Begin typing your search above and press return to search.
राजनीति

अम्बानी के फेर में मोदी-भाजपा तो डूबेंगे ही, फ्रांस के राष्ट्रपति पर भी आएगी आंच

Prema Negi
15 April 2019 4:40 AM GMT
अम्बानी के फेर में मोदी-भाजपा तो डूबेंगे ही, फ्रांस के राष्ट्रपति पर भी आएगी आंच
x

फरवरी से अक्टूबर 2015 के बीच अनिल अंबानी डसॉल्ट के नए पार्टनर ठीक तभी बने, जब अपने असल दावे की जगह फ्रांस सरकार के टैक्स प्राधिकारी 151 मिलियन यूरो की जगह उनके 7.3 मिलियन यूरो के लेन-देन को स्वीकार कर लेते हैं...

वरिष्ठ पत्रकाजेपी सिंह की रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के राफेल डील में दायर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के लिए तैयार हो जाने से ही मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी के पांव तले से जमीन खिसक गई है। रही सही कसर फ्रांसीसी अखबार “ला मांद” ने एक खबर प्रकाशित करके पूरी कर दी है, जिसमें राफेल डील के बाद फ्रांस के अधिकारियों ने भारत के सबसे अमीर रईस मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने का रहस्य उजागर किया है।

“ला मांद” का दावा है कि अंबानी के पक्ष में 143.7 मिलियन यूरो यानी करीब 1100 करोड़ रुपए की कुल टैक्स वसूली रद्द कर दी। यह विवाद फरवरी और अक्टूबर 2015 के बीच सुलझाया गया था, उस समय जब भारत और फ्रांस 36 लड़ाकू विमानों की बिक्री पर बातचीत कर रहे थे।

गौरतलब है कि यूपीए 2 के सत्ता से बाहर होने का एक बड़ा कारण भ्रष्टाचार ही था। तब 2G,सीडब्ल्यूजी, कोयला, वाड्रा भूमि अधिग्रहण घोटाला आदि बड़े घोटाले थे। उन सब की जांच हुई। जेपीसी बैठी। मुक़दमा भी चला। बोफोर्स और ऑगस्टा वेस्टलैंड मामले की जांच हुई। यह अलग बात है कि बोफ़ोर्स मामले में कुछ नहीं निकला। ऑगस्टा मामले में सरकार को एक बड़ी सफलता मिली है कि क्रिश्चयन मिशेल सरकार को मिल गया है। उससे पूछताछ चल रही है, लेकिन इटली की अदालत से इसमें क्लीनचिट मिल गयी है।

जब इन सब मामलों की जांच हो सकती है, तो मोदी सरकार राफेल को ही क्यों इतना पवित्र मान रही है कि उसकी जांच नहीं हो सकती है? जांच से भागना और सन्देह को और प्रबल बनाता है। लेकिन एक के बाद एक खुलासे से मोदी सरकार राफेल विवाद में बुरी तरह घिरती जा रही है, जो चुनाव में उसपर बहुत भारी पड रहा है।

राफेल विवाद में शनिवार 13 अप्रैल को एक नया मोड़ आ गया है। फ्रांस के अख़बार ‘ला मांद’ ने लिखा है कि फ्रांस में मौजूद अनिल अंबानी की कंपनी को 2015 में 143.7 मिलियन यूरो, अभी की कीमत के हिसाब से 1100 करोड़ से ज्यादा का फायदा पहुंचाया गया। ये फायदा उन्हें टैक्स रद्द करके पहुंचाया गया। अनिल को ये टैक्स में छूट प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राफेल सौदे के तहत 36 लड़ाकू विमानों को हरी झंडी दे देने के छह महीने बाद दिया गया। गौरतलब है कि अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस अप्रैल 2015 में पीएम मोदी द्वारा घोषित फ्रांस के साथ भारत के राफेल जेट सौदे में एक ऑफसेट साझेदार है।

“ला मांद” ने ये भी लिखा है कि अप्रैल 2015 के अंत में मोदी ने 36 राफेल विमानों की ख़रीद से जुड़े अपने इरादे को साफ किया। इसके कुछ दिनों बाद अनिल अंबानी ने अपनी रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को पंजीकृत (रजिस्टर्ड) करवाया और डसॉल्ट के साथ अपना संयुक्त उपक्रम बनाया।

'ला मांद' ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या अनुबंध पर दस्तख़त होने से पहले ही उन्हें पता था कि ऑफसेट उन्हीं के पास आएगा? ये एक साल बाद होगा? फरवरी से अक्टूबर 2015 के बीच अनिल अंबानी डसॉल्ट के नए पार्टनर ठीक तभी बनते हैं जब अपने असल दावे की जगह टैक्स प्राधिकारी 151 मिलियन यूरो की जगह उनके 7.3 मिलियन यूरो के लेन-देन को स्वीकार कर लेते हैं।

रक्षा मंत्रालय ने अपने ताज़ा बयान में कहा है कि हमने ऐसी रिपोर्ट्स देखी हैं, जिनमें अनुमान लगाया गया है कि भारत सरकार द्वारा राफेल फाइटर जेट की ख़रीद और एक निजी कंपनी को मिली टैक्स छूट के बीच संबंध है। ना तो टैक्स में मिली छूट का समय और ना ही रियायत का विषय किसी भी तरह से उस राफेल डील से जुड़ा है, जिसे वर्तमान सरकार के कार्यकाल में पूरा किया गया।

टैक्स के मामले और राफेल डील के बीच कोई संबंध स्थापित करना बिल्कुल ग़लत, विवाद खड़ा करने का प्रयास और शैतानी से भरी झूठी जानकारी देने का प्रयास है। अब यह तो सर्वविदित है कि कोई भी अपनी गलती को स्वीकार नहीं करता और अपने को पाक साफ बताता है।

फ्रांस के अख़बार की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए रिलायंस कम्युनिकेशन ने कहा कि टैक्स से जुड़ी मांग ग़लत और गैरकानूनी थी और ‘निबटारे के मामले में किसी पक्षपात या फायदे’ से इंकार किया। सवालों के घेरे में जो कंपनी थी उसका नाम रिलायंस फ्लैग एटलांटिक फ्रांस है। ये समुद्र के भीतर केबलिंग का काम करती है। फ्रांस के टैक्स प्राधिकारियों ने इसकी जांच की थी। जांच के बाद उन्होंने पाया कि 2007 से 2010 के बीच तक कंपनी पर 60 मिलियन यूरो का बकाया है।

यह था मामला

फ्रांसीसी टैक्स अधिकारियों द्वारा अनिल अंबानी की रिलायंस अटलांटिक फ्लैग फ्रांस कंपनी की कथित तौर पर जांच की गई थी। इसमें पाया गया कि साल 2007 से 2010 की अवधि के लिए टैक्स के रूप में कंपनी को 60 मिलियन यूरो का भुगतान करना था। जबकि कंपनी ने इसके उलट 7.6 मिलियन यूरो का भुगतान करने की पेशकश की। फ्रांसीसी अधिकारियों ने पेशकश ठुकराकर फिर से एक और जांच शुरू कर दी। इस जांच में वर्ष 2010 से 12 तक का भी टैक्स निकाला, जिसमें अनिल अंबानी की कंपनी को अतिरिक्त 91 मिलियन यूरो का टैक्स देने के लिए कहा गया।

कंपनी ने यह टैक्स भी जमा नहीं किया और कुल टैक्स की रकम 151 मिलियन यूरो हो गई। वर्ष 2015 में राफेल डील की घोषणा के छह महीने बाद फ्रांसीसी टैक्स अधिकारियों ने रिलायंस से टैक्स विवाद का निपटारे को अंतिम रूप दे दिया। इसके तहत कंपनी से 151 मिलियन यूरो की बहुत बड़ी राशि की बजाय 7.3 मिलियन यूरो ही लिए गए। यानी रिलायंस से सीधे 141 मिलियन यूरो या 1100 करोड़ रुपए छोड़ दिए गए।

फ्रांस में हो सकती है स्वतंत्र जांच

गौरतलब है कि फ्रांस में इसका खुलासा होने के बाद वहां की आर्थिक अपराध शाखा और प्रवर्तन शाखा मामले का स्वतंत्र जांच कर सकती और इसमें ओलेंदे और वर्तमान राष्ट्रपति दोनों के फंसने की आशंका बहुत प्रबल है। 26 अक्तूबर 2018 को शेरपा नामक एक फ़्रांसीसी एनजीओ ने अधिकारियों को राफेल में भ्रष्टाचार की शिकायत की थी और इस सौदे से जुड़े सभी व्यक्तियों की जांच की मांग की थी। इसी जांच में यह तथ्य सामने आया। अब वहां इस पर आगे कार्रवाई हो सकती है। यानी अनिल अम्बानी के चक्कर में मोदी सरकार तो डूबने जा ही रही है, ये फ़्रांस की सरकार को भी ले डूबेगी।

Next Story

विविध