलिनो अंगोला से हैं जबकि उनकी मां कांगो से थीं जबकि उन्हें बहुत छोटी उम्र में ही फ्रांस की नागरिकता मिल गई थी।

सिदिबे : फ्रांस टीम में डिफेंडर सिदिबे का जन्म 29 जुलाई 1992 को हुआ था। सिदिबे का ताल्लुक माली से हैं क्योंकि उनके पिता मूलत: वहां से थे।

ये तो था फ्रांस की संस्कृति से परे दूसरे मूल के बहुसंसकृतिवादी फ्रांस टीम के खिलाड़ियों का एक संक्षिप्त परिचय। रोहिंग्या मूल के शरणार्थियों के मामले में हम मुख्यधारा के भारतीयों और भारत सरकार का स्टैंड निहायत ही क्रूर व शर्मनाक रहा है। अभी असम में करीब 30-40 साल से रह रहे बंग्लादेशी मुस्लिम शरणार्थियों की शिनाख्त करके उन्हें वापिस भगाने का कानून बनाया जा रहा है।

कश्मीरियों के लगातार मानवाधिकार हनन पर ही हमारा रुख हमेशा तथाकथित राष्ट्रवाद की ओर ही झुका रहा है, जबकि संयुक्त राष्ट्र भी भारत सरकार की आलोचना कर चुका है।

इसके अलावा पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत के काली रंगत वाले लोगो के प्रति हमारी यानि मुख्यधारा के भारत के लोग अपनी नफरत भरी मानसिकता से ही नहीं उबर पा रहे उनके साथ मिलकर क्या खाक कोई फुटबॉल टीम बनाएंगे।

वहीं दूसरी ओर मात्र 40 लाख की आबादी वाली क्रोएशिया ने बड़ी बड़ी टीमों को हराकर 2018 फुटबॉल विश्वकप का फाइनल मैच खेला। फाइनल में भले ही क्रोएशिया की टीम फ्रांस से हार गई हो, लेकिन इस छोटी सी आबादी वाले देश ने इस विश्वकप में अपने खेल के उच्च प्रदर्शन और नैरंतर्य से पूरे विश्व को स्तब्ध कर दिया है। जबकि सवा अरब की आबादी वाला भारत जैसा देश विश्वकप के लिए क्वालीफाई तक नहीं कर सका।

125 करोड़ आबादी में से हम 25 लोग भी नहीं तैयार कर सके जो फुटबाल विश्वकप में इस विश्वगुरू देश का प्रतिनिधित्व कर सकें! दरअसल हम विश्वगुरु बनने का दंभ भरने वाले गुरुघंटाल लोग आजकल हिंदू-मुस्लिम, मंदिर मस्जिद और मॉब लिंचिंग का खेल खेलने में ज्यादा आनंद पा रहे हैं, बजाय फुटबॉल या ओलपिंक जैसे वैश्विक आयोजनो में भागीदारी करने के बाबत सोचने और प्रयास करने के।

किसी भी संस्कृति या समाज के लोग जितने नस्लीय होते जाएंगे खेल और संगीत से उतने ही दूर होते जाएंगे, क्योंकि खेल और संगीत किसी भी संस्कृति को संवेदना और मनुष्यता से भर देती हैं। खेलों में जीत से ज्यादा खेल-भावना मायने रखती है, जबकि नस्लीय श्रेष्ठता बोध किसी भी हद पर जाकर सिर्फ और सिर्फ जीत चाहता है। इसीलिए वो खेल के बजाय युद्ध का चुनाव करता है।

शांति, सौहार्द्र भाईचारा के बजाय हिंसा, वैमनस्य व घृणा का चुनाव करता है। खेल के सामानों पर युद्ध के हथियारों के चुनाव को वरीयता देता है। तभी न हम लोग आजकल अपनी संस्कृति के सौम्य छवि वाले मिथकों तक को भी हिंसक व गुस्सैल छवि देने में जुटे हुए हैं। एकरूपता, एकल संस्कृतिधर्मिता और बहुसंख्यकवाद की विचारधारा सिर्फ दूसरी संस्कृतियों, समाजों, मनुष्यों, अल्पसंख्यकों की ही हत्या नहीं करता; वो कला, साहित्य, संगीत, व खेलों व खिलाडियों की भी हत्या करता है।

उम्मीद है कि फ्रांस की ये बहुसंस्कृतिवादी जीत खेल के मैदान से होते हुए राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था के मैदानों पर भी अपना असर दिखाएगी। आतंकवाद, नस्लवाद, पूँजीवाद व राष्ट्रवादी फासीवाद को हराने का फॉर्मूला मास्को के मैदान से फ्रांस ने पूरे विश्व को दे दिया है- बहुसंस्कृतिवाद की जय हो।

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