Begin typing your search above and press return to search.
मध्य प्रदेश

2 बच्चों के साथ अपाहिज बेटे को कंधे पर टांग 1000 किलोमीटर पैदल चल सूरत से MP पहुंची मजदूर महिला

Prema Negi
14 May 2020 10:24 PM IST
2 बच्चों के साथ अपाहिज बेटे को कंधे पर टांग 1000 किलोमीटर पैदल चल सूरत से MP पहुंची मजदूर महिला
x

मजदूर महिला ने तय किया कि वे अपने दो बच्चों के साथ लकड़ी के डंडों में कपड़े की झोली बनाकर दिव्यांग बच्चे को उसमें लिटाकर गांव की तरफ बढेगी और इस तरह उसने 1000 किलोमीटर का सफर तय किया...

संदीप पौराणिक की रिपोर्ट

पन्ना, जनज्वार। देश में कोरोना महामारी से गहराए रोजी रोटी के संकट के बीच मां की ममता सहित कई अन्य मजबूत रिश्तों की कहानी सामने आ रही है। रोटी का संकट तो आया मगर रिश्तों की गांठ और मजबूत हो गई है। इसका प्रमाण है उस महिला की कहानी जिसने अपने दिव्यांग बेटे को ही कंधे पर टांग कर सैकड़ों किलोमीटर का रास्ता पैदल ही नाप दिया।

प्रदेश के पन्ना जिले से गुजर रही एक महिला अपने बेटे के साथ डंडे में कपड़ा बांधकर उसमें दिव्यांग बच्चे को लेकर चले जा रही थी, उसे जिसने भी देखा वही सहम गया और दिमाग में सवाल उठा कि आखिर इस डोली रूप में क्या ले जा रही है महिला। जब पता चला कि उस कपड़े में महिला का दिव्यांग बेटा लेटा हुआ है, जिसे वह सूरत से सतना जिले के मझगंवा तक लेकर जा रही है, तो हर किसी का मन द्रवित हो गया और मदद के लिए भी लोग आगे आ गए।

यह भी पढ़ें : आदिवासी युवक को कुत्ते ने काटा, 7 अस्पतालों में ले गया पिता लेकिन कोरोना के चलते इलाज न मिलने से मौत

तना जिले के मझगंवा की रहने वाली हैं राजकुमारी और वे रोजी रोटी की तलाश में सूरत गई थी। वहां उनके पास काम था और जिंदगी ठीक-ठाक चल रही थी, मगर कोरोना महामारी आने के कारण बंदी हुआ तो काम धंधा पूरी तरह बंद हो गया। जो पूंजी थी वह खर्च हो गई तो उनके पास घर लौटने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा था, इसलिए वे अपने तीनों बच्चों के साथ गांव को लौट पड़ी।

राजकुमारी का एक बच्चा दिव्यांग है, जो चल नहीं सकता। इन स्थितियों में राजकुमारी ने तय किया कि वे अपने दो बच्चों के साथ लकड़ी के डंडों में कपड़े की झोली बनाकर दिव्यांग बच्चे को उसमें लिटाकर गांव की तरफ बढेगी। उसके बाद वे अपने सफर पर निकल पड़ी।

भी पढ़ें : झारखंडी मजदूरों का आरोप, बेंगलुरु में बिल्डरों के गुंडों के साथ मिलकर पीट रही पुलिस कि हम न लौट पायें घर

राजकुमारी बताती है कि रास्ते में कुछ जगह खाना मिला, वहीं कई जगह पानी तक नहीं मिला। फिर भी वे आगे बढ़ती गई। सड़कों किनारे लोग खाना भी बांट रहे हैं, पानी का इंतजाम किए हैं। इसके अलावा कई ऐसे वाहन चालक मिले जिन्होंने कुछ किलो मीटर का रास्ता तय कराने में मदद भी की। इस यात्रा के दौरान उन्हें लोगों का सहयोग भी मिला।

राजकुमारी अपने दोनों बच्चों के साथ तीसरा बच्चा जो दिव्यांग है उसे झोली में टांग कर सूरत से लगभग 1000 किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करने के बाद पन्ना पहुंची। पन्ना में उन्हें जिसने देखा वह कुछ देर के लिए ठिठक गया और तमाम तरह की शंकाएं उसके मन में उठने लगी। लोग राजकुमारी के पास पहुंचे भी और उसकी कहानी जानी।

यह भी पढ़ें : झारखंड के 19 आदिवासी मजदूर तमिलनाडु में अनाज खत्म होने के डर से आधा पेट खाकर काट रहे दिन

स्थानीय नागरिक प्रमोद पाठक कहते हैं, उन्होंने महिला को इस तरह जाते देखा तो मन द्रवित हो गया और मदद का विचार बनाया कई लोगों ने मिलकर महिला और उसके बच्चों को खाना खिलाया, साथ ही कुछ आर्थिक मदद भी की।

स्थानीय पत्रकार नदीम उल्ला बताते हैं, जागरूक नागरिकों ने राजकुमारी और उसके परिवार की जानकारी प्रशासन को दी तो तहसीलदार दीपा चतुर्वेदी ने महिला को आईसोशन सेंटर पर बुलाया। उसके भोजन आदि की व्यवस्था की और फिर पन्ना से सतना तक भिजवाने का प्रबंध किया और वह बच्चों के साथ सतना के लिए रवाना हो गई।

यह भी पढ़ें : मज़दूर महिलाओं का छलका दर्द, कहा LOCKDOWN में सरकार ने शराब की दुकानें खोल मर्दों के हाथों में थमा दिए हैं डंडे

Next Story