Begin typing your search above and press return to search.
सिक्योरिटी

फ्रांस के मंत्री पर लगा सरकारी पैसे से पार्टी का आरोप तो दिया इस्तीफा, लेकिन हमारे मंत्री...

Prema Negi
21 July 2019 12:23 PM IST
फ्रांस के मंत्री पर लगा सरकारी पैसे से पार्टी का आरोप तो दिया इस्तीफा, लेकिन हमारे मंत्री...
x

हमारे देश में तो मान लिया गया है कि नेताओं को सरकारी पैसा लुटाने की खुली छूट है। लगातार पांच-सितारा दावतें आयोजित होतीं हैं, विदेश यात्राओं पर नेताओं के साथ पूरी फ़ौज जाती है, यहाँ तक की ओलिंपिक जैसे खेल आयोजनों में तो खिलाड़ी से अधिक संख्या में अधिकारी और उनके रिश्तेदार होते हैं….

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

फ्रांस सरकार में सबसे शक्तिशाली लोगों में शामिल पर्यावरण मंत्री फ़्रन्कोइस दे रुगी को सरकार से इस्तीफ़ा देना पड़ा है। एक खोजी पत्रकारिता वाली स्थानीय वेबसाइट, मीडियापार्ट ने उन पर आरोप लगाया था कि जब वे संसद के स्पीकर थे, तब सरकारी धन का दुरुपयोग कर अपने सरकारी आवास पर अनेक महंगी पार्टियां आयोजित की थीं जिसमें मेहमान सरकारी नहीं बल्कि अपने दोस्त और रिश्तेदार थे।

र्ष 2017 से 2018 के बीच लगभग एक दर्जन ऐसी पार्टियों का आयोजन किया गया और हरेक पार्टी में 10 से 30 मेहमान उपस्थित हुए थे। इन पार्टियों के लिए सरकारी धन का इस्तेमाल किया गया, पर इन पार्टियों का असली आयोजन उनकी पत्नी, जो एक फैशन पत्रिका में कार्यरत हैं ने किया। फ़्रन्कोइस दे रुगी पर दूसरा आरोप है कि पर्यावरण मंत्री बनाने के बाद अपने सरकारी आवास की साज-सज्जा पर उन्होंने लगभग 63000 पौंड का खर्चा कर दिया, जो बहुत अधिक है।

न आरोपों के बाद फ़्रन्कोइस दे रुगी ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और इसके बाद प्रेस कांफ्रेंस कर इस वेबसाइट के खिलाफ मानहानि का मुक़दमा दायर करने की बात की और इसे मीडिया लिंचिंग बताया। पर जरा सोचिये हमारे देश में क्या कोई भी नेता नैतिक तौर पर इतना सशक्त है कि ऐसे आरोपों पर अपने पद से त्यागपत्र दे दे।

मारे देश में तो मान लिया गया है कि नेताओं को सरकारी पैसा लुटाने की खुली छूट है। लगातार पांच-सितारा दावतें आयोजित होतीं हैं, विदेश यात्राओं पर नेताओं के साथ पूरी फ़ौज जाती है, यहाँ तक की ओलिंपिक जैसे खेल आयोजनों में तो खिलाड़ी से अधिक संख्या में अधिकारी और उनके रिश्तेदार होते हैं।

बमें सरकारी पैसा ही खर्च होता है, वही पैसा जो आम जनता की गाढ़ी कमाई से वसूला गया टैक्स होता है। पर क्या इसे नेता या सरकार में बैठे लोग कभी समझ पाते हैं? नेताओं के घरों में तो शादियों में भी सरकारी मशीनरी और धन का दुरुपयोग किया जाता है। सरकारी धन तो केदारनाथ की तथाकथित निजी यात्रा में भी खर्च किया जाता है, जिसकी फुटेज मीडिया सुबह से शाम तक दिखाता है, पर खर्च पर सवाल नहीं करता।

फ़्रन्कोइस दे रुगी फ्रांस के सबसे सशक्त मंत्रियों में से एक थे। वे पहले ग्रीन पार्टी से जुड़े थे और पर्यावरण एक्टिविस्ट रह चुके हैं। पर्यावरण की बारीकियों को समझते हैं। फ्रांस की सरकार के लिए यह गहरा झटका है क्यों की वहां पिछले 8 महीनों से यलो-वेस्ट के तहत आर्थिक असमानता और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर आन्दोलन किये जा रहे हैं। ऐसे में एक सशक्त पर्यावरण मंत्री की जरूरत थी।

फ़्रन्कोइस दे रुगी से पहले फ्रांस के पर्यावरण मंत्री (ईकोलोजी मिनिस्टर) निकोलस ह्युलट ने 28 अगस्त 2018 को सरकारी रेडियो, फ्रांस इंटर पर एक ब्रेकफास्ट लाइव रेडियो कार्यक्रम के दौरान ही मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। मंत्रिमंडल छोड़ने की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा था, मैं किसी को भ्रम में नहीं रखना चाहता कि हम पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत काम कर रहे हैं, और न ही अपने आप से और अधिक झूठ बोल सकता हूँ। ह्युलट ने राष्ट्रपति मेक्रों पर आरोप लगाए कि वे जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता और दूसरी समस्याओं के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं, और यदि कुछ किया भी है तो कदम प्रभावी नहीं है।

र्तमान में हमारे देश में जो हालात हैं, उसमें ऐसी किसी खबर पर ध्यान देना बेकार लगता है। अब राजनीति तो भद्दी भाषा के साथ एक दंगल का मैदान हो गयी है और इस दंगल में उतरने के लिए धनाढ्य होना सबसे आवश्यक है। ऐसे माहौल में यह खबर कहीं नहीं प्रकाशित की गयी, कोई चर्चा नहीं हुई, तो कोई आश्चर्य नहीं होता। किसी मंत्री का कोई सरोकार नहीं है, जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है। वैसे ऐसे हालात वर्तमान में अधिकतर देशों में हैं।

मारे देश में तो पूंजीवाद सब कुछ निगल जाता है। सरकारें इन्हीं के चंदे से चलती हैं, इसीलिए जाहिर है पर्यावरण संरक्षण तो कभी कोई मुद्दा हो ही नहीं सकता। यहाँ तो पर्यावरण मंत्री भी ऐसे लोग बनाए जाते हैं, जिनका काम पर्यावरण संरक्षण होता ही नहीं है, बल्कि मुख्य जिम्मेदारी यह होती है कि किसी बड़े उद्योगपति की कोई फाइल उनके मंत्रालय में नहीं लटके, इसीलिये पर्यावरण का लगातार विनाश हो रहा है और ऐसे में किसी मंत्री की कोई जिम्मेदारी नहीं होती।

र्तमान में जो केंद्र की सरकार है, उसके एक स्वर्गीय पर्यावरण मंत्री ने तो बाकायदा निर्देश दिए थे कि पर्यावरण स्वीकृति के दौरान केवल स्वीकृति पर ध्यान दिया जाए, पर्यावरण पर नहीं। यही परंपरा आज तक चल रही है। इस भ्रष्ट राजनीति के दौर में खुद्दारी कुछ लोगों में बची है, पर हमारे राजनेता ऐसी खुद्दारी कभी दिखाएँगे?

Next Story

विविध